देहरादून: दीपावली उमंग और खुशियों का त्योहार है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर की साफ-सफाई कर मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर धन-धान्य से भर जाता है. जीवन में समृद्धि आती है. लेकिन यही दीपावली मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू के लिए किसी कालरात्रि से कम नहीं होती. क्योंकि अंधविश्वास और शक्ति साधना के लिए तांत्रिक, इस दिन उल्लुओं की बलि देते हैं. देश में यह रात उल्लुओं पर कैसे भारी पड़ने वाली है, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.
उल्लू का शिकार प्रतिबंधित: भारत के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सभी भारतीय उल्लू प्रजातियों का शिकार और व्यापार पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इस प्रतिबंध के बावजूद कई मौकों पर काले जादू और अंधविश्वास के चलते इन उल्लुओं पर संकट गहराने लगता है. अंधविश्वास के चलते तांत्रिक और तंत्र-मंत्र में विश्वास रखने वाले अमावस्या की रात को उल्लुओं की बलि देकर अपनी किस्मत को बदलने का प्रयास करते हैं. इससे उल्लुओं की प्रजातियां संकट में आ जाती हैं.
वन विभाग ने जारी किया अलर्ट: इस बार भी दीपावली पर वन विभाग ने उल्लुओं की रक्षा को लेकर अलर्ट जारी किया है. वन क्षेत्रों और संरक्षित क्षेत्रों में भी वन कर्मियों की गश्त बढ़ाए जाने के निर्देश दिए गए हैं. वन विभाग की मानें तो हर साल इस मौके पर अलर्ट जारी किया जाता है. इस दौरान वन विभाग निगरानी बढ़ा देता है. उल्लू पर संकट केवल जंगलों या संरक्षित क्षेत्रों में ही नहीं है, बल्कि चिड़ियाघर में भी उल्लू पर खतरा मंडराता दिखाई देता है.
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देहरादून चिड़ियाघर से अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती: इसे देखते हुए देहरादून चिड़ियाघर में भी स्टाफ को अतिरिक्त सतर्कता बढ़ाने के लिए कहा गया है. यही नहीं चिड़ियाघर में दिवाली तक के लिए और अधिक स्टाफ तैनात किया गया है. ताकि उसके आसपास के क्षेत्रों में निगरानी रखी जा सके. आपको बता दें कि देहरादून चिड़ियाघर में उल्लू की तीन प्रजाति हैं. इनमें टाउनी फिश उल्लू, ब्राउन वुड उल्लू और स्पीटेड आउलेट शामिल हैं.
भारत में उल्लू की कई प्रजातियां: देश में उल्लू की करीब 30 प्रजातियां मौजूद हैं. इनमें से करीब 15 प्रजातियों पर हमेशा ही सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है. यह प्रजातियां दुर्लभ मानी जाती हैं. इनके पीछे तांत्रिकों की तंत्र-मंत्र और काला जादू करने के लिए शुभ होने की एक सोच भी रहती है. इन प्रजातियों में एशियन बैरड ओवलेट, ब्राउन वुड-उल्लू, फिश-उल्लू, चित्तीदार उल्लू, ओरिएंटल स्कॉप्स-उल्लू, रॉक-ईगल उल्लू, जंगल उल्लू,स्पॉट-बेल्ड ईगल-उल्लू, टैनी फिश-उल्लू और ईस्टर्न ग्रास-उल्लू कॉलर स्कॉप्स-उल्लू, ब्राउन डस्की मोटल वुड-उल्लू, कॉलरेड उल्लू बार्न उल्लू,ईगल-उल्लू, सहित व्यापार के लिए कई प्रजातियां शामिल हैं.
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तंत्र-मंत्र के चक्कर में उल्लू का शिकार: फील्ड में काम करने वाले मनोनीत वार्डन राजीव तलवार बताते हैं कि वह लगातार फील्ड में रहते हैं. ऐसे में देखने को मिलता है कि तंत्र-मंत्र के चक्कर में कई लोग उल्लू के शिकार में गलत योगदान दे देते हैं. वन विभाग उल्लू ही नहीं, बल्कि सभी संरक्षित क्षेत्र में रहने वाले वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर काम कर रहा है.
उल्लू के शिकारियों पर पैनी नजर: डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का संगठन ट्रैफिक उल्लू के शिकार के रोकथाम के लिए काम कर रहा है. देश में उल्लुओं को लेकर शकुन-अपशकुन से जुड़ी लोगों की सोच रहती है. दरअसल हिंदू रीति-रिवाजों के लिहाज से उल्लू को धन संपदा की देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, लेकिन तंत्र विद्या के लिए इसका शिकार किया जाता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का संगठन ट्रैफिक उल्लू के व्यापार और अवैध शिकार की निगरानी करता है और इस पर काम कर रहा है.
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इन राज्यों में होता है उल्लू का शिकार: भारत में 1991 से यह संगठन काम कर रहा है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और आंध्र प्रदेश में उल्लू के सबसे ज्यादा शिकार की खबरें आती हैं. साथ ही इन प्रदेशों में कई जिले तो उल्लू के शिकार को लेकर कुख्यात हैं. उल्लू का शिकार तंत्र-मंत्र और काले जादू को लेकर होता है. उल्लू के शिकार के लिए अमावस्या की रात और दीपावली के समय सबसे मुफीद माने जाते हैं. काले जादू को लेकर उल्लू के हर अंग को इस्तेमाल किया जाता है. इसमें उल्लू की खोपड़ी, पंख, हड्डियां, अंडे के छिलके, आंखें, हृदय, गुर्दे और कान तक का इस्तेमाल किया जाता है.
पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए उल्लू अहम: माना जाता है कि काले जादू के दौरान महिलाओं और बच्चों को इस क्षेत्र से दूर रखा जाता है. एकाएक धन संपदा से लेकर विरोधियों को परास्त करने और बिगड़े काम बनाने के लिए इस तंत्र-मंत्र की सिद्धि की जाती है. उल्लू पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उल्लू एक शिकारी पक्षी है. वह कीड़े, चूहे और छोटे जीवों का भक्षण करता है. इसके जरिए वह पर्यावरण को स्वच्छ करने का भी काम करता है. लेकिन जिस तरह अब उल्लू की कई प्रजातियां दुर्लभ हो रही हैं, पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी अच्छी बात नहीं है.