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उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 का शिक्षक कर रहें विरोध, जानिए क्या है आपत्ति - Uttarakhand University Act 2020

उत्तराखंड में सभी विश्वविद्यालयों को एकरूपता देने के दावों के बीच राज्य सरकार द्वारा लाए गए एक्ट का शिक्षक विरोध कर रहे हैं. शासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की आपत्ति एक्ट में हटाए गए उन बिंदुओं को लेकर है जिससे उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है, ऐसे में विरोध कर रहे शिक्षकों ने अब 30 दिसंबर को नए साल से नई रणनीति पर मुहर लगाने के बाद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का फैसला लिया है.

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उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 का विरोध
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Published : Dec 28, 2020, 9:13 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 को कैबिनेट से लेकर विधानसभा तक की मंजूरी मिल चुकी है. सरकार ने बहुमत के आधार पर इसे विधानसभा में पास तो करवा लिया लेकिन अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की नाराजगी राज्य सरकार को भारी पड़ रही है. विधानसभा से पास होने के बाद राजभवन पहुंचे इस अधिनियम को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाई.

उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 का शिक्षक कर रहें विरोध.

शिक्षकों ने राज्यपाल तक इस एक्ट से हटाए गए कुछ बिंदुओं के कारण अशासकीय महाविद्यालयों के कर्मचारियों के भविष्य और उनके वेतन को लेकर प्रश्नचिन्ह उठने की बात पहुंचाई, इसके बाद राजभवन से इस फाइल को वापस सरकार को लौटाया गया. लेकिन एक बार फिर राज्य सरकार ने बिना कोई खास संशोधन किए इसे राजभवन भेज दिया है. जिसके बाद अब राजभवन से इस फाइल पर मुहर लगना तय है.

पढ़ें- शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे का बयान, आगामी सत्र से पहले राज्य में लागू होगी नई शिक्षा नीति

ऐसे में आंदोलन कर रहे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने सरकार के लिए गए इस फैसले का बड़े स्तर पर विरोध करने का फैसला कर लिया है. इसी सिलसिले में शिक्षक संघ ने 30 दिसंबर को एक बैठक बुलाई है, जिसमें आने वाले दिनों की रणनीति को तय किया जाएगा. हालांकि यह साफ कर दिया गया है कि नए साल से इस बैठक के बाद नई रणनीति के साथ एक बड़ा आंदोलन सरकार के खिलाफ खड़ा किया जाएगा.

पढ़ें -भारत विकास प्रदर्शनी को उच्च शिक्षा मंत्री ने बताया महत्वपूर्ण, अशासकीय महाविद्यालयों को दी नसीहत

आपको यह भी बता दें कि यह मामला उत्तर प्रदेश के उस एक्ट से भी जुड़ा हुआ है, जिसके बिनाह पर अशासकीय महाविद्यालयों के कर्मचारियों के वेतन की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. दरअसल, उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 लागू है, साल 1975 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने प्रदेश के सभी अशासकीय महाविद्यालयों को राज्य सरकार के अधीन करते हुए यहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों के वेतन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होना तय किया था. उधर छात्रों की फीस में विज्ञान वर्ग के छात्रों की 80% और कॉमर्स के साथ आर्ट वर्ग के छात्रों की 85% फीस को राज्य सरकार के खजाने में जमा करने और बाकी 15% फीस महाविद्यालयों के मैनेजमेंट को महाविद्यालय के भवन रेनोवेट और दूसरे खर्चों के लिए दिया जाना तय हुआ था. उत्तराखंड बनने के बाद भी यह तय किया गया कि उत्तराखंड इसी एक्ट को अपना आएगा जिसके तहत अब तक व्यवस्थाएं चल रही हैं.

लेकिन इसी साल सरकार ने अमरेला एक्ट के तहत उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 को कैबिनेट के बाद विधानसभा से पास किया गया. इस एक्ट में उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के चैप्टर 11-A को हटा दिया गया और बस यहीं से शिक्षकों ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया. आपको बता दें कि चैप्टर 11 ए ही है जो अशासकीय महाविद्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन का भार राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाने की शर्त से जुड़ा हुआ है. लेकिन राज्य सरकार में उच्च शिक्षा राज्य मंत्री खुले मंच से यह कहते आए हैं कि प्रदेश में तीन व्यवस्थाएं एक साथ नहीं चल सकती, जिसमें अशासकीय महाविद्यालयों के केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध होने, इसमें होने वाली नियुक्ति और तमाम दूसरे काम के लिए मैनेजमेंट के पास अधिकार होने और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन के रूप में वह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होना शामिल है.

