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आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर हुसैन की नियुक्ति को लेकर खड़े हुए सवाल

साल 1995 में यूपी की मुलायम सरकार के दौरान हुए फर्जीवाड़े का खुलासा करते हुए समाजसेवी विकेश सिंह नेगी आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारंटो रिट दाखिल कर चुनौती दी है.

आबकारी विभाग न्यूज Nainital High Court News
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी
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Published : Dec 15, 2019, 7:07 PM IST

देहरादून: आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारंटो रिट दाखिल कर चुनौती दी है. वहीं, मामले में संज्ञान लेते हुए सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है. जिसमें सरकार ने शुजआत हुसैन का कानूनी तौर पर नौकरी में न होना स्वीकार कर लिया है. फिलहाल, इस मामले की जांच चल रही है.

जानकारी देते समाजसेवी विकेश सिंह नेगी.

समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने बताया कि इस फर्जीवाड़े की शुरूआत साल 1995 में उत्तर प्रदेश से हुई है. शुजआत हुसैन और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था. उस समय इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति 28-2-1996 को स्वतः समाप्त हो जाएगी. बावजूद इसके 24 साल बाद भी दोनों सरकारी सेवा में हैं. साथ ही इंस्पेक्टर भी बन गए हैं.

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साथ ही बताया कि वो इस मामले की शिकायत विजिलेंस विभाग से भी की थी. लेकिन विजिलेंस जांच में सामने आया कि दोनों की नौकरी कानून सही है साथ ही इनकी संपत्ति का विवरण भी ठीक है. जो विजिलेंस विभाग की जांच के नाम पर खानापूर्ति को साफ दर्शाता है.

देहरादून: आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारंटो रिट दाखिल कर चुनौती दी है. वहीं, मामले में संज्ञान लेते हुए सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है. जिसमें सरकार ने शुजआत हुसैन का कानूनी तौर पर नौकरी में न होना स्वीकार कर लिया है. फिलहाल, इस मामले की जांच चल रही है.

जानकारी देते समाजसेवी विकेश सिंह नेगी.

समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने बताया कि इस फर्जीवाड़े की शुरूआत साल 1995 में उत्तर प्रदेश से हुई है. शुजआत हुसैन और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था. उस समय इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति 28-2-1996 को स्वतः समाप्त हो जाएगी. बावजूद इसके 24 साल बाद भी दोनों सरकारी सेवा में हैं. साथ ही इंस्पेक्टर भी बन गए हैं.

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साथ ही बताया कि वो इस मामले की शिकायत विजिलेंस विभाग से भी की थी. लेकिन विजिलेंस जांच में सामने आया कि दोनों की नौकरी कानून सही है साथ ही इनकी संपत्ति का विवरण भी ठीक है. जो विजिलेंस विभाग की जांच के नाम पर खानापूर्ति को साफ दर्शाता है.

Intro:अपने कारनामों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले आबकारी विभाग में एक नया कारनामा सामने आया है। देहरादून समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता कर आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा किया। विकेश सिंह नेगी लंबे समय से आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किये हएु हैं। आबकारी विभाग, आयुक्त आॅफिस, मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं।आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारटों रिट दाखिल कर चुनौती दी हुई है। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानून नौकरी में हैं ही नहीं। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।Body:इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का आरोप है कि शुजआत और राहिबा के पद बुंदेलखंड और उत्तराखंड में थे ही नहीं। तकनीकी और वैधानिक तौर पर दोनों सेवा में होने नहीं चाहिए। विकेश ने इसलिए शुजआत को पथरिया पीर मामले में सस्पेंड करने पर भी ये कहते हुए अंगुली उठाई थी कि जो सेवा में ही न हो, उसको सस्पैंड कैसे किया जा सकता है? शुजआत उर्दू अनुवादक से कैसे इंस्पेक्टर बन गए और कैसे सालों तक देहरादून सर्किल के इंस्पेक्टर बने रहे, यह हैरान करने वाली बात है। विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश  में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक शुजआत हुसैन, और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर दोनों कैसे 24 साल बाद भी सरकारी सेवा में हैं? साथ ही इंस्पेक्टर भी कैसे बन गए?
Conclusion:समाजसेवी विकेश कहते हैं कि उन्होंने इस मामले की शिकायत बिजेंलेस विभाग से भी की थी। लेकिन बिजेंलेस ने अपनी जांच में कहा था कि इनकी नौकरी सही है। और इनकी संपत्ती का विवरण भी ठीक है। इसके मुताबिक बिजिलेंस ने जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है।  विकेश कहते हैं कि यह तो सिर्फ आबकारी विभाग का मामला है। हो सकता है कई अन्य विभागों में भी उर्दू अनुवादकों, सह कनिष्ठ लिपिक की तर्ज पर लोगों ने नियुक्तियां पाई हों। विकेश ने कहा कि माननीय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को सभी विभागों में ऐसी जांच करानी चाहिए। क्योंकि इन नियुक्तियों का गजट नौटिफिकेशन हुआ ही नहीं यह इलाहबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने 1995 में कहा था। अगर ऐसा है तो फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है उसकी रिकवरी के साथ ही इनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।  
समाजसेवी विकेश के आरोपों से लगता है कि इस पूरे मामले में कुछ लोग राज्य मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ईमानदार छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं। यही नहीं मिलीभगत कर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस को भी चुनौती दे रहे हैं। अब देखना होगा इन मामलों पर सरकार कब तक वाजिब कार्रवाई कर जीरो टालरेंस का संदेश देती है।
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