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जैविक खेती के महत्व को लेकर संगोष्ठी का आयोजन, कृषि नीति विस्तार पर दिया जोर

मसूरी में "पहाड़ों में कृषि एवं जैविक खेती का महत्व" विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में सरकार की कृषि नीति को विस्तार देने व गांव स्तर पर ग्रामीण जैविक उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया.

importance of agriculture and organic farming in the mountains
importance of agriculture and organic farming in the mountains
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Published : Mar 4, 2021, 10:14 PM IST

मसूरीः एक्टिव मीडिया प्रेस क्लब सभागार में पहाड़ों पर कृषि एवं जैविक खेती का महत्व पर आयोजित संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें वक्ताओं ने सरकार की कृषि नीति को विस्तार देने व गांव स्तर पर ग्रामीण जैविक उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने पर जोर दिया, ताकि पहाड़ों से पलायन रुक सके और ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत हो सके.

क्लब सभागार में आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता उद्यान पंडित कुंदन सिंह पंवार ने कहा कि उत्तराखंड सरकार का जैविक परिषद मैन पावर कम होने के बाद भी ग्रामीण उत्पादों को प्रचारित-प्रसारित करने का कार्य कर रहा है, लेकिन राज्य स्थापना के बाद से आज तक जिस गति से इस क्षेत्र में आगे बढना चाहिए था वह नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि जैविक बोर्ड के पास ऐसे संसाधन होने चाहिए कि वह जैविक उत्पाद का परीक्षण एक घंटे में करे. उन्होंने कहा कि जैविक बोर्ड पहले अरबन की जगह ररबन एरिया को चिन्हित करे. उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती को आज भी किया जाता है, उसमें थोड़ा बदलाव किया गया है.

साथ ही उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती को पुराने जमाने में वैदिक खेती के तहत किया जाता था. वहीं, आज के समय में मौसम परिवर्तन का प्रभाव खेती पर पड़ रहा है. ऐसे में ऐसी खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो कि बारिश न होने पर हो व जब बारिश हो तो उस समय भी ऐसी फसलें पैदा की जाएं, जो उस समय हो सके. लेकिन हम पाश्चात्य खेती का पीछा करते-करते अपनी पारंपरिक खेती को भूल गये, जबकि वहां की भौगोलिक स्थित अलग है. वहां की अपनी मजबूरी है, लेकिन हमारी कोई मजबूरी नहीं हैं.

ये भी पढ़ेंः ग्रामीणों की सरकार से मांग, रिंगाल का सामान बेचने को दिलाओ बाजार

वहीं, इस मौके पर उत्तराखंड कृषि विभाग जैविक तकनीकि परिषद के प्रबंधक अमित श्रीवास्तव ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2003 में जैविक तकनीकि परिषद बनी और तब से अब तक यहां के जैविक उत्पादों को देश-विदेश तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है. साथ ही काश्तकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जैविक उत्पाद को बाजार में प्रामाणित कराने के लिए एक परिषद की आवश्यकता महसूस हुई, तब जैविक परिषद का गठन किया गया. वहीं बोर्ड विशेष क्षेत्र में होने वाले फसलों को बढावा देने का कार्य भी कर रहा है. इसके लिए अलग-अलग क्लस्टर बनाये गये हैं. इसमें काश्तकार की फसल बोने से निराई-गुड़ाई व कटाई तक का डाटा एकत्र करता है और उसके बाद उसे प्रमाणित कर प्रमाण पत्र देता है कि यह जैविक उत्पाद है, ताकि इसकी विश्वसनीयता बनी रहे.

इसके साथ ही फसलों के विपणन के लिए हर साल दो बार बायो सेलर मीट करते हैं, ताकि देश भर के व्यवसायी आकर कृषक से वार्ता करें व उसका समर्थन मूल्य तय कर उसे बाजार उपलब्ध कराया जाता है. वहीं देश-विदेश में उत्पाद को पहुंचाने के लिए ट्रांजेक्ट प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, ताकि विश्वनीयता बनी रहेय इस मौके पर उन्होंने सरकार की कृषि संबंधी अनेक योजनाओं की भी जानकारी दी.

