देहरादून: विश्व पर्यावरण दिवस पर दुनिया भर में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाए जा रहे हैं. उत्तराखंड की बात अगर करें तो यहां पर्यावरण से जुड़ा मंत्रालय AC हॉल से पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दे रहा है. खास बात यह है कि AC में बैठकर संदेश देने के पीछे भी मंत्रालय के पास अपना ही एक अलग तर्क है. आप भी सुनिए वन एवं पर्यावरण विभाग की एयर कंडीशनर में पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम करवाने की मजबूरी.
विश्व पर्यावरण दिवस पर कहीं नदियों की सफाई के लिए अभियान चल रहा है तो कहीं वृक्षारोपण कर पर्यावरण को बचाये रखने की कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि उत्तराखंड का वन एवं पर्यावरण विभाग होटल के एयर कंडीशन हॉल से पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दे रहा है. महकमे का मजाक तो देखिए कि कार्यक्रम में अधिकतर वन विभाग के ही कर्मियों और कुछ पर्यावरण से जुड़े हुए लोगों को ही यह समझाया जा रहा था कि पर्यावरण सुरक्षा से क्या फायदे होते हैं.
![On environment day ministers given message to save environment from the AC Hall](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/3480006_cmon.png)
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विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत से जब पूछा गया कि क्या एसी हॉल में बैठकर पर्यावरण का संदेश देने के बजाय बाहर पर्यावरण कार्यक्रम करना ज्यादा बेहतर नहीं होता? इसपर हरक सिंह ने सहमति जताते हुए कहा कि उत्तराखंड में यह जिम्मेदारी पर्यावरण विभाग की है और पर्यावरण विभाग का उत्तराखंड में अब तक ढांचा ही नहीं बन पाया है. उन्होंने कहा कि वन मंत्रालय ने कार्यक्रम किया है. पर्यावरण विभाग का ढांचा न होने पर भी कम से कम कार्यक्रम का आयोजन तो किया गया.
![On environment day ministers given message to save environment from the AC Hall](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/3480006_cmonds.png)
इस दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कार्यक्रम के तहत सभी को पर्यावरण सुरक्षा से जुड़ी शपथ भी दिलवाई. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि आम लोगों को भी पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जागरूक होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में वन क्षेत्र बढ़ा है, जिसकी वजह यहां कि जनता में पर्यावरण को लेकर जागरूकता है.
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उत्तराखंड के पर्यावरण की हकीकत तो यह है कि हर साल 5 जून को सरकारें विश्व पर्यावरण दिवस के नाम पर तमाम अभियान और कार्यक्रम चलाती है. उसके बाद पर्यावरण को लेकर होने वाले जरूरी कामों को भूल जाती है. इस बात का सबूत राज्य बनने के 18 सालों बाद भी प्रदेश में पर्यावरण विभाग का ढांचा तैयार न होना है.