देहरादूनः उत्तराखंड में मॉनसून सीजन (monsoon season in uttarakhand) शुरू होते ही वन विभाग (Uttarakhand Forest Department) एक बार फिर पौधरोपण अभियान की दिशा में तैयारी करने लगा है. हालांकि, इस बार पौधरोपण में खर्च होने वाले लाखों रुपयों की सार्थकता भी दिखाई दे, इसके लिए कुछ खास कदम उठाए जा रहे हैं. ये बात अलग है कि पिछले सालों तक हुए अभियानों से क्या हासिल हुआ? इसका धरातल पर जवाब देना भी महकमे के लिए मुश्किल है.
उत्तराखंड का 65 प्रतिशत वन क्षेत्र राज्य के पर्यावरण को लेकर अहम योगदान को जाहिर करता है. यही नहीं, राज्य में पौधरोपण को लेकर भी हर साल बड़े अभियान चलाए जाते हैं, जिसमें सरकार लाखों रुपए खर्च करके एक करोड़ से भी ज्यादा पौधों को रोपने का काम करती है. उत्तराखंड का वन विभाग इसके लिए बकायदा जुलाई महीने में प्रदेशभर के लिए वृहद कार्यक्रम भी चलाता है.
दरअसल, मॉनसून सीजन शुरू होते ही वन विभाग पौधरोपण के लिए तैयारियां (Preparations for planting) शुरू कर देता है. इस दौरान पड़ने वाले हरेला पर्व पर करीब 2 महीने तक पूरे राज्य में वन विभाग आम लोगों के साथ मिलकर पौधरोपण करता है. इस बार भी महकमे ने मॉनसून की दस्तक के साथ ही तैयारियां शुरू कर दी हैं. विभाग के हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स विनोद सिंघल कहते हैं कि विभाग की तरफ से पौधरोपण के लिए जरूरी कामों की शुरुआत कर दी गई है और पौधरोपण को बेहतर तरीके से किया जाए इसके लिए काम किया जा रहा है.
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पौधरोपण को लेकर यह तैयारी प्रदेश में पर्यावरण को लेकर बेहतर माहौल तैयार करने का संकेत देती है. लेकिन हकीकत यह भी है कि राज्य में हर साल एक करोड़ से ज्यादा फलदार पौधों को रोपित किया जाता है, जबकि इसका बेहतर परिणाम राज्य को नहीं मिल पाता. ताज्जुब की बात यह है कि राज्य स्थापना के 22 सालों में कितने पेड़ों को रोपित किया गया और इसमें कितनी सफलता मिली इसकी सटीक रिपोर्ट वन विभाग के पास भी नहीं है.
करोड़ों खर्च लेकिन परिणाम पता नहींः फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि राज्य में कोविड से पहले 2 सालों के दौरान महज 0.03 % वनक्षेत्र बढ़ा, ये भी उन जगहों पर रहा जहां घने जंगल हैं. वन विभाग का दावा है कि पिछले कुछ सालों में ही करोड़ों पौधे राज्य में लगाए गए लेकिन इसमें से कितने जीवित हैं यह कहना मुश्किल है. 2018 के दौरान करीब 1.5 करोड़ पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें करीब इतना ही बजट खर्च किया गया. 2019 के दौरान भी 2 करोड़ वृक्ष लगाए जाने का दावा किया गया और इसमें एक करोड़ से ज्यादा की धनराशि खर्च होने की बात कही गई.
पंचायतों को दी जाएगी जिम्मेदारीः राज्य में वृक्षारोपण को लेकर करोड़ों रुपए खर्च करके भी सफलता नहीं मिलने की बात से वन विभाग भी अनभिज्ञ नहीं है. लिहाजा, महकमे ने इस बार कुछ नई व्यवस्था करने का फैसला लिया है. सबसे पहले तो विभाग ऐसे वृक्षों या पौधों को ही पौधरोपण में शामिल करने की तैयारी कर रहा है जो हाइब्रिड हों और जिनके सर्वाइव करने की ज्यादा संभावनाएं हों. दूसरा विभाग की तरफ से पहली बार प्राइवेट थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग करने की दिशा में भी विचार किया जा रहा है. ताकि विभाग में मिलीभगत के आधार पर किसी रिपोर्ट के बजाय स्वतंत्र मॉनिटरिंग की जा सके. इतना ही नहीं विभाग की तरफ से यह भी फैसला किया जा रहा है कि वृक्षारोपण की जिम्मेदारी पंचायतों या स्थानीय स्तर पर विभिन्न संगठनों को दी जाए, ताकि उन्हें इसमें रोजगार भी मिल सके और वे अपनी जिम्मेदारी के अनुसार वृक्षारोपण में अपनी सहभागिता निभा सकें.
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वन विभाग में वृक्षारोपण को लेकर अलग-अलग लक्ष्य तय किए जाते हैं और इन्हीं के अनुसार विभाग के पास करोड़ों का बजट भी खर्च किया जाता है. लेकिन जरूरत केवल औपचारिकता की नहीं है बल्कि वृक्षरोपण या पौधरोपण के बाद इन्हें जीवित रखकर वनों का स्वरूप देने की है. ताकि वाकई यह अभियान सफल हो सके.