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यहां सिर्फ अक्षय तृतीया पर होते हैं भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन, उसी के बाद खुलते हैं गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट

आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जहां भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने के बाद ही गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते है. यहां साल में सिर्फ एक बार भगवान हृषिकेश के चरण के दर्शन होते है.

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भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन
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Published : Apr 22, 2023, 7:30 PM IST

Updated : Apr 22, 2023, 8:00 PM IST

यहां सिर्फ अक्षय तृतीया पर होते हैं भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन

ऋषिकेश: उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है. यहां के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी मान्यता चारधाम यात्रा से जुड़ी हुई है. हर साल अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं इस मंदिर की परिक्रमा करने आते है. माना जाता है कि इस मंदिर की 108 परिक्रमा करने पर भक्त को बदरी विशाल के दर्शन करने जितना सौभाग्य प्राप्त होता है.

जिस मंदिर की हम बात कर रहे है, वो चारधाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में है. ऋषिकेश के भरत मदिंर में भगवान हृषिकेश की पूजा होती है. भगवान हृषिकेश के नाम पर ही इस शहर का नाम ऋषिकेश पड़ा. मान्यता है कि भरत मदिंर में भगवान हृषिकेश के चरण के दर्शन और 108 परिक्रमा व पूर्जा अर्चना के बाद ही गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलते है.
पढ़ें- Chardham Yatra 2023: हर-हर गंगे के जयघोष के साथ खुले गंगोत्री धाम के कपाट, तस्वीरों में देखें पहले दिन का नजारा

केदारखंड में भी भगवान हृषिकेश के भरत मंदिर का जिक्र है. इस मंदिर की 108 परिक्रमा को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है. बता दें कि वैसे तो भरत मंदिर साल भर खुला रहता है, लेकिन भगवान हृषिकेश के चरण विग्रह के दर्शन सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही होते है. इसीलिए यहां हर साल अक्षय तृतीया पर भक्तों की भीड़ लग जाता हैं.

भरत मंदिर का इतिहास: वराह पुराण के अनुसार रैभ्य नाम के मुनि थे, जो ऋषि भारद्वाज का मित्र थे. उन्होंने ऋषिकेश में कठिन तप कर भगवान नारायण को प्रसन्न किया था, जिसके बाद भगवान विष्णु ने आम के पेंड पर बैठ कर मुनि रैभ्य को दर्शन दिये. भगवान विष्णु के भार से आम का वृक्ष झुककर कुबडा हो गया. इसी कारण ऋषिकेश का एक नाम कुब्जाम्रक भी पड़ा.
पढ़ें- Chardham Yatra 2023 शुरू, खुल गए गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट, श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से बरसे फूल

वहीं, स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने मुनि रैभ्य को यह वरदान दिया कि वो कुब्जाम्रक तीर्थ में माता लक्ष्मी के साथ हमेश निवास करेंगे. क्योंकि तुमने अपनी समस्त इन्द्रियों (हृषीक) जीत कर मेरे (ईश के) दर्शन कर लिए है. इसीलिए ये स्थान अब हृषीकेश के नाम से जाना जायेगा.

तब भगवान ने कहा था कि सतयुग में वराह, त्रेता में कृतवीर्य, द्वापर में वामन और कलयुग में जो भरत के नाम से मेरी पूजा अर्चना करेगा उसे नित्य मुक्ति प्राप्त होगी. ये मंदिर ऋषिकेश शहर के बीचों-बीच स्थित है. कुछ लोग इस मंदिर को भगवान राम के छोटे भाई भरत का मंदिर समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है, ये मंदिर भगवान विष्णु का है.

भरत मंदिर के अंदर काली शालिग्राम की शिला की पांच फूट ऊची हृषीकेश नारायण की चतुर्भुजी प्रतिमा है.वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय में भरत महराज की 108 परिक्रमा करने वाले व्यक्ति को बदरी नारायण के दर्शनों के लाभ की प्राप्ति होती है.

यहां सिर्फ अक्षय तृतीया पर होते हैं भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन

ऋषिकेश: उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है. यहां के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी मान्यता चारधाम यात्रा से जुड़ी हुई है. हर साल अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं इस मंदिर की परिक्रमा करने आते है. माना जाता है कि इस मंदिर की 108 परिक्रमा करने पर भक्त को बदरी विशाल के दर्शन करने जितना सौभाग्य प्राप्त होता है.

जिस मंदिर की हम बात कर रहे है, वो चारधाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में है. ऋषिकेश के भरत मदिंर में भगवान हृषिकेश की पूजा होती है. भगवान हृषिकेश के नाम पर ही इस शहर का नाम ऋषिकेश पड़ा. मान्यता है कि भरत मदिंर में भगवान हृषिकेश के चरण के दर्शन और 108 परिक्रमा व पूर्जा अर्चना के बाद ही गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलते है.
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केदारखंड में भी भगवान हृषिकेश के भरत मंदिर का जिक्र है. इस मंदिर की 108 परिक्रमा को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है. बता दें कि वैसे तो भरत मंदिर साल भर खुला रहता है, लेकिन भगवान हृषिकेश के चरण विग्रह के दर्शन सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही होते है. इसीलिए यहां हर साल अक्षय तृतीया पर भक्तों की भीड़ लग जाता हैं.

भरत मंदिर का इतिहास: वराह पुराण के अनुसार रैभ्य नाम के मुनि थे, जो ऋषि भारद्वाज का मित्र थे. उन्होंने ऋषिकेश में कठिन तप कर भगवान नारायण को प्रसन्न किया था, जिसके बाद भगवान विष्णु ने आम के पेंड पर बैठ कर मुनि रैभ्य को दर्शन दिये. भगवान विष्णु के भार से आम का वृक्ष झुककर कुबडा हो गया. इसी कारण ऋषिकेश का एक नाम कुब्जाम्रक भी पड़ा.
पढ़ें- Chardham Yatra 2023 शुरू, खुल गए गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट, श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से बरसे फूल

वहीं, स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने मुनि रैभ्य को यह वरदान दिया कि वो कुब्जाम्रक तीर्थ में माता लक्ष्मी के साथ हमेश निवास करेंगे. क्योंकि तुमने अपनी समस्त इन्द्रियों (हृषीक) जीत कर मेरे (ईश के) दर्शन कर लिए है. इसीलिए ये स्थान अब हृषीकेश के नाम से जाना जायेगा.

तब भगवान ने कहा था कि सतयुग में वराह, त्रेता में कृतवीर्य, द्वापर में वामन और कलयुग में जो भरत के नाम से मेरी पूजा अर्चना करेगा उसे नित्य मुक्ति प्राप्त होगी. ये मंदिर ऋषिकेश शहर के बीचों-बीच स्थित है. कुछ लोग इस मंदिर को भगवान राम के छोटे भाई भरत का मंदिर समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है, ये मंदिर भगवान विष्णु का है.

भरत मंदिर के अंदर काली शालिग्राम की शिला की पांच फूट ऊची हृषीकेश नारायण की चतुर्भुजी प्रतिमा है.वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय में भरत महराज की 108 परिक्रमा करने वाले व्यक्ति को बदरी नारायण के दर्शनों के लाभ की प्राप्ति होती है.

Last Updated : Apr 22, 2023, 8:00 PM IST
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