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देहरादून में एक दर्जन अस्पताल डॉक्टर विहीन, खोखले साबित हो रहे सरकार और विभाग के दावे

प्रदेश में आए दिन बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की तस्वीर सामने आती रहती है. जिससे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही गरीब मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है, जिससे उन्हें काफी धन व्यय करना पड़ता है. देहरादून में कई सरकारी हॉस्पिटल डॉक्टर विहीन हैं, जिससे लोगों को मजबूरन अन्य हॉस्पिटलों में इलाज कराना पड़ रहा है.

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Published : Mar 28, 2023, 6:58 AM IST

Updated : Mar 28, 2023, 11:26 AM IST

देहरादून में एक दर्जन अस्पताल डॉक्टर विहीन

देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग के वादे और दावों की जमीनी हकीकत ठीक उलट है. सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन ये सच है कि प्रदेश की राजधानी में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. यह सब प्रदेश में उस जगह पर है, जहां मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और विधायकों से लेकर नियम कानून बनाने वाले अफसर रहते हैं. ऐसे में सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी में ये हालात हैं तो प्रदेश के अन्य जनपदों में स्वास्थ्य व्यवस्था के क्या हाल होंगे. जिससे लोगों को आए दिन जूझना पड़ता है.

राजधानी में ही डॉक्टरों की तैनाती नहीं: स्वास्थ्य विभाग के दावों की पोल राजधानी देहरादून के वह अस्पताल खोल देते हैं, जहां इलाज करने के लिए एक भी डॉक्टर तैनात नहीं किया गया है. यह स्थिति किसी एक या दो अस्पतालों की नहीं है, बल्कि राजधानी देहरादून में ही ऐसे करीब 12 अस्पताल हैं, जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. अंदाजा लगाइए कि ऐसे सरकारी अस्पताल जहां एक भी चिकित्सक नहीं है, वहां पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के क्या हालात होंगे. यह सब तब है जब स्वास्थ्य मंत्री धनसिंह रावत अपने कार्यकाल के दौरान दर्जनों उपलब्धियां गिनाने में देरी नहीं करते, यही नहीं स्वास्थ्य विभाग भी अपनी उपलब्धियों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त सामने रख देता है.
पढ़ें-..तो क्या गलत निर्णय लेती हैं राधा रतूड़ी? सचिवालय संघ ने ACS के खिलाफ खोला मोर्चा, लगाए गंभीर आरोप

डॉक्टरों की कमी लोगों पर भारी: विभाग में एक से बढ़कर एक फैसले होने के दावे कर खुद की पीठ थपथपाई जाती है. स्वास्थ्य सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन की ऐसी बातें की जाती हैं, जैसे मानों राज्य स्वास्थ्य सेवाओं में देश और दुनिया का उदाहरण बन गया हो. राजधानी देहरादून में ऐसे करीब 12 अस्पताल हैं, जहां एक भी चिकित्सक तैनात नहीं किया गया है. प्रदेश में डॉक्टरों की कमी इस बात से समझी जा सकती है की राजधानी देहरादून में ही 56 डॉक्टरों के पद खाली पड़े हुए हैं. यही नहीं कई अस्पतालों में तो अटैचमेंट के जरिए चिकित्सकों को रखकर व्यवस्थाएं चलाने की कोशिश की जा रही है.
पढ़ें-G20 समिट को लेकर एसएफजे की CM धामी को धमकी, 'मुकदमे दर्ज हुए तो खुद होंगे जिम्मेदार'

क्या कह रहे जिम्मेदार: इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत ने देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर संजय जैन से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके द्वारा 2 महीने पहले ही देहरादून में सीएमओ का चार्ज लिया गया है, लिहाजा अभी स्टाफ की तैनाती के लिए जानकारी ली जा रही है. उन्होंने साफ किया कि जिले में 56 डॉक्टरों की कमी है और 12 अस्पतालों में एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. लिहाजा सभी स्थितियों को देखकर यह कोशिश की जाएगी कि कम से कम एक डॉक्टर सभी अस्पताल में तैनात हो. मौजूदा हालातों से यह समझना कठिन नहीं है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्या हालात होंगे क्योंकि जब राजधानी देहरादून के अस्पतालों में एक भी डॉक्टर नहीं होने की स्थिति दिखाई दे रही है तो फिर पहाड़ों के अस्पतालों से स्वास्थ्य सुविधाओं की उम्मीद करना तो बेमानी ही है.

