देहरादून: उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीत चुकी है और अब मुख्यमंत्री चेहरे की तलाश के लिए कसरत देहरादून से दिल्ली तक जारी है. मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार पुष्कर सिंह धामी थे. लेकिन पुष्कर धामी के चुनाव हारने के बाद सारे समीकरण बदल गए हैं. अब मुख्यमंत्री के लिए प्रदेश के कई नेता सीएम के लिए दावेदार माने जा रहे हैं. हालांकि, उन नेताओं के साथ कई फैक्टर भी जुड़े हैं. आइये जानते हैं कि आखिर उनको मुख्यमंत्री क्यों बनाया जाए ?
पुष्कर सिंह धामी
चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार पुष्कर सिंह धामी थे. धामी की दावेदारी इसलिए भी मजबूत लगातार मानी जा रही थी क्योंकि चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी ने खुले मंच से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पुष्कर सिंह धामी की घोषणा की थी. पूरा चुनाव पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर लड़ा गया. तमाम मंचों पर पीएम मोदी सहित केंद्र के हर एक नेता ने पुष्कर सिंह धामी की पीठ थपथपाई और उन्हें कमान सौंपने की बात कही थी. पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट पर चुनाव जीते होते तो आज शायद यह विषय चर्चा का रहता ही नहीं लेकिन पुष्कर धामी के चुनाव हारने के बाद सीएम की कुर्सी के लिए उनकी दावेदारी को कमजोर माना जा रहा है.
पुष्कर सिंह धामी का फैक्टर: सीएम की कुर्सी और पुष्कर धामी के बीच आड़े आने वाले फैक्टर की अगर बात करें तो सबसे ज्यादा विरोध इस बात का हो रहा है कि जिस व्यक्ति को जनता ने नकार दिया है. उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी कैसे दी जा सकती है? वहीं, दूसरी तरफ पार्टी के लिए फॉर्मेट से बाहर जाना भी कहीं ना कहीं आड़े आ सकता है. क्योंकि मिसाल के तौर पर हिमाचल में भी बीजेपी के सीएम चेहरे प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे और उसके बाद जयराम ठाकुर को भाजपा ने हिमाचल की कमान सौंपी.
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2017 में अजय भट्ट बड़ा उदाहरण: पिछले विधानसभा चुनाव 2017 में पूरा चुनाव अजय भट्ट के चेहरे पर लड़ा गया लेकिन चुनाव हारने के बाद पार्टी अपने फॉर्मेट से बाहर नहीं गई और जीते हुए विधायकों में से ही मुख्यमंत्री बनाया गया. वर्तमान में पार्टी में मौजूद कई वरिष्ठ नेताओं के रहते कम अनुभव वाले धामी को कुर्सी थामना भी एक बड़ी बात है. ऐसे में पुष्कर सिंह धामी के लिए कुछ फैक्टर आड़े आ रहे हैं, जहां से उनकी दावेदारी मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कमजोर मानी जा रही है.
सतपाल महाराज
दूसरे नंबर पर अगर जीत कर आए विधायकों में से मुख्यमंत्री बनाने की बात आई तो लाइन में सबसे आगे चौबट्टाखाल से चुनाव जीतकर आए कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज हैं. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि वह दो बार सांसद और केंद्र में रेल और वित्तीय मंत्री रह चुके हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का नजरिया: राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि सतपाल महाराज भाजपा में आए ही केवल मुख्यमंत्री बनने थे. जय सिंह रावत बताते हैं कि सतपाल महाराज का व्यक्तित्व बेहद बड़ा है. ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के लिए सतपाल महाराज को श्रेया जाता है और सतपाल महाराज अंतरराष्ट्रीय छवि के व्यक्ति है लेकिन सतपाल महाराज और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच आने वाले क्या फैक्टर हैं इनके बारे में भी जान लीजिए.
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सतपाल महाराज के फैक्टर: सतपाल महाराज का बड़ा व्यक्तित्व ही उनके मुख्यमंत्री बनने में सबसे ज्यादा आड़े आ रहा है. सतपाल महाराज एक वैश्विक छवि के व्यक्ति हैं और वह आध्यात्म से भी जुड़े हुए हैं. ऐसे में वह जहां एक तरफ केंद्रीय नेताओं के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अध्यात्म से जुड़े होने की वजह से उनकी बड़ी छवि कहीं ना कहीं उन्हें जन सामान्य लोगों से उतना कनेक्ट नहीं कर पाती है. दूसरी तरफ अध्यात्म से जुड़े होने की वजह से सतपाल महाराज अपने धार्मिक क्षेत्र में एक जनकल्याण मिशन लेकर चलते हैं, यही वजह है कि उन्हें पार्ट टाइम पॉलीटिशियन भी कहा जाता है. महाराज का कद ही उनके लिए बाधक बन सकता है.
