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उत्तराखंड में अतिक्रमण पर सियासत तेज, कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने

उत्तराखंड में अतिक्रमण के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है. पिछले दिनों हल्द्वानी और अब विकासनगर में अवैध कब्जाधारियों के आशियाने गिराए जा रहे हैं. लेकिन इसको लेकर कांग्रेस और बीजेपी में जुबानी जंग जारी है. जिससे प्रदेश की राजनीति सियासत गरमा गई है.

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उत्तराखंड में अतिक्रमण पर सियासत तेज
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Published : Mar 25, 2023, 5:44 PM IST

उत्तराखंड में अतिक्रमण पर सियासत तेज

देहरादून: उत्तराखंड में अतिक्रमण के खिलाफ लगातार कार्रवाई जारी है. पिछले दिनों हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में अतिक्रमणकारियों की मुश्किलें प्रशासन ने बढ़ा रखी थी. वहीं, अब देहरादून के विकासनगर में अवैध कब्जाधारियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दअरसल, इन दिनों प्रशासन शक्तिनहर के किनारे जल विद्युत निगम की जमीनों पर हुए अतिक्रमण को खाली कराने में जुटा है. जेसीबी की मदद से यूजेवीएनएल की जमीनों को खाली कराया जा रहा है. वहीं, अब इस मामले में उत्तराखंड में सियासी जंग शुरू हो गई है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर कौन पहले इन लोगों को बसाता और फिर उजाड़ता है?

उत्तराखंड में प्रशासन की इस कार्रवाई से 600 से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं. गरीब और बेसहारा लोग अब सिर छुपाने की जगह तलाश रहे हैं, लेकिन न प्रशासन और न शासन से उन्हें कोई मदद मिल रही है. बेघर हुए लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है. बता दें कि उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में अवैध बस्तियां बसी हुई है. इनमें से कई सरकारी जमीनों पर भी अतिक्रमणकारियों ने कब्जा किया हुआ है.
ये भी पढ़ें: संविधान, लोकतंत्र और विपक्ष बचाने को लेकर सर्वदलीय बैठक, 14 अप्रैल को एकजुट होगा विपक्ष

गौरतलब है कि पिछले कई सालों से लोग विकासनगर में शक्ति नहर के किनारे बसे हुए हैं. इस दौरान इन लोगों को बिजली और पानी कनेक्शन सहित तमाम सरकारी सुविधाएं भी मिल रही थी. बावजूद इसके प्रशासन अचानक जेसीबी ले जाकर लोगों के आशियाने को एक ही झटके में तोड़ रहा है. जिसको लेकर उत्तराखंड में सियासत गरम है.

बीजेपी का कहना है कि जहां भी अतिक्रमण होता है, उन अतिक्रमण को कानूनी रूप से हटाने का काम किया जाता है. इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है. यदि कांग्रेस अपने शासनकाल में लोगों को ऐसे ना बसाती तो, आज ये स्थिति ना होती. जबकि कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी तानाशाही तरीके से काम कर रही है.

प्रदेश में अवैध अतिक्रमण और उसके खिलाफ कार्रवाई होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर कौन इन लोगों को बसाता है. वहीं, अतिक्रमण के समय आखिर ये जल विद्युत निगम और रेलवे के अधिकारी कहां इतने सालों तक सोए रहते हैं, जो इन्हें अपनी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण नहीं दिखाई देता. आखिर क्यों सरकार कोई ऐसी नीति नहीं बनाती, जिससे सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण न हो और लोगों को उजाड़ा ना जाए. ऐसे में देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कुछ करती है?

उत्तराखंड में अतिक्रमण पर सियासत तेज

देहरादून: उत्तराखंड में अतिक्रमण के खिलाफ लगातार कार्रवाई जारी है. पिछले दिनों हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में अतिक्रमणकारियों की मुश्किलें प्रशासन ने बढ़ा रखी थी. वहीं, अब देहरादून के विकासनगर में अवैध कब्जाधारियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दअरसल, इन दिनों प्रशासन शक्तिनहर के किनारे जल विद्युत निगम की जमीनों पर हुए अतिक्रमण को खाली कराने में जुटा है. जेसीबी की मदद से यूजेवीएनएल की जमीनों को खाली कराया जा रहा है. वहीं, अब इस मामले में उत्तराखंड में सियासी जंग शुरू हो गई है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर कौन पहले इन लोगों को बसाता और फिर उजाड़ता है?

उत्तराखंड में प्रशासन की इस कार्रवाई से 600 से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं. गरीब और बेसहारा लोग अब सिर छुपाने की जगह तलाश रहे हैं, लेकिन न प्रशासन और न शासन से उन्हें कोई मदद मिल रही है. बेघर हुए लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है. बता दें कि उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में अवैध बस्तियां बसी हुई है. इनमें से कई सरकारी जमीनों पर भी अतिक्रमणकारियों ने कब्जा किया हुआ है.
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गौरतलब है कि पिछले कई सालों से लोग विकासनगर में शक्ति नहर के किनारे बसे हुए हैं. इस दौरान इन लोगों को बिजली और पानी कनेक्शन सहित तमाम सरकारी सुविधाएं भी मिल रही थी. बावजूद इसके प्रशासन अचानक जेसीबी ले जाकर लोगों के आशियाने को एक ही झटके में तोड़ रहा है. जिसको लेकर उत्तराखंड में सियासत गरम है.

बीजेपी का कहना है कि जहां भी अतिक्रमण होता है, उन अतिक्रमण को कानूनी रूप से हटाने का काम किया जाता है. इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है. यदि कांग्रेस अपने शासनकाल में लोगों को ऐसे ना बसाती तो, आज ये स्थिति ना होती. जबकि कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी तानाशाही तरीके से काम कर रही है.

प्रदेश में अवैध अतिक्रमण और उसके खिलाफ कार्रवाई होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर कौन इन लोगों को बसाता है. वहीं, अतिक्रमण के समय आखिर ये जल विद्युत निगम और रेलवे के अधिकारी कहां इतने सालों तक सोए रहते हैं, जो इन्हें अपनी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण नहीं दिखाई देता. आखिर क्यों सरकार कोई ऐसी नीति नहीं बनाती, जिससे सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण न हो और लोगों को उजाड़ा ना जाए. ऐसे में देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कुछ करती है?

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