देहरादून में एक दर्जन अस्पताल डॉक्टर विहीन

देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग के वादे और दावों की जमीनी हकीकत ठीक उलट है. सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन ये सच है कि प्रदेश की राजधानी में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. यह सब प्रदेश में उस जगह पर है, जहां मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और विधायकों से लेकर नियम कानून बनाने वाले अफसर रहते हैं. ऐसे में सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी में ये हालात हैं तो प्रदेश के अन्य जनपदों में स्वास्थ्य व्यवस्था के क्या हाल होंगे. जिससे लोगों को आए दिन जूझना पड़ता है.

राजधानी में ही डॉक्टरों की तैनाती नहीं: स्वास्थ्य विभाग के दावों की पोल राजधानी देहरादून के वह अस्पताल खोल देते हैं, जहां इलाज करने के लिए एक भी डॉक्टर तैनात नहीं किया गया है. यह स्थिति किसी एक या दो अस्पतालों की नहीं है, बल्कि राजधानी देहरादून में ही ऐसे करीब 12 अस्पताल हैं, जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. अंदाजा लगाइए कि ऐसे सरकारी अस्पताल जहां एक भी चिकित्सक नहीं है, वहां पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के क्या हालात होंगे. यह सब तब है जब स्वास्थ्य मंत्री धनसिंह रावत अपने कार्यकाल के दौरान दर्जनों उपलब्धियां गिनाने में देरी नहीं करते, यही नहीं स्वास्थ्य विभाग भी अपनी उपलब्धियों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त सामने रख देता है.
पढ़ें-..तो क्या गलत निर्णय लेती हैं राधा रतूड़ी? सचिवालय संघ ने ACS के खिलाफ खोला मोर्चा, लगाए गंभीर आरोप

डॉक्टरों की कमी लोगों पर भारी: विभाग में एक से बढ़कर एक फैसले होने के दावे कर खुद की पीठ थपथपाई जाती है. स्वास्थ्य सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन की ऐसी बातें की जाती हैं, जैसे मानों राज्य स्वास्थ्य सेवाओं में देश और दुनिया का उदाहरण बन गया हो. राजधानी देहरादून में ऐसे करीब 12 अस्पताल हैं, जहां एक भी चिकित्सक तैनात नहीं किया गया है. प्रदेश में डॉक्टरों की कमी इस बात से समझी जा सकती है की राजधानी देहरादून में ही 56 डॉक्टरों के पद खाली पड़े हुए हैं. यही नहीं कई अस्पतालों में तो अटैचमेंट के जरिए चिकित्सकों को रखकर व्यवस्थाएं चलाने की कोशिश की जा रही है.
पढ़ें-G20 समिट को लेकर एसएफजे की CM धामी को धमकी, 'मुकदमे दर्ज हुए तो खुद होंगे जिम्मेदार'

क्या कह रहे जिम्मेदार: इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत ने देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर संजय जैन से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके द्वारा 2 महीने पहले ही देहरादून में सीएमओ का चार्ज लिया गया है, लिहाजा अभी स्टाफ की तैनाती के लिए जानकारी ली जा रही है. उन्होंने साफ किया कि जिले में 56 डॉक्टरों की कमी है और 12 अस्पतालों में एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. लिहाजा सभी स्थितियों को देखकर यह कोशिश की जाएगी कि कम से कम एक डॉक्टर सभी अस्पताल में तैनात हो. मौजूदा हालातों से यह समझना कठिन नहीं है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्या हालात होंगे क्योंकि जब राजधानी देहरादून के अस्पतालों में एक भी डॉक्टर नहीं होने की स्थिति दिखाई दे रही है तो फिर पहाड़ों के अस्पतालों से स्वास्थ्य सुविधाओं की उम्मीद करना तो बेमानी ही है.

Last Updated : Mar 28, 2023, 11:26 AM IST
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