इस अवसर पर पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल ने कहा कि बोर्ड बने 17 साल हो गये, लेकिन इसका आज तक ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को पता नहीं है. इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है. इसमें सरकारों का दोष है. वहीं इसके प्रचार-प्रसार में कमी है. उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

मसूरीः एक्टिव मीडिया प्रेस क्लब सभागार में पहाड़ों पर कृषि एवं जैविक खेती का महत्व पर आयोजित संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें वक्ताओं ने सरकार की कृषि नीति को विस्तार देने व गांव स्तर पर ग्रामीण जैविक उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने पर जोर दिया, ताकि पहाड़ों से पलायन रुक सके और ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत हो सके.

क्लब सभागार में आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता उद्यान पंडित कुंदन सिंह पंवार ने कहा कि उत्तराखंड सरकार का जैविक परिषद मैन पावर कम होने के बाद भी ग्रामीण उत्पादों को प्रचारित-प्रसारित करने का कार्य कर रहा है, लेकिन राज्य स्थापना के बाद से आज तक जिस गति से इस क्षेत्र में आगे बढना चाहिए था वह नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि जैविक बोर्ड के पास ऐसे संसाधन होने चाहिए कि वह जैविक उत्पाद का परीक्षण एक घंटे में करे. उन्होंने कहा कि जैविक बोर्ड पहले अरबन की जगह ररबन एरिया को चिन्हित करे. उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती को आज भी किया जाता है, उसमें थोड़ा बदलाव किया गया है.

साथ ही उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती को पुराने जमाने में वैदिक खेती के तहत किया जाता था. वहीं, आज के समय में मौसम परिवर्तन का प्रभाव खेती पर पड़ रहा है. ऐसे में ऐसी खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो कि बारिश न होने पर हो व जब बारिश हो तो उस समय भी ऐसी फसलें पैदा की जाएं, जो उस समय हो सके. लेकिन हम पाश्चात्य खेती का पीछा करते-करते अपनी पारंपरिक खेती को भूल गये, जबकि वहां की भौगोलिक स्थित अलग है. वहां की अपनी मजबूरी है, लेकिन हमारी कोई मजबूरी नहीं हैं.

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वहीं, इस मौके पर उत्तराखंड कृषि विभाग जैविक तकनीकि परिषद के प्रबंधक अमित श्रीवास्तव ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2003 में जैविक तकनीकि परिषद बनी और तब से अब तक यहां के जैविक उत्पादों को देश-विदेश तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है. साथ ही काश्तकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जैविक उत्पाद को बाजार में प्रामाणित कराने के लिए एक परिषद की आवश्यकता महसूस हुई, तब जैविक परिषद का गठन किया गया. वहीं बोर्ड विशेष क्षेत्र में होने वाले फसलों को बढावा देने का कार्य भी कर रहा है. इसके लिए अलग-अलग क्लस्टर बनाये गये हैं. इसमें काश्तकार की फसल बोने से निराई-गुड़ाई व कटाई तक का डाटा एकत्र करता है और उसके बाद उसे प्रमाणित कर प्रमाण पत्र देता है कि यह जैविक उत्पाद है, ताकि इसकी विश्वसनीयता बनी रहे.

इसके साथ ही फसलों के विपणन के लिए हर साल दो बार बायो सेलर मीट करते हैं, ताकि देश भर के व्यवसायी आकर कृषक से वार्ता करें व उसका समर्थन मूल्य तय कर उसे बाजार उपलब्ध कराया जाता है. वहीं देश-विदेश में उत्पाद को पहुंचाने के लिए ट्रांजेक्ट प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, ताकि विश्वनीयता बनी रहेय इस मौके पर उन्होंने सरकार की कृषि संबंधी अनेक योजनाओं की भी जानकारी दी.

इस अवसर पर पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल ने कहा कि बोर्ड बने 17 साल हो गये, लेकिन इसका आज तक ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को पता नहीं है. इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है. इसमें सरकारों का दोष है. वहीं इसके प्रचार-प्रसार में कमी है. उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

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