शिक्षक संघ साफ कहता है कि राज्य सरकार शिक्षकों को प्रताड़ित करना चाहती है और इसीलिए इस तरह के बिंदुओं को हटाया गया है. संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि कर्मचारियों और शिक्षकों को उनके वेतन के रूप में प्रोटेक्शन दिया जाए और इसके लिए लीगल व्यवस्था की जाए, जबकि राज्य सरकार कहती है कि वह शिक्षकों को प्रोत्साहन राशि देगी. ऐसे में शिक्षकों का कहना है कि राज्य सरकार लीगल रूप से एक व्यवस्था तैयार करें ताकि शिक्षकों का भविष्य भी सुरक्षित हो सके.

देहरादून: उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 को कैबिनेट से लेकर विधानसभा तक की मंजूरी मिल चुकी है. सरकार ने बहुमत के आधार पर इसे विधानसभा में पास तो करवा लिया लेकिन अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की नाराजगी राज्य सरकार को भारी पड़ रही है. विधानसभा से पास होने के बाद राजभवन पहुंचे इस अधिनियम को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाई.

उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 का शिक्षक कर रहें विरोध.

शिक्षकों ने राज्यपाल तक इस एक्ट से हटाए गए कुछ बिंदुओं के कारण अशासकीय महाविद्यालयों के कर्मचारियों के भविष्य और उनके वेतन को लेकर प्रश्नचिन्ह उठने की बात पहुंचाई, इसके बाद राजभवन से इस फाइल को वापस सरकार को लौटाया गया. लेकिन एक बार फिर राज्य सरकार ने बिना कोई खास संशोधन किए इसे राजभवन भेज दिया है. जिसके बाद अब राजभवन से इस फाइल पर मुहर लगना तय है.

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ऐसे में आंदोलन कर रहे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने सरकार के लिए गए इस फैसले का बड़े स्तर पर विरोध करने का फैसला कर लिया है. इसी सिलसिले में शिक्षक संघ ने 30 दिसंबर को एक बैठक बुलाई है, जिसमें आने वाले दिनों की रणनीति को तय किया जाएगा. हालांकि यह साफ कर दिया गया है कि नए साल से इस बैठक के बाद नई रणनीति के साथ एक बड़ा आंदोलन सरकार के खिलाफ खड़ा किया जाएगा.

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आपको यह भी बता दें कि यह मामला उत्तर प्रदेश के उस एक्ट से भी जुड़ा हुआ है, जिसके बिनाह पर अशासकीय महाविद्यालयों के कर्मचारियों के वेतन की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. दरअसल, उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 लागू है, साल 1975 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने प्रदेश के सभी अशासकीय महाविद्यालयों को राज्य सरकार के अधीन करते हुए यहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों के वेतन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होना तय किया था. उधर छात्रों की फीस में विज्ञान वर्ग के छात्रों की 80% और कॉमर्स के साथ आर्ट वर्ग के छात्रों की 85% फीस को राज्य सरकार के खजाने में जमा करने और बाकी 15% फीस महाविद्यालयों के मैनेजमेंट को महाविद्यालय के भवन रेनोवेट और दूसरे खर्चों के लिए दिया जाना तय हुआ था. उत्तराखंड बनने के बाद भी यह तय किया गया कि उत्तराखंड इसी एक्ट को अपना आएगा जिसके तहत अब तक व्यवस्थाएं चल रही हैं.

लेकिन इसी साल सरकार ने अमरेला एक्ट के तहत उत्तराखंड विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 को कैबिनेट के बाद विधानसभा से पास किया गया. इस एक्ट में उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के चैप्टर 11-A को हटा दिया गया और बस यहीं से शिक्षकों ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया. आपको बता दें कि चैप्टर 11 ए ही है जो अशासकीय महाविद्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन का भार राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाने की शर्त से जुड़ा हुआ है. लेकिन राज्य सरकार में उच्च शिक्षा राज्य मंत्री खुले मंच से यह कहते आए हैं कि प्रदेश में तीन व्यवस्थाएं एक साथ नहीं चल सकती, जिसमें अशासकीय महाविद्यालयों के केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध होने, इसमें होने वाली नियुक्ति और तमाम दूसरे काम के लिए मैनेजमेंट के पास अधिकार होने और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन के रूप में वह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होना शामिल है.

शिक्षक संघ साफ कहता है कि राज्य सरकार शिक्षकों को प्रताड़ित करना चाहती है और इसीलिए इस तरह के बिंदुओं को हटाया गया है. संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि कर्मचारियों और शिक्षकों को उनके वेतन के रूप में प्रोटेक्शन दिया जाए और इसके लिए लीगल व्यवस्था की जाए, जबकि राज्य सरकार कहती है कि वह शिक्षकों को प्रोत्साहन राशि देगी. ऐसे में शिक्षकों का कहना है कि राज्य सरकार लीगल रूप से एक व्यवस्था तैयार करें ताकि शिक्षकों का भविष्य भी सुरक्षित हो सके.

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