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सोशल मीडिया पर बिछ रही सियासी बिसात, गड़ी राजनीतिक दलों की नजर - देहरादून न्यूज

सोशल मीडिया से लोगों के जीवन में काफी बदलाव आया है. जिससे लोग अपनी बात दूसरों तक आसानी से पहुंचाते हैं. बदलते दौर में राजनीतिक दल भी जमकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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Published : Aug 20, 2020, 5:47 PM IST

देहरादून: भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया की फैलती चादर में राजनीतिक दलों ने भी पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. सत्ताधारी पार्टी हो या फिर विपक्ष दल सभी सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. खासकर ऐसे समय में जब नेता कोरोना के डर से जनता के बीच में जाकर अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं. ऐसे हालात में राजनीतिक पार्टियों के लिए सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म मुफीद साबित हो रही है.

सोशल मीडिया पर बिछ रही सियासी बिसात.

आज के समय में सोशल मीडिया न सिर्फ जनता तक पहुंचने का एक प्लेटफॉर्म बन गया है. चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का उपयोग किसी से छुपा नहीं है, जिससे सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां जनता तक पहुंचने का प्रयास करती हैं. इसीलिए राजनीतिक दल सोशल मीडिया को लेकर पहले से ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं. इसका एक उदाहरण कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान से लगाया जा सकता है कि जिसमें उन्होंने ट्वीट कर आरोप लगाया था कि भारत में फेसबुक और वाट्सएप पर बीजेपी और आरएसएस का नियंत्रण है.

पढ़ें- क्या संसदीय समिति फेसबुक को समन कर सकती है ? शशि थरूर ने दिए संकेत

सोशल मीडिया के जरिए न सिर्फ राजनीति पार्टियां लोगों के बीच अपनी पैठ बैठा रही है, बल्कि अपना एजेंडा भी जन-जन तक पहुंचा रही हैं. फेसबुक जैसे तमाम प्लेटफॉर्म राजनीतिक दलों के लिए विज्ञापनों के लिहाज से एक बेहतरीन मंच के तौर पर उभरा है. यहीं कारण है कि राजनीति पार्टियों के कार्यकर्ता आजकल चुनाव गलियों-मोहल्लों से ज्यादा सोशल मीडिया पर बहस करते दिखाई देते हैं. राजीतिक दलों के प्रतिनिधि सोशल मीडिया पर फॉलोअर बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. इसके अलावा अब कुछ जनप्रतिनिधि फेसबुक, इंस्टाग्राम के अलावा अब ट्वीटर पर भी आकर अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगे हैं.

उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं. जिसके लिए सोशल मीडिया पर अभी से भूमिका बननी शुरू हो गई है. उत्तराखंड में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय है. हालांकि प्रदेश में दोनों पार्टियां (कांग्रेस-बीजेपी) सोशल मीडिया के जरिए अपना जनाधार मजबूत करने में लगी है.

पढ़ें- यौन उत्पीड़न केस: विधायक ने दर्ज कराया बयान, महिला का आरोप- मुंह बंद रखने के लिये ऑफर हुए 25 लाख

बीजेपी ने तो प्रदेश मुख्यालय में सोशल मीडिया पर पार्टी की गतिविधियों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए बाकायदा एक आईटी सेल गठित किया गया है. बीजेपी के प्रवक्ता विनय गोयल का मानना है कि टेक्नॉलॉजी के युग सोशल मीडिया आज अहम किरदार निभा रहा है.

वहीं कांग्रेस भी इस मामले मे बीजेपी से पीछे नहीं रहना चाहती है. कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में करीब आधा दर्जन से ज्यादा पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया पर पार्टी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी दी गई है. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि सोशल मीडिया न सिर्फ संगठनात्मक मूवमेंट को जन-जन तक पहुंचाने में सहायक साबित हो रहा है. वहीं व्यक्ति नेता भी सोशल मीडिया पर अपने आप को मजबूत कर रहे हैं.

देहरादून: भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया की फैलती चादर में राजनीतिक दलों ने भी पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. सत्ताधारी पार्टी हो या फिर विपक्ष दल सभी सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. खासकर ऐसे समय में जब नेता कोरोना के डर से जनता के बीच में जाकर अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं. ऐसे हालात में राजनीतिक पार्टियों के लिए सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म मुफीद साबित हो रही है.

सोशल मीडिया पर बिछ रही सियासी बिसात.

आज के समय में सोशल मीडिया न सिर्फ जनता तक पहुंचने का एक प्लेटफॉर्म बन गया है. चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का उपयोग किसी से छुपा नहीं है, जिससे सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां जनता तक पहुंचने का प्रयास करती हैं. इसीलिए राजनीतिक दल सोशल मीडिया को लेकर पहले से ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं. इसका एक उदाहरण कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान से लगाया जा सकता है कि जिसमें उन्होंने ट्वीट कर आरोप लगाया था कि भारत में फेसबुक और वाट्सएप पर बीजेपी और आरएसएस का नियंत्रण है.

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सोशल मीडिया के जरिए न सिर्फ राजनीति पार्टियां लोगों के बीच अपनी पैठ बैठा रही है, बल्कि अपना एजेंडा भी जन-जन तक पहुंचा रही हैं. फेसबुक जैसे तमाम प्लेटफॉर्म राजनीतिक दलों के लिए विज्ञापनों के लिहाज से एक बेहतरीन मंच के तौर पर उभरा है. यहीं कारण है कि राजनीति पार्टियों के कार्यकर्ता आजकल चुनाव गलियों-मोहल्लों से ज्यादा सोशल मीडिया पर बहस करते दिखाई देते हैं. राजीतिक दलों के प्रतिनिधि सोशल मीडिया पर फॉलोअर बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. इसके अलावा अब कुछ जनप्रतिनिधि फेसबुक, इंस्टाग्राम के अलावा अब ट्वीटर पर भी आकर अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगे हैं.

उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं. जिसके लिए सोशल मीडिया पर अभी से भूमिका बननी शुरू हो गई है. उत्तराखंड में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय है. हालांकि प्रदेश में दोनों पार्टियां (कांग्रेस-बीजेपी) सोशल मीडिया के जरिए अपना जनाधार मजबूत करने में लगी है.

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बीजेपी ने तो प्रदेश मुख्यालय में सोशल मीडिया पर पार्टी की गतिविधियों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए बाकायदा एक आईटी सेल गठित किया गया है. बीजेपी के प्रवक्ता विनय गोयल का मानना है कि टेक्नॉलॉजी के युग सोशल मीडिया आज अहम किरदार निभा रहा है.

वहीं कांग्रेस भी इस मामले मे बीजेपी से पीछे नहीं रहना चाहती है. कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में करीब आधा दर्जन से ज्यादा पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया पर पार्टी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी दी गई है. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि सोशल मीडिया न सिर्फ संगठनात्मक मूवमेंट को जन-जन तक पहुंचाने में सहायक साबित हो रहा है. वहीं व्यक्ति नेता भी सोशल मीडिया पर अपने आप को मजबूत कर रहे हैं.

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