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक
उत्तराखंड में अगर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की बात करें तो सबसे आगे रमेश पोखरियाल निशंक का नाम आता है, जोकि उत्तर प्रदेश के समय से ही कैबिनेट मंत्री रहे हैं. हाल ही में वह केंद्रीय कैबिनेट से फ्री हुए हैं. उत्तराखंड में भी पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं, तो ऐसे में रमेश पोखरियाल निशंक से सीनियर और अनुभवी नेता उत्तराखंड में कोई नहीं है.
कराने पड़ेंगे दो उपचुनाव: अगर पार्टी जीत कर आए विधायकों के बाहर से एक अनुभवी नेता चाहेगी, तो उसमें निशंक का नाम हो सकता है. हालांकि रमेश पोखरियाल निशंक को अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी दी जाती है तो प्रदेश में दो और उप चुनाव करवाने पड़ेंगे. क्योंकि निशंक हरिद्वार राज्यसभा सीट से सांसद भी है. ऐसे में क्या पार्टी ये फैसला लेगी यह भी बड़ा सवाल है लेकिन निशंक के आगे कौन से फैक्टर आ रहे हैं उनके बारे में भी जान लेते हैं.
निशंक के फैक्टर: मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का चेहरा घोषित करना पार्टी के लिए वही बात हो जाएगी की जीत कर आए विधायकों में से कोई मुख्यमंत्री के काबिल नहीं है. ऊपर से दो उप चुनाव करवाने पड़ेंगे. कहा जाता है कि रमेश पोखरियाल निशंक को केंद्रीय कैबिनेट से हटाया गया, जिसके पीछे उनकी परफॉर्मेंस भी एक वजह हो सकती है. इसके अलावा उनके स्वास्थ्य को लेकर के भी पार्टी की काफी चिंताएं बढ़ी हुई रहती है. ऐसे में क्या उन्हें प्रदेश की कमान दी जाएगी, यह भी सोचने वाली बात होगी.
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मदन कौशिक
यह बात बिल्कुल भी हैरान करने वाली नहीं है कि भाजपा ने उत्तराखंड में हमेशा अपने फैसलों से सबको चौंकाया है. मुख्यमंत्री के लिए जब गढ़वाल सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत का नाम आगे आया, तो उस समय किसी ने सोचा तक भी नहीं था कि तीरथ सिंह का नाम भी मुख्यमंत्री के लिए सामने आ सकता है. ऐसा ही जब पिछली सरकार में तीसरी बार मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हुई तो पुष्कर सिंह धामी ने भी यह नहीं सोचा था कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उत्तराखंड में लगातार अपनी बेहतर परफॉर्मेंस दे रहे पार्टी के अध्यक्ष पद पर मौजूद मदन कौशिक को लेकर भी पार्टी विचार कर सकती है. हालांकि उत्तराखंड का एक बड़ा तबका पहाड़ और मैदान के समीकरण की दुहाई देते हुए इस बात से परहेज ही करता है लेकिन यह भाजपा है यहां कुछ भी हो सकता है. हालांकि, मदन कौशिक और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच में आने वाले कुछ फैक्टर्स कि अगर बात करें तो वह जानने भी जरूरी है.
मदन कौशिक के फैक्टर: दिल्ली में मौजूद आलाकमान की नजर में पहाड़ और मैदान के मायने उतनी हो या ना हो लेकिन उत्तराखंड में मौजूद हर एक व्यक्ति के लिए उसके बड़े मायने हैं. उत्तराखंड में लोगों के लिए मदन कौशिक को लेकर सबसे बड़ा फैक्टर यही है कि वह मैदान से आते हैं. दूसरी बात अगर हम मौजूदा हालातों की बात करें तो इस वक्त मदन कौशिक के ऊपर कई प्रत्याशियों ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं. उन गंभीर आरोप लगाने के बाद उन प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा है. चाहे लक्सर से संजय गुप्ता की बात हो, किच्छा से राजेश शुक्ला की बात हो या फिर यमुनोत्री से केदार रावत. इन सभी लोगों ने मदन कौशिक पर गंभीर आरोप लगाए थे, तो वहीं मदन कौशिक कहीं ना कहीं से विवादों में घिरे रहते हैं. ऐसे में पार्टी उन पर विचार करेगी कहना मुश्किल है.