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खटीमा गोली कांड की 25वीं बरसी, राज्य आंदोलनकारियों ने किया शहीदों को याद

उत्तराखंड राज्य बने 19 साल बीत चुके हैं. वहीं, राज्य निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत खटीमा की जमीं से हुई थी. साल 1994 में उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए जहां पूरे प्रदेश में आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन के दौरान खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डीके केन ने आंदोलनकारीयों पर खुलेआम गोली चलाई थी. इस गोलीकांड में सात आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे.

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Published : Sep 1, 2019, 7:32 PM IST

खटीमा गोली कांड

देहरादून: एक सितंबर 1994 को उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर बरसी गोलियों को 25 बरस हो गए हैं. पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा गोलीकांड में 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इतने त्याग के बावजूद जो उत्तराखंड मिला क्या वह शहीदों के सपनों का उत्तराखंड है?

खटीमा गोली कांड की 25वीं बरसी के मौके पर शहीद राज्य आंदोलकारियों को दी गई श्रद्धांजलि.

उत्तराखंड राज्य बने 19 साल बीत चुके हैं. वहीं, राज्य निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत खटीमा की जमीं से हुई थी. साल 1994 में उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए जहां पूरे प्रदेश में आंदोलन चल रहा था. वहीं, सीमांत क्षेत्र खटीमा में 1 सितम्बर 1994 को हजारों की संख्या में राज्य निर्माण की मांग को लेकर पुरुष और महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थी.

इस आंदोलन के दौरान खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डीके केन ने आंदोलनकारीयों पर खुलेआम गोली चलाई थी. इस गोलीकांड में सात आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे, इस घटना के बाद आंदोलन की चिंगारी और भी भड़क उठी. जिसके बाद उग्र आंदोलन के फलस्वरूप साल 2000 में राज्य का निर्माण हुआ.

ये भी पढे़ंः देहरादून: आरटीओ ऑफिस में दलाल काट रहे चांदी, अधिकारी बोले- जानकारी ही बचाव

वहीं, राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने बताया कि राज्य की जो अवधारणा थी उसके लिए आंदोलन चला और गांधी वादी तरीके से आंदोलन हुआ था. उसमें हमारी मातृशक्ति को जिस तरह अपमान झेलना पड़ रहा था, वह राज्य सरकार के लिए काफी शर्म की बात है.

उन्होंने कहा है कि राज्य आंदोलनकारियों की शहादत को आज 25 साल हो गए है, लेकिन राज्य सरकार अब तक हमे न्याय नहीं दे पाई है. इस दौरान प्रदेश में 9 मुख्यमंत्री आये लेकिन न तो स्थाई राजधानी बना पाए और न ही शहीदों को न्याय दिला पाए है, और हम बराबर न्याय की लड़ाई के लिए संघर्ष करते रहेंगे.

देहरादून: एक सितंबर 1994 को उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर बरसी गोलियों को 25 बरस हो गए हैं. पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा गोलीकांड में 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इतने त्याग के बावजूद जो उत्तराखंड मिला क्या वह शहीदों के सपनों का उत्तराखंड है?

खटीमा गोली कांड की 25वीं बरसी के मौके पर शहीद राज्य आंदोलकारियों को दी गई श्रद्धांजलि.

उत्तराखंड राज्य बने 19 साल बीत चुके हैं. वहीं, राज्य निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत खटीमा की जमीं से हुई थी. साल 1994 में उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए जहां पूरे प्रदेश में आंदोलन चल रहा था. वहीं, सीमांत क्षेत्र खटीमा में 1 सितम्बर 1994 को हजारों की संख्या में राज्य निर्माण की मांग को लेकर पुरुष और महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थी.

इस आंदोलन के दौरान खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डीके केन ने आंदोलनकारीयों पर खुलेआम गोली चलाई थी. इस गोलीकांड में सात आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे, इस घटना के बाद आंदोलन की चिंगारी और भी भड़क उठी. जिसके बाद उग्र आंदोलन के फलस्वरूप साल 2000 में राज्य का निर्माण हुआ.

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वहीं, राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने बताया कि राज्य की जो अवधारणा थी उसके लिए आंदोलन चला और गांधी वादी तरीके से आंदोलन हुआ था. उसमें हमारी मातृशक्ति को जिस तरह अपमान झेलना पड़ रहा था, वह राज्य सरकार के लिए काफी शर्म की बात है.

उन्होंने कहा है कि राज्य आंदोलनकारियों की शहादत को आज 25 साल हो गए है, लेकिन राज्य सरकार अब तक हमे न्याय नहीं दे पाई है. इस दौरान प्रदेश में 9 मुख्यमंत्री आये लेकिन न तो स्थाई राजधानी बना पाए और न ही शहीदों को न्याय दिला पाए है, और हम बराबर न्याय की लड़ाई के लिए संघर्ष करते रहेंगे.

Intro:उत्तराखंड राज्य निर्माण की पहली शहादत,, खटीमा गोली कांड,, की 25वीं बरसी को आज राज्य आंदोलनकारियों ने याद करते हुए शहीद हुए आंदोलनकारियों को देहरादून के शहीद स्मारक में श्रद्धांजली दी। राज्य आंदोलनकारियों ने खटीमा कांड की 25वीं बरसी पर अभी तक दोषियों को सज़ा ना मिलने का आक्रोश जताते हुए धिक्कार दिवस का नाम दिया। धिक्कार दिवस पर सैकड़ों की संख्या में राज्य आंदोलनकारी शहीद स्मारक देहरादून में एकत्रित हुए और शहीदों की शहादत को याद किया।
Body:बता दे कि उत्तराखंड राज्य बने जहां 19 साल बीत चुके हैं. वहीं, राज्य निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत खटीमा की जमीं से हुई थी!साल 1994 में उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए जहां पूरे प्रदेश में आंदोलन चल रहा था. सीमांत क्षेत्र खटीमा में 1 सितम्बर 1994 को हजारों की संख्या में राज्य निर्माण की मांग को लेकर पुरुष और महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थीं!खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डीके केन द्वारा खुलेआम गोली चलाई गई थी. इस गोलीकांड में सात आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे,इस घटना ने सबको झकझोर दिया था और आंदोलन को चिंगारी को भड़का दिया था,जिसके बाद उग्र हुए आंदोलन के फलस्वरूप साल 2000 में राज्य का निर्माण हुआ!
Conclusion:वही राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने बताया कि राज्य की जो अवधारणा थी उसके लिए आंदोलन चला और गांधी वादी तरीके से आंदोलन हुआ था।उसमें हमारी मातृ शक्ति जो जिस तरह अपमान झेलना पड़ा था राज्य सरकार के लिए काफी शर्म की बात है और आज खटीमा में जो शहीद हुए है उनको याद करते हुए श्रधांजलि दी गई।शहादतों को आज 25 साल हो गए है लेकिन राज्य सरकार अब तक हमे न्याय नही दे पाई है।इस दौरान प्रदेश में 9 मुख्यमंत्री आये लेकिन न तो स्थाई राजधानी बना पाए और न ही शहीदों को न्याय दिला पाए है।25 साल के अंदर कोई भी सरकार न्याय नही दे पाई तो धिक्कार है ऐसी सरकारों पर जो शहादतों ओर मार्त शक्ति के अपमान का न्याय नही मिल पाया।और कही न कही हम बराबर न्याय के लड़ाई के लिए संघर्षरत है।

बाइट-प्रदीप कुकरेती(राज्य आंदोलनकारी)
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