देहरादूनः केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत की गुणवत्ता का मामला सुर्खियों में है. विवाद बढ़ता देख पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने मामले की उच्चस्तरीय जांच बैठा दी है, लेकिन कांग्रेस ने जांच पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस का कहना है कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह को स्वर्ण मंडित मामले की जांच यदि ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट से कराई जाती तो अच्छा होता.
दरअसल, बीते साल केदारनाथ धाम के गर्भगृह को स्वर्ण मंडित किया गया था, लेकिन बीते दिनों तीर्थ पुरोहितों ने गर्भगृह में लगे सोने की परत को पीतल में तब्दील होने का आरोप लगा दिया. जिससे मामला एकाएक सुर्खियों में आ गया. मामला तूल पकड़ा तो बदरी-केदार मंदिर समिति को सफाई देनी पड़ी. लेकिन मामला यहीं पर नहीं थमा. कांग्रेस ने मामले की जांच एसआईटी से कराने की मांग कर डाली और सोना गायब करने का आरोप भी मढ़ दिया.
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वहीं, मामला गरमाया तो पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस मामले में सचिव धर्मस्य हरीश चंद्र सेमवाल को उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए. सतपाल महाराज का कहना है कि धार्मिक आस्था और पवित्रता के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. इसके लिए जांच बैठाई गई है. उधर, कांग्रेस ने जांच पर संदेह जताते हुए इस मामले की जांच सिटिंग जज से कराए जाने की मांग उठाई है.
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जांच कमेटी में तकनीकी विशेषज्ञों के साथ-साथ सुनार को भी शामिल किया जाएगा। इस मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि आधिकारिक जांच पर सरकार का दबाव रहता है. ऐसे में जांच के निष्पक्ष परिणाम सामने नहीं आ पाएंगे. उन्होंने कहा कि बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने पहले 230 किलो सोना बताया. उसके बाद फिर 23 किलो बताया, जिससे उनकी भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
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करन माहरा ने कहा कि इनकम टैक्स विभाग को भी इस मामले में दानदाता की जांच करनी चाहिए. क्योंकि, यह सेक्शन 80 G का मामला है यानी किसी व्यक्ति या संस्था को चंदा या दान में दी गई मदद पर टैक्स छूट देने का अधिकार देता है. उनका कहना है कि टैक्स बचाने के लिए इस तरह से धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल करना संवेदनशील मामला है.
उन्होंने बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय की भूमिका पर भी संदेह जताया. उन्होंने कहा कि अजेंद्र अजय ने गर्भगृह में फोटो खिंचा कर पोस्ट की थी. जिसमें उन्होंने 230 किलो सोना लगाने की बात कही थी. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर इतना बड़ा परिवर्तन कैसे आ गया. मंदिर समिति को यदि सोना मिला है तो सॉलिड सोना मिलना चाहिए था. उसमें तांबे की परत चढ़ाने का क्या औचित्य है?
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