देहरादून: एडवेंचर का शौक रखने वाले लोगों के लिए पर्वतारोहण सबसे पसंदीदा एक्टिविटी में से एक है. पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड सहित हिमालय से जुड़े सभी इलाकों में माउंटेनियरिंग की मानो होड़ सी मची है. आज हर कोई हिमालय में मौजूद ऊंची-ऊंची आसमान चूमती बर्फीली वादियों का दीवाना है. इन वादियों की दीवानगी इतनी है कि मई 2019 में एवरेस्ट पर लगे पर्वतारोहियों के ट्रैफिक जाम की ख़बर ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बनाई थी. इसी दौरान ये सवाल भी उठने लगे थे कि जिन बर्फीले पहाड़ों से हम अठखेलियां करने का शौक पाल रहे हैं, क्या उन पहाड़ों के बारे में हम उतना जानते हैं भी हैं जितना कि जानना जरूरी है.
माउंटेनियर विजय प्रताप सिंह से खास बातचीत: दरअसल यही सवाल हर एक बड़े हादसे के बाद भी पूछे जाते हैं कि आखिर चूक कहां पर रह गई. यही सब जानने की और एक कुशल पर्वतारोही के क्या सेफ्टी चेक होने चाहिए ? साथ ही बर्फीली चोटी पर जाना इंसान को कितने रिस्क में डाल सकता है, इन सब विषयों पर हमने जानकारी जुटाई. हमने इन सब जानकारियों के लिए बात की उत्तराखंड बेस्ड एडवैंथ्रिल एडवेंचर कंपनी के संचालक और अब तक हिमालय की कई चोटियों को फतह कर चुके विजय प्रताप सिंह से. माउंटेनियर विजय प्रताप पिछले 8 सालों से उत्तराखंड में लगातार माउंटेनिंयरिंग के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
बर्फीले पहाड़ों पर हर एक कदम पर खड़ी होती है मौत: जम्मू कश्मीर से हिमाचल, उत्तराखंड, नेपाल और नॉर्थ ईस्ट तक फैले हिमालय में पर्वतारोहण लंबे समय से हो रहा है. हिमालय की ऊंची ऊंची बर्फीली चोटियों को चूमना हर एक एडवेंचर प्रेमी का सपना होता है. लेकिन यह बर्फीली चोटियां जितनी हसीन होती हैं, उतनी ही ज्यादा खतरनाक भी होती हैं. बर्फीले पहाड़ पर जाने के लिए एक बेहतरीन अभ्यास और कुशल नेतृत्व होना बेहद जरूरी है. ऊंचे ऊंचे आसमान चूमते पहाड़ों पर हर एक कदम बेहद जोखिम भरा हो सकता है.
उत्तराखंड में पिछले कई सालों से माउंटेनियरिंग, ट्रेकिंग कर रहे विजय प्रताप सिंह बताते हैं कि जब वह अपने एक्सपर्टीज के साथ बर्फीले पहाड़ पर जाते हैं तो हर एक कदम पर रिस्क रहता है. माउंटेनियर विजय प्रताप सिंह बताते हैं कि बर्फीले पहाड़ पर उनका अगला कदम कितनी बड़ी खाई के ऊपर मौजूद बर्फ की हल्की चादर पर है यह कोई नहीं जानता है. इसमें कुछ उनका अनुभव और अभ्यास काम करता है और कुछ उनकी किस्मत.
एवलॉन्च आने पर करना होता है सबसे पहले ये काम: एडवेंचर का शौक रखने वालों के सामने मौसम अक्सर उनकी मंजिल का रास्ता रोककर खड़ा रहता है. बर्फीले पहाड़ पर पर्वतारोहण करते हुए इस बात की पूरी पूरी संभावना होती है कि आपका खराब मौसम से सामना होगा और इसी दौरान एक कुशल माउंटेनियर की इन परिस्थितियों से निपटने की ट्रेनिंग भी होती है. पर्वतारोही विजय प्रताप सिंह बताते हैं कि उन्हें ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि जब भी इस तरह की विषम परिस्थितियां हों या फिर कोई एवलॉन्च आए तो उस वक्त एक कुशल पर्वतारोही को बेहद सोच समझकर अपनी प्रतिक्रियाएं करनी चाहिए.
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पर्वतारोही विजय प्रताप बताते हैं कि उन्हें ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि जब भी कोई एवलॉन्च आए तो उस वक्त सबसे पहले अपने आइस एक्स जमीन में मौजूद कठोर बर्फ में फंसा देनी चाहिए और घुटने के बल बैठ जाना चाहिए. ऐसा करने पर एवलॉन्च उनके ऊपर से निकल जाएगा. विजय ये भी बताते हैं कि अक्सर बर्फीले पहाड़ पर पूरी टीम रोप अप होकर चलती है. इस दौरान भी उन्हें अपना और अपने साथियों का ख्याल रखना होता है.
जिंदा रहने के लिए जरूरी सामान रखना होता है साथ: पहाड़ पर चढ़ाई करने से पहले एक कुशल पर्वतारोही को मानसिक रूप से भी पूरा तैयार होना बेहद जरूरी है. पर्वतारोही को आने वाली हर एक परिस्थिति के लिए खुद को तैयार करना होता है. उसे सर्वाइव करने के लिए अपने साथ कुछ जरूरी चीजें भी रखनी होती हैं. पर्वतारोही विजय प्रताप बताते हैं कि जब हम बर्फीली चोटी की तरफ निकलते हैं तो इस बात की पूरी आशंका होती है कि हमें विपरीत और प्रतिकूल परिस्थितियों से होकर गुजरना होगा. इसके लिए हमें पहले से तैयार होना होता है.
