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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: तमाम दावों के बीच हालात अभी भी चिंताजनक, कब बदलेगी शिक्षा की तस्वीर?

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का आंकलन करना जरूरी है. क्योंकि एक तरफ जहां केंद्र सरकार शिक्षा पर अरबो रुपए खर्च करती है. लेकिन आंकड़े शिक्षा की बदतर हालात की तरफ इशारा करते हैं.

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर स्पेशल रिपोर्ट
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Published : Nov 11, 2019, 12:56 PM IST

Updated : Nov 11, 2019, 3:12 PM IST

देहरादून: आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का आंकलन करना जरूरी है. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शिक्षा के तमाम दावों के बीच हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए है. प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

तमाम दावों के बीच शिक्षा के हालात अभी भी चिंताजनक

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस पर मानव संसाधन मंत्रालय ने शिक्षा दिवस मनाने का फैसला किया था. लेकिन, अबुल कलाम आजाद की उस सोच को शिक्षा के क्षेत्र में आज तक नहीं उतारा गया. जिसका मकसद देश को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय बनाना था. प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के हालात पर गौर करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर नजर दौड़ाएं तो परिणाम संतोषजनक ही दिखाई देते हैं. एडवर्ड स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि देश में कक्षा आठ के 44% बच्चे ही 1 से भाग देने में सक्षम है. यही नहीं कक्षा 8 के 73% बच्चे ही कक्षा दो की किताब पढ़ सकते हैं.

पढ़ेंः शहीद स्थल पहुंचे सीएम, मसूरी को दी कई सौगात

अब जरा सोचिए, देश के जिन नौनिहालों का शिक्षा स्तर ऐसा हो तो वहां शिक्षा को कहां देखा जाएगा? ये हालत तब है जब भारत सरकार शिक्षा में अरबों रुपए का बजट खर्च कर रही है. वहीं, इससे उलट देश में शिक्षा के अधिकार समेत दूसरी कई योजनाओं को लेकर सरकारें अपनी पीठ थपथपाती रही हैं. शिक्षक भी शिक्षा की आज की स्थितियां बेहतर मानते हैं. शिक्षकों की मानें तो बीते सालों की तुलना में अब शिक्षा के हालात बेहतर हुए हैं. योजनाओं की संख्या भी बेहद ज्यादा हो गई है. ऐसे में ये कहा नहीं जा सकता कि गुणवत्ता कम हुई है. शिक्षक कहते हैं कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की क्वालिफिकेशन प्राइवेट से कहीं भी कमतर नहीं है.

पढ़ेंः अटल आयुष्मान योजना फर्जीवाड़े में बड़ी कार्रवाई, डॉक्टर समेत 2 संचालकों पर केस


जमीनी हकीकत पर नजर दौड़ाएं तो शिक्षा की गुणवत्ता प्रदेश के स्कूलों में खत्म सी हो गई है. ऐसा हम नहीं बल्कि एडवर्ड स्टेटस ऑफ एजुकेशन 2018 की रिपोर्ट बयां करती है. रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में कक्षा 8 तक के बच्चे पहली क्लास का स्तर ज्ञान भी नहीं रखते. ऐसे बच्चों की संख्या 10% मानी जा रही है. प्रदेश में सरकारी स्कूलों के हालात ऐसे हैं कि राज्य के कुल 10% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर मौजूद है. प्रदेश के 14 हजार 416 सरकारी स्कूलों में से 25 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट तक नहीं हैं. स्कूल छोड़ने के मामले में भी बच्चों की संख्या बेहद ज्यादा है. राज्य में 6 से 14 साल के बच्चों के जहां 1.5% बच्चे स्कूल नहीं जा पाते तो 15 से 16 साल तक के बच्चों में ये आंकड़ा बढ़कर 7.11 प्रतिशत हो जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर 2 लाख से भी ज्यादा शिक्षकों की कमी है. यही हाल प्रदेश का भी है.

देहरादून: आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का आंकलन करना जरूरी है. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शिक्षा के तमाम दावों के बीच हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए है. प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

तमाम दावों के बीच शिक्षा के हालात अभी भी चिंताजनक

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस पर मानव संसाधन मंत्रालय ने शिक्षा दिवस मनाने का फैसला किया था. लेकिन, अबुल कलाम आजाद की उस सोच को शिक्षा के क्षेत्र में आज तक नहीं उतारा गया. जिसका मकसद देश को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय बनाना था. प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के हालात पर गौर करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर नजर दौड़ाएं तो परिणाम संतोषजनक ही दिखाई देते हैं. एडवर्ड स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि देश में कक्षा आठ के 44% बच्चे ही 1 से भाग देने में सक्षम है. यही नहीं कक्षा 8 के 73% बच्चे ही कक्षा दो की किताब पढ़ सकते हैं.

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अब जरा सोचिए, देश के जिन नौनिहालों का शिक्षा स्तर ऐसा हो तो वहां शिक्षा को कहां देखा जाएगा? ये हालत तब है जब भारत सरकार शिक्षा में अरबों रुपए का बजट खर्च कर रही है. वहीं, इससे उलट देश में शिक्षा के अधिकार समेत दूसरी कई योजनाओं को लेकर सरकारें अपनी पीठ थपथपाती रही हैं. शिक्षक भी शिक्षा की आज की स्थितियां बेहतर मानते हैं. शिक्षकों की मानें तो बीते सालों की तुलना में अब शिक्षा के हालात बेहतर हुए हैं. योजनाओं की संख्या भी बेहद ज्यादा हो गई है. ऐसे में ये कहा नहीं जा सकता कि गुणवत्ता कम हुई है. शिक्षक कहते हैं कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की क्वालिफिकेशन प्राइवेट से कहीं भी कमतर नहीं है.

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जमीनी हकीकत पर नजर दौड़ाएं तो शिक्षा की गुणवत्ता प्रदेश के स्कूलों में खत्म सी हो गई है. ऐसा हम नहीं बल्कि एडवर्ड स्टेटस ऑफ एजुकेशन 2018 की रिपोर्ट बयां करती है. रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में कक्षा 8 तक के बच्चे पहली क्लास का स्तर ज्ञान भी नहीं रखते. ऐसे बच्चों की संख्या 10% मानी जा रही है. प्रदेश में सरकारी स्कूलों के हालात ऐसे हैं कि राज्य के कुल 10% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर मौजूद है. प्रदेश के 14 हजार 416 सरकारी स्कूलों में से 25 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट तक नहीं हैं. स्कूल छोड़ने के मामले में भी बच्चों की संख्या बेहद ज्यादा है. राज्य में 6 से 14 साल के बच्चों के जहां 1.5% बच्चे स्कूल नहीं जा पाते तो 15 से 16 साल तक के बच्चों में ये आंकड़ा बढ़कर 7.11 प्रतिशत हो जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर 2 लाख से भी ज्यादा शिक्षकों की कमी है. यही हाल प्रदेश का भी है.

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summary- राष्ट्रीय शिक्षा दिवस.. एक ऐसा दिन जिस पर देश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर आकलन होना लाजमी है.. लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में फिर आंकड़े मायूसी भरे हैं..न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भी हालात चिंताजनक है..देखिये शिक्षा दिवस पर ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट...


Body:देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस पर मानव संसाधन मंत्रालय ने शिक्षा दिवस मनाने का फैसला तो किया लेकिन अबुल कलाम आजाद की उस सोच को शिक्षा के क्षेत्र में नहीं उतारा गया.. जिसका मकसद देश को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय बनाना था... उत्तराखंड के शिक्षा व्यवस्था के हालातों से पहले राष्ट्रीय स्तर पर नजर दौड़ाये तो परिणाम संतोषजनक तक ही दिखाई देते हैं.. एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि देश में कक्षा आठ के 44% बच्चे ही 1 से भाग देने में सक्षम है... यही दही कक्षा 8 के 73% बच्चे ही कक्षा दो की किताब पढ़ सकते हैं.. सोचिए देश के जिन नौनिहालों के हालात शिक्षा के मामले में ऐसे हो वहां शिक्षा के स्तर को कहा देखा जाएगा... यह हालत तब है जब भारत सरकार शिक्षा में अरबों रुपए का बजट खर्च कर रही है... और देश में शिक्षा के अधिकार समेत दूसरी कई योजनाओं को लेकर अपनी पीठ भी सरकारें थपथपा रही है... शिक्षक भी शिक्षा को लेकर स्थितियां बेहतर मानते हैं.. शिक्षकों की बारे तो बीते सालों की तुलना में अब शिक्षा के हालात बेहतर हुए हैं और योजनाओं की संख्या भी बेहद ज्यादा हो गई है... ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि गुणवत्ता कम हुई है और छात्रों को बेहतर शिक्षा स्कूलों में नहीं मिल रही है... यही नहीं तुलनात्मक आकलन करते हुए शिक्षक कहते हैं कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की क्वालिफिकेशन प्राइवेट से कहीं भी कमतर नहीं है।

बाइट-भावना नैथानी ,शिक्षक

जब राष्ट्रीय स्तर पर यह हालात हो तो राज्यों के हालात भी बेहतर होना मुमकिन नहीं है.. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड मैं तो हालात इससे भी खराब है.. शिक्षा की गुणवत्ता तो मानो प्रदेश के स्कूलों में खत्म सी हो गई है... ऐसा हम नहीं बल्कि एडवर्ड स्टेटस ऑफ एजुकेशन 2018 की रिपोर्ट बयां करती है... रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में कक्षा 8 तक के बच्चे पहली क्लास का स्तर भी नहीं रखते... ऐसे बच्चों की संख्या 10% मानी जा रही है... प्रदेश में सरकारी स्कूलों के हालात ऐसे हैं कि राज्य के कुल 10% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर मौजूद है... प्रदेश के 14416 सरकारी स्कूलों में से 25 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट तक नहीं बनाए गए हैं... स्कूल छोड़ने के मामले में भी बच्चों की संख्या बेहद ज्यादा है.. राज्य में 6 से 14 साल के बच्चों के जहां 1.5% बच्चे स्कूल नहीं जाते तो 15 से 16 साल तक के बच्चों में यह आंकड़ा बढ़कर 7.11 हो जाती है।। राष्ट्रीय स्तर पर 200000 से भी ज्यादा शिक्षकों की कमी बताई जाती है... तो उत्तराखंड में भी शिक्षकों की भारी कमी है...



पीटीसी नबीन उनियाल...ईटीवी भारत


Conclusion:
Last Updated : Nov 11, 2019, 3:12 PM IST
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