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जानिए नौकरशाही के ACR मामले में क्या कह रहे राजनीतिक विशेषज्ञ, मंत्री मांग पर क्यों हैं मुखर - Dehradun Latest News

उत्तराखंड में बेलगाम नौकरशाही को काबू करने को लेकर सियासत तेज है. इस मामले को लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कमेटी का गठन भी किया. वहीं अब इस पर राजनीतिक मामलों के जानकार और विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि मामले में मंत्री चाहते हैं कि उन्हें अपने विभागीय सचिवों के गोपनीय रोल (एसीआर) लिखने का अधिकार दिया जाए.

Administrative Officer ACR
राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत.
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Published : Apr 9, 2022, 1:56 PM IST

Updated : Apr 9, 2022, 2:53 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में बेलगाम नौकरशाही को लेकर अक्सर आवाज उठती रहती है. कई बार तो यह आवाज इतनी मुखर होकर सामने आई कि सरकार को ही असहज कर दिया. इन दिनों फिर उत्तराखंड की फिजा में नौकरशाही को लेकर सियासत चरम पर है. इस सुलगते कोयले को खुद कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने हवा दी है. इस मामले को लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कमेटी का गठन भी किया. वहीं अब इस पर राजनीतिक मामलों के जानकार और विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.

अंतिम शक्ति मुख्यमंत्री के पास: विशेषज्ञों का कहना है कि आज तक देश के किसी भी प्रदेश में किसी भी मुख्यमंत्री ने यह पावर कभी भी कैबिनेट मंत्रियों को नहीं दी है. क्योंकि अगर किसी भी आईएएस की एसीआर (Annual Confidential Report ) पर कोई कार्रवाई करनी होती है, तो उसके लिए अंतिम शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है. इसलिए मुख्यमंत्री सामान्यत: कार्मिक और गृह विभाग अपने पास ही रखते हैं.

राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत.

क्या कह रहे जानकार: राजनीतिक मामलों के जानकार जय सिंह रावत कहते हैं कि अखिल भारतीय सेवाओं के लिए वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने की वर्तमान प्रणाली अखिल भारतीय सेवाओं (गोपनीय रोल) नियम 1970 की शासित हैं. इस नियम के तहत किसी कार्मिक की गोपनीय रिपोर्ट में उनके काम के प्रदर्शन,चरित्र, आचरण और गुणों आदि का आकलन किया जाता है. इस नियम के अनुसार एसीआर तीन स्तरों से होकर गुजरती है. इसमें एक कलेंडर वर्ष में कार्मिक के कार्यों का पर्यवेक्षण करने वाला अधिकारी केंद्र सरकार के तय किए गए परफॉर्मे पर रिपोर्ट लिखता है. उसके बाद उसकी समीक्षा एक रिव्यूविंग अधिकारी करता है. उसके बाद उस रिपोर्ट पर अंतिम निर्णय लेने का प्राधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है.

पढ़ें-उत्तराखंड पहुंची लाउडस्पीकर विवाद की आंच, संतों ने लाउडस्पीकर पर किया हनुमान चालीसा का पाठ

गोपनीय होती है रिपोर्ट: यह रिपोर्ट पूर्णत गोपनीय होती है और प्रतिकूल प्रविष्टि होने पर सम्बंधित अधिकारी को सूचित किया जाता है. जिससे वह अपना पक्ष भी रख सके. जय सिंह रावत कहते हैं कि इसलिए पहले तो प्रदेश में मंत्रियों को स्पष्ट करना होगा कि वह इस प्रक्रिया के कौन से भाग का अधिकार लेना चाहते हैं. अगर मंत्रियों को यह अधिकार मिलता है, तो प्रदेश में मुख्यमंत्री की शक्तियां कम हो जाएंगी. इसके साथ ही वह कहते हैं कि उत्तराखंड में यह व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि प्रदेश में एक सचिव के पास कई मंत्रालयों के विभाग होते हैं. इसलिए इस पर जरूर सवाल उठता है कि क्या एक आईएएस अधिकारी की एसीआर तीन-तीन मंत्री एक साथ लिखेंगे.

पढ़ें-उत्तराखंड के दो IFS अफसरों पर गिर सकती है गाज, गंभीर आरोपों के चलते विदाई तय

जानिए सतपाल महाराज ने क्या की थी मांग: कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर से विभागीय सचिव की एसीआर मंत्रियों द्वारा लिखे जाने की मांग की है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज (Cabinet Minister Satpal Maharaj) का कहना है कि उन्होंने यह विषय कैबिनेट के सामने भी उठाया है. महाराज का कहना है कि अन्य मंत्रियों को भी यह विषय सरकार के सामने लाना चाहिए. उनका मानना है कि इससे एक अनुशासन आएगा. उनका कहना है कि अन्य राज्यों में इस तरह की व्यवस्था है. लेकिन उत्तराखंड में भी एनडी तिवारी सरकार के समय थी ये व्यवस्था थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया.

