देहरादूनः कोरोना संकट के बीच आगामी 3 अगस्त को भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व रक्षाबंधन मनाया जाएगा. इस दिन सावन का अंतिम यानी 5वां सोमवार भी है. इस बार कोरोना महामारी के चलते रक्षाबंधन के त्योहार पर इसका असर देखने को मिल रहा है. ऐसे में बाजारों में रक्षाबंधन को लेकर खासा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है. कोरोना के डर से काफी कम लोग ही राखी खरीदने पहुंच रहे हैं, लेकिन इस बार बाजारों में स्वदेशी राखियों की रौनक देखने को मिल रहा है. वहीं, लोग भी चायनीज राखियों का पूरी तरह से बहिष्कार कर रहे हैं.
बता दें कि हालांकि बाजार से इस बार चाइनीज राखियां पूरी तरह से गायब है, लेकिन जो स्वदेशी राखियां बाजार में उपलब्ध हैं. उसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. इन राखियों में बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए कई वैरायटी है. वहीं, इन राखियों को 5 रुपये से लेकर 250 रुपये तक खर्च कर आसानी से खरीदा जा सकता है, लेकिन कोरोना के चलते बाजारों में कम ही रौनक है.
ये भी पढ़ेंः अनुकृति गुसाईं की संस्था ने तैयार की ईको फ्रेंडली राखियां, बागों में देगी 'फल'
स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच ग्राहकों की संख्या में 30 से 40 फीसदी की गिरावट आई है. ग्राहक बाजार में मौजूद तरह-तरह की स्वदेशी राखियों को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं. जिसमें कुंदन, जड़ी-बूटी, वुडन राखी और बच्चों के लिए तरह-तरह की टॉय राखियां शामिल हैं.
रक्षाबंधन पर राखियों की डिमांड में आई गिरावट के प्रमुख कारण
- कोरोना संक्रमण के डर से लोग भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बच रहे हैं.
- आम नागरिक आर्थिक तंगी के दौर से भी गुजर रहा है.
- कोरोना संकट के बीच अंतरराष्ट्रीय फ्लाइटों का बंद है. इससे से भी राखियों के डिमांड में कमी आई है.
वहीं, ग्राहकों भी मार्केट में भारत में निर्मित राखियों की वैरायटी देखकर काफी खुश हैं. जो चाइनीज प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करते नजर आ रहे हैं. बता दें कि हिंदुओं के लिए रक्षाबंधन के त्योहार का विशेष महत्व होता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई में राखी बांधती है. जिस राखी को बहनें अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं, वो सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है.