देहरादून: उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड पर 19 साल बाद भी कर्ज का बोझ कम नहीं हुआ है. इतना है कि हर सरकार इससे निजात पाने के लिए प्रयास तो करती है, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे ही प्रदेश पर कर्ज को बोझ बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रदेश के नेताओं को इस बात से कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है.
इसका जीता-जागता उदाहरण तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश से यह खबर आयी की मुख्यमंत्री योगी से लेकर सभी मंत्री अपना इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरते हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा राज्य नहीं है कि जहां पर सरकारी खजाने से मुख्यमंत्री और मंत्रियों का इनकम टैक्स भरा जाता है, बल्कि इसमें उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश भी शामिल हैं.
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उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल होने को है, लेकिन बजट के अभाव में आज भी प्रदेश में कई छोटी-बड़ी परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं. 19 सालों में लगभग 8 मुख्यमंत्री बने और इन मुख्यमंत्रियों के साथ ही तमाम कैबिनेट मंत्रियों ने भी अपना इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा. हालाकि यह मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में जैसे ही आया, उन्होंने तत्काल प्रभाव से इस व्यवस्था को बंद करने के आदेश दिए. अब उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इस मामले पर पहल करने का विचार किया है.
मुख्यमंत्री के साथ कैबिनेट मंत्रियों ने भी फैसले का स्वागत किया है. त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे ने कहा है कि अगर मुख्यमंत्री की तरफ से आदेश होता है तो वह इस आदेश का स्वागत करेंगे. इतना ही नहीं राज्य में पर्यटन मंत्री की कमान संभाल रहे सतपाल महाराज ने भी इस पहल का स्वागत किया है.
उन्होंने कहा कि वैसे तो उन्हें जहां तक ध्यान है कि इनकम टैक्स वह खुद ही भरते हैं, लेकिन अगर यह बात सही है कि सरकारी खजाने से इनकम टैक्स भरा जा रहा है तो उसकी तत्काल प्रभाव से जांच करवाएंगे. हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस ओर ध्यान जरूर दिया है. बताया जा रहा है कि जल्द ही उत्तर प्रदेश के योगी सरकार की तरह ही त्रिवेंद्र सरकार भी इस अमल कर सकती है.
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मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरने का ये कानून 1981 में बनाया गया था. जब वीपी सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उनकी सरकार में कानून मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज ऐंड मिसलेनीअस एक्ट बनाया गया था. उत्तराखंड में यह कानून इसलिए भी अब तक चलता आया है, क्योंकि उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा था.
इतने लंबे समय तक इस कानून के मजे लूटने के बाद विपक्ष में बैठी कांग्रेस को भी इसकी याद आने लगी है. अब कांग्रेस को लगता है कि यह गलत है और जनता की गाढ़ी कमाई से अगर मुख्यमंत्री और मंत्री अपना इनकम टैक्स भरते हैं तो उसे तत्काल प्रभाव से बंद करना चाहिए. यह अलग बात है कि सत्ता में रहते हुआ कांग्रेस को कभी इस बात का ध्यान नहीं आया.
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क्योंकि मामला सीधे-सीधे जनता के पैसों से जुड़ा है. लिहाजा आम जनता भी इस पर मुखर होकर सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ खड़ी होती दिखाई दे रही है. आम जनता का कहना है कि यह कानून उस वक्त बना था, जब माननीय के वेतन बहुत कम हुआ करते थे. लेकिन आज की परिस्थितियों में नेताओं के वेतन आईएएस और पीसीएस अधिकारियों के बराबर हैं. लिहाजा ऐसे में जनता की कमाई से इनकम टैक्स भरा जाना बिल्कुल भी सही नहीं हो सकता. लिहाजा सरकार को जल्द इस बारे में फैसला लेकर इस कार्य को बंद करना चाहिए.
मुख्यमंत्री और मंत्रियों के वेतन भत्ते, 2018 के मुताबिक
मुख्यमंत्री | 3,42,500 रुपए |
कैबिनेट मंत्री | 3,42,500 रुपए |
राज्य मंत्री | 3,36,500 |
बता दें की मौजूदा समय में उत्तराखंड में एक मुख्यमंत्री के साथ 8 मंत्री है.