देहरादून: उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर का शायद यह ऐसा पहला मामला होगा जहां कई पर्यावरणीय अपराधों पर सरकार और वन महकमा तमाशबीन बने रहे. जिम्मेदारी तो तय हुई, लेकिन कार्रवाई सिर्फ चुनिंदा अफसरों पर ही की गई. दरअसल, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पार्क का यह काला अध्याय उत्तराखंड पर बड़ा दाग लगा गया है. बावजूद इसके लंबे समय बाद भी 6 हजार पेड़ों को ढहाने वालों पर ठोस कार्रवाई का इंतजार अभी भी बाकी है. फिलहाल, भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को इस मामले में कार्रवाई के लिए कहा गया है. एनजीटी ने सुनवाई के लिए 19 जुलाई 2023 को अगली तारीख तय की है.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध रूप से 6000 पेड़ काटे जाने और निर्माण समेत वित्तीय मंजूरी को लेकर करीब 10 अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई है. हालांकि, संरक्षित क्षेत्र के भीतर हुए अवैध कामों के लिए 8 अधिकारियों को नाम सहित अलग-अलग कार्यों के लिए जिम्मेदार माना गया है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 19 जुलाई 2023 रखी है, जिसमें उत्तराखंड के प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु को भी मौजूद रहने के लिए कहा गया है. खास बात यह है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तरफ से बनाई गई कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड शासन ने कॉर्बेट में निर्माण कार्यों को सुनवाई में नहीं जोड़े जाने की अपील की है. साथ ही ऐसे कार्यों के लिए सरकार से अनुमति की आवश्यकता नहीं होने की बात कहकर मामले से हटने की कोशिश की है. उधर एनजीटी ने प्राथमिक दृष्टि में प्रमुख सचिव की इस बात को दरकिनार कर दिया. यही नहीं उत्तराखंड के प्रमुख सचिव वन को अगली सुनवाई में प्रस्तुत रहने के लिए भी कहा गया है.
एनजीटी ने जांच के लिए बनाई थी 3 सदस्यीय कमेटी: एनजीटी में 3 सदस्यीय कमेटी ने जो रिपोर्ट सबमिट की है, उसने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए कार्यों की पोल खोल कर रख दी है. बड़ी बात यह है कि कॉर्बेट के भीतर एक दो नहीं बल्कि ऐसे कई निर्माण और अवैध कार्य किए गए हैं, जो पर्यावरणीय अपराध के दायरे में आते हैं. इस तीन सदस्यीय कमेटी में डीजी फॉरेस्ट भारत सरकार, एडीजी वाइल्ड लाइफ विभाग और एडीजी प्रोजेक्ट टाइगर शामिल थे. इस कमेटी ने करीब 128 पेज की रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सबमिट की. इस रिपोर्ट को छह अलग-अलग भागों में पेश किया गया. करीब 8 बिंदुओं पर हुए अवैध कार्यों की विस्तृत जानकारी के साथ इसके जिम्मेदार अधिकारियों के नाम भी स्पष्ट रूप से लिखे गए. बावजूद इसके अब तक केवल कुछ चुनिंदा अधिकारियों पर ही सