टीकमगढ़(मध्यप्रदेश): कुंडेश्वर मंदिर को बुंदेलखंड का कैलाश भी कहते हैं. यहां भक्त और भगवान के बीच आस्था और विश्वास का ऐसा अनूठा संगम देखने को मिलता है, जो हर किसी का मन मोह लेता है. महाशिवरात्रि पर भी कुंडेश्वर धाम में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. जहां शिवरात्रि के अवसर पर हर साल भक्तों की भारी भीड़ लगती है.
भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर की महिमा बेहद खास मानी जाती है. कहा जाता है कि, यहां विराजे भगवान शंकर पिंडी में से प्रकट हुये थे, जो हर साल चावल के दाने बराबर अपना आकार बढ़ाते हैं. मंदिर से जुड़ी एक लोककथा प्रचलित है कि, एक महिला जब कुंडी में धान कूट रही थी. तभी अचानक उसमें से खून निकलने लगा, ऐसा होते देख महिला ने कुंडी को ढंक दिया और वह यह घटना गांव वालों को बताने चली गयी. लेकिन, वापस आकर जब उसने कुंडी को देखा तो उसमें शिवलिंग निकल आया. तभी से इस शिवलिंग की पूजा होती चली आ रही है.
मंदिर से जुड़ी एक किवदंती और है, कहा जाता है कि, भगवान शंकर और राम एक दूसरे के पूरक हैं, जहां भगवान राम पहुंचेंगे वहां भोलेनाथ जरुर जाएंगे. मान्यता है कि, भगवान शंकर इस बात को जान चुके थे कि, अयोध्या के बाद भगवान राम ओरछा में ही वास करेंगे, इसलिए वे उनके आने से पहले ही वहां पहुंच गए. यह बात इसलिए भी सत्य मानी जाती है, क्योंकि कुंडेश्वर धाम और ओरछा की दूरी महज 80 से 90 किलोमीटर ही हैं. जहां दोनों मंदिरों के दर्शन भक्त एक दिन में आराम से कर सकते हैं.
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जब कुंडी से निकले शिवलिंग की जानकारी टीकमगढ़ रियासत के महाराज को लगी, तो उन्होंने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया. मान्यता है कि, अपने नाम के अनुसार भगवान भोलेनाथ शिवलिंग पर जल चढ़ाये जाने मात्र से इतने प्रसन्न होते हैं कि, भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं.
बुंदेलखंड के इस कैलाश पर महाशिवरात्रि को हर साल मेले का आयोजन भी होता है, इस मेले में होने वाले भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के विवाह उत्सव को देखने भक्त दूर-दूर से आते हैं, क्योंकि बुंदेलखंड के कैलाश पर विराजे बाबा भोलेनाथ की महिमा है ही ऐसी, जहां ओम नमः शिवाय का जाप करते भक्त उनके दर्शन के लिए खिचें चले आते हैं.