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बागियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही कांग्रेस की राजनीति, दलबदल को लेकर पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई तेज

उत्तराखंड कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई इन दिनों और भी तेज हो गई है. पार्टी कार्यकर्ता अपने ही पार्टी में किसी भी कार्य का खुद को क्रेडिट देने में जुटे हुए है. ऐसे माहौल में देखना ये होगा की आगामी विधानसभा चुनाव में इसका क्या असर पड़ता है.

senario of uttarakhand politics
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Published : Oct 15, 2021, 8:16 AM IST

Updated : Oct 15, 2021, 8:52 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव-2022 में कुछ ही समय बचा हुआ है. ऐसे में उत्तराखंड कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई इन दिनों और भी तेज हो गई है. इस बार मामला बागियों के कांग्रेस में वापसी को लेकर है, पिछले दिनों यशपाल आर्य के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर भी हरीश रावत खेमा खुद के नंबर बढ़ाते हुए दिखाई दिए. तो वहीं दूसरी तरफ प्रीतम सिंह गुट इसे अपनी कामयाबी मानता रहा.

कांग्रेस से भाजपा में गए कई दिग्गज नेताओं को करीब 5 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस की राजनीति इन्हीं बागियों के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आती है. कांग्रेस के अंदर गुटबाजी का आलम यह है कि इन्हीं बागियों में से एक यशपाल आर्य और संजीव आर्य ने कांग्रेस में वापसी की तो भी कांग्रेस के अंदर घमासान की स्थिति बन गई. नेता यशपाल आर्य के हरीश रावत के साथ होने की तस्वीरें शाहजहां कर इसके पीछे हरीश रावत की कामयाबी को जाहिर करते रहे. उधर तस्वीरों से दूर पीतम सिंह के खेमे से जुड़े नेता भी हरीश गुट की इस स्ट्रेटजी को समझ कर प्रीतम सिंह का यशपाल आर्य को वापस लाने में हाथ होने की बात बताने लगे. मामले में क्रेडिट लेने की होड़ है और पार्टी के अंदर दोनों ही गुटों में वर्चस्व की लड़ाई तेज है.

बागियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही कांग्रेस की राजनीति.
यहां यशपाल आर्य को कांग्रेस में लाने के लिए क्रेडिट लेने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बागियों को लेकर भी दोनों ही गुटों के अपने-अपने मत हैं. हरीश रावत चाहते हैं कि बागी कांग्रेस से दूर रहें तो प्रीतम सिंह बागियों से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं. इसकी अपनी एक खास वजह भी है. दरअसल हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनसे नाराज होकर ही यह बागी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे. लिहाजा, इन बागियों की वापसी होती है तो हरीश रावत कांग्रेस में कमजोर होंगे. यह बात हरीश रावत भी जानते हैं.

अगर कांग्रेस इन बागियों की वापसी के बाद सत्ता में वापस लौटती है तो बागियों का हरीश रावत को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का हाईकमान पर दबाव भी रहेगा. उधर हरीश रावत के कमजोर होने से प्रीतम सिंह मजबूत हो जाएंगे और मुख्यमंत्री का चेहरे के रूप में भी सबसे मजबूत रहेंगे.

पढ़ें: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का उत्तराखंड दौरा स्थगित, 30 अक्टूबर को घसियारी योजना का करेंगे शुभारंभ

इस मामले पर भाजपा का अपना राजनीतिक मत है. भाजपा मानती है कि कांग्रेस के अंदर सर फुटव्वल चलता ही रहता है और दलबदल के बाद तो दोनों ही धडे खुद को बड़ा और मजबूत दिखाने की कोशिश में तेजी से जुट गए हैं. कांग्रेस के अंदर यह घमासान भाजपा के लिए अच्छे संकेत हैं. लिहाजा भाजपा भी चाहती है कि कांग्रेस में किसी न किसी बात को लेकर विवाद ऐसे ही बना रहे ताकि चुनाव के दौरान इसका फायदा भी भाजपा को मिल सके.

देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव-2022 में कुछ ही समय बचा हुआ है. ऐसे में उत्तराखंड कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई इन दिनों और भी तेज हो गई है. इस बार मामला बागियों के कांग्रेस में वापसी को लेकर है, पिछले दिनों यशपाल आर्य के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर भी हरीश रावत खेमा खुद के नंबर बढ़ाते हुए दिखाई दिए. तो वहीं दूसरी तरफ प्रीतम सिंह गुट इसे अपनी कामयाबी मानता रहा.

कांग्रेस से भाजपा में गए कई दिग्गज नेताओं को करीब 5 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस की राजनीति इन्हीं बागियों के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आती है. कांग्रेस के अंदर गुटबाजी का आलम यह है कि इन्हीं बागियों में से एक यशपाल आर्य और संजीव आर्य ने कांग्रेस में वापसी की तो भी कांग्रेस के अंदर घमासान की स्थिति बन गई. नेता यशपाल आर्य के हरीश रावत के साथ होने की तस्वीरें शाहजहां कर इसके पीछे हरीश रावत की कामयाबी को जाहिर करते रहे. उधर तस्वीरों से दूर पीतम सिंह के खेमे से जुड़े नेता भी हरीश गुट की इस स्ट्रेटजी को समझ कर प्रीतम सिंह का यशपाल आर्य को वापस लाने में हाथ होने की बात बताने लगे. मामले में क्रेडिट लेने की होड़ है और पार्टी के अंदर दोनों ही गुटों में वर्चस्व की लड़ाई तेज है.

बागियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही कांग्रेस की राजनीति.
यहां यशपाल आर्य को कांग्रेस में लाने के लिए क्रेडिट लेने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बागियों को लेकर भी दोनों ही गुटों के अपने-अपने मत हैं. हरीश रावत चाहते हैं कि बागी कांग्रेस से दूर रहें तो प्रीतम सिंह बागियों से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं. इसकी अपनी एक खास वजह भी है. दरअसल हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनसे नाराज होकर ही यह बागी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे. लिहाजा, इन बागियों की वापसी होती है तो हरीश रावत कांग्रेस में कमजोर होंगे. यह बात हरीश रावत भी जानते हैं.

अगर कांग्रेस इन बागियों की वापसी के बाद सत्ता में वापस लौटती है तो बागियों का हरीश रावत को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का हाईकमान पर दबाव भी रहेगा. उधर हरीश रावत के कमजोर होने से प्रीतम सिंह मजबूत हो जाएंगे और मुख्यमंत्री का चेहरे के रूप में भी सबसे मजबूत रहेंगे.

पढ़ें: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का उत्तराखंड दौरा स्थगित, 30 अक्टूबर को घसियारी योजना का करेंगे शुभारंभ

इस मामले पर भाजपा का अपना राजनीतिक मत है. भाजपा मानती है कि कांग्रेस के अंदर सर फुटव्वल चलता ही रहता है और दलबदल के बाद तो दोनों ही धडे खुद को बड़ा और मजबूत दिखाने की कोशिश में तेजी से जुट गए हैं. कांग्रेस के अंदर यह घमासान भाजपा के लिए अच्छे संकेत हैं. लिहाजा भाजपा भी चाहती है कि कांग्रेस में किसी न किसी बात को लेकर विवाद ऐसे ही बना रहे ताकि चुनाव के दौरान इसका फायदा भी भाजपा को मिल सके.

Last Updated : Oct 15, 2021, 8:52 AM IST
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