खाने का ये सामान रखें साथ: विजय बताते हैं कि हमें अपने साथ पानी, एनर्जी ड्रिंक और चॉकलेट बिस्किट के अलावा कुछ ऐसी चीजें रखनी होती हैं जो कि एनर्जी देने का काम करती रहें. वहीं इसके अलावा यदि कहीं पर फंस जाते हैं तो उस दौरान भी पर्वतारोही के पास कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिए जिनसे उनका एनर्जी लेवल बना रहे. इसके लिए अक्सर पर्वतारोही अपने साथ चॉकलेट, बिस्किट, ड्राई फ्रूट इत्यादि रखते हैं. ताकि वह किसी जगह फंस भी जाते हैं तो वहां पर मदद आने तक अपने जीवन को बचा सकें.
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विश्व स्तरीय सेफ्टी मेजरमेंट की जरूरत: आज के इस दौर में एडवेंचर टूरिज्म की तरफ युवाओं का रुझान बढ़ता हुआ देखने को मिल रहा है. ट्रेकिंग और माउंटेनियरिंग के लिए पिछले कुछ सालों में होड़ सी मच गई है. यही वजह है कि लगातार पर्यटक पहाड़ों का रुख कर रहे हैं. पहाड़ पर आने से पहले पहाड़ को समझना भी बेहद जरूरी है. किसी बर्फीली चोटी पर चढ़ाई करने से पहले एक वेल सेटिस्फाइड ट्रेनिंग और विश्व स्तरीय उपकरण बेहद जरूरी हैं. अगर कहीं पर भी कोई कमी रह जाती है तो उसका खामियाजा बेहद गंभीर हो सकता है.
पर्वतारोही विजय प्रताप बताते हैं कि जब भी किसी पीक पर चढ़ाई की जाती है तो उसके लिए कुछ विशेष तरह के उपकरण होना बेहद जरूरी है. पर्वतारोही विजय प्रताप बताते हैं कि जब भी किसी सम्मिट को किया जाता है तो सम्मिट सूट होना बेहद जरूरी है. इसके अलावा माउंटेनियर को वेल इक्विप्ड होना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड और भारत देश में इनकी बेहद कमी है. यूरोप, नेपाल आदि जो देश माउंटेनियरिंग को लेकर गंभीर हैं, वहां पर कई सारी तकनीक डेवलप की गई हैं जिसमें जोखिम को कम किया जा सकता है और लोगों की जान बचाई जा सकती है.
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द्रौपदी का डांडा की घटना सबक, अभी बहुत कुछ सीखना है: हाल ही में उत्तरकाशी में द्रौपदी का डंडा पर हुई घटना से उत्तराखंड की माउंटेनियरिंग सोसाइटी को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. पर्वतारोही विजय प्रताप बताते हैं कि इस हादसे से हम सब को सीखने की जरूरत है. उनका कहना है कि हमें पर्वतारोहण के क्षेत्र में अभी अपने आप को काफी सुधारने की जरूरत है. बात चाहे विश्वस्तरीय उपकरणों की हो या फिर माउंटेनियरिंग को लेकर किए जाने वाले फोरकास्ट की. उनका कहना है कि उत्तराखंड में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा तो दिया जा रहा है, लेकिन इसके सुरक्षा मानकों और नीति निर्धारण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जो कि एक बड़ी त्रासदी का सबब बन सकता है.
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उत्तराखंड में एवलॉन्च की प्रमुख घटनाएं
- वर्ष 2021 में त्रिशूल चोटी की चढ़ाई के दौरान एवलॉन्च की चपेट में आए नौसेना के पांच पर्वतारोहियों सहित छह की मौत.
- वर्ष 2021 में लम्खागा दर्रे में एवलॉन्च के चलते नौ पर्यटकों की मौत.
- वर्ष 2019 में नंदादेवी चोटी की चढ़ाई के दौरान एवलॉन्च की चपेट में आने से चार विदेशी पर्वतारोहियों सहित आठ की मौत.
- वर्ष 2016 में शिवलिंग चोटी पर दो विदेशी पर्वतारोहियों की मौत एवलॉन्च के चपेट में आने से हो गई.
- वर्ष 2012 में सतोपंथ ग्लेशियर पर क्रेवास में गिरकर आस्ट्रेलिया के एक पर्वतारोही की मौत हो गई.
- वर्ष 2012 में वासुकीताल के पास एवलॉन्च आने से बंगाल के पांच पर्यटकों की मौत.
- वर्ष 2008 में कालिंदीपास में एवलॉन्च आने से बंगाल के तीन पर्वतारोही और पांच पोर्टरों की मौत.
- वर्ष 2005 में सतोपंथ चोटी की चढ़ाई के दौरान एवलॉन्च की चपेट में आने से सेना के एक पर्वतारोही की मौत.
- वर्ष 2005 में चौखंभा में एवलॉन्च से पांच पर्वतारोहियों की मौत.
- वर्ष 2004 में कालिंदीपास में एवलॉन्च से चार पर्वतरोहियों की मौत.
- वर्ष 2004 में गंगोत्री-टू चोटी में एवलॉन्च की वजह से बंगाल के चार पर्वतारोहियों की मौत.
- वर्ष 1999 में थलयसागर चोटी की चढ़ाई के दौरान तीन विदेशी पर्वतारोहियों की मौत.
- वर्ष 1996 में केदारडोम चोटी पर एवलॉन्च के चलते कुमांऊ मंडल के दो पर्वतारोहियों की मौत.
- वर्ष 1996 में भागीरथी-टू चोटी पर एवलॉन्च के चलते दक्षिण कोरिया के एक पर्वतारोही की मौत.
- वर्ष 1990 में केदारडोम चोटी पर एवलॉन्च की चपेट में आने से पांच पर्वतारोहियों की मौत.