देहरादून: उत्तराखंड में बेलगाम नौकरशाही को लेकर अक्सर आवाज उठती रहती है. कई बार तो यह आवाज इतनी मुखर होकर सामने आई कि सरकार को ही असहज कर दिया. इन दिनों फिर उत्तराखंड की फिजा में नौकरशाही को लेकर सियासत चरम पर है. इस सुलगते कोयले को खुद कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने हवा दी है. इस मामले को लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कमेटी का गठन भी किया. वहीं अब इस पर राजनीतिक मामलों के जानकार और विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.

अंतिम शक्ति मुख्यमंत्री के पास: विशेषज्ञों का कहना है कि आज तक देश के किसी भी प्रदेश में किसी भी मुख्यमंत्री ने यह पावर कभी भी कैबिनेट मंत्रियों को नहीं दी है. क्योंकि अगर किसी भी आईएएस की एसीआर (Annual Confidential Report ) पर कोई कार्रवाई करनी होती है, तो उसके लिए अंतिम शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है. इसलिए मुख्यमंत्री सामान्यत: कार्मिक और गृह विभाग अपने पास ही रखते हैं.

राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत.

क्या कह रहे जानकार: राजनीतिक मामलों के जानकार जय सिंह रावत कहते हैं कि अखिल भारतीय सेवाओं के लिए वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने की वर्तमान प्रणाली अखिल भारतीय सेवाओं (गोपनीय रोल) नियम 1970 की शासित हैं. इस नियम के तहत किसी कार्मिक की गोपनीय रिपोर्ट में उनके काम के प्रदर्शन,चरित्र, आचरण और गुणों आदि का आकलन किया जाता है. इस नियम के अनुसार एसीआर तीन स्तरों से होकर गुजरती है. इसमें एक कलेंडर वर्ष में कार्मिक के कार्यों का पर्यवेक्षण करने वाला अधिकारी केंद्र सरकार के तय किए गए परफॉर्मे पर रिपोर्ट लिखता है. उसके बाद उसकी समीक्षा एक रिव्यूविंग अधिकारी करता है. उसके बाद उस रिपोर्ट पर अंतिम निर्णय लेने का प्राधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है.

पढ़ें-उत्तराखंड पहुंची लाउडस्पीकर विवाद की आंच, संतों ने लाउडस्पीकर पर किया हनुमान चालीसा का पाठ

गोपनीय होती है रिपोर्ट: यह रिपोर्ट पूर्णत गोपनीय होती है और प्रतिकूल प्रविष्टि होने पर सम्बंधित अधिकारी को सूचित किया जाता है. जिससे वह अपना पक्ष भी रख सके. जय सिंह रावत कहते हैं कि इसलिए पहले तो प्रदेश में मंत्रियों को स्पष्ट करना होगा कि वह इस प्रक्रिया के कौन से भाग का अधिकार लेना चाहते हैं. अगर मंत्रियों को यह अधिकार मिलता है, तो प्रदेश में मुख्यमंत्री की शक्तियां कम हो जाएंगी. इसके साथ ही वह कहते हैं कि उत्तराखंड में यह व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि प्रदेश में एक सचिव के पास कई मंत्रालयों के विभाग होते हैं. इसलिए इस पर जरूर सवाल उठता है कि क्या एक आईएएस अधिकारी की एसीआर तीन-तीन मंत्री एक साथ लिखेंगे.

पढ़ें-उत्तराखंड के दो IFS अफसरों पर गिर सकती है गाज, गंभीर आरोपों के चलते विदाई तय

जानिए सतपाल महाराज ने क्या की थी मांग: कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर से विभागीय सचिव की एसीआर मंत्रियों द्वारा लिखे जाने की मांग की है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज (Cabinet Minister Satpal Maharaj) का कहना है कि उन्होंने यह विषय कैबिनेट के सामने भी उठाया है. महाराज का कहना है कि अन्य मंत्रियों को भी यह विषय सरकार के सामने लाना चाहिए. उनका मानना है कि इससे एक अनुशासन आएगा. उनका कहना है कि अन्य राज्यों में इस तरह की व्यवस्था है. लेकिन उत्तराखंड में भी एनडी तिवारी सरकार के समय थी ये व्यवस्था थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया.

Last Updated : Apr 9, 2022, 2:53 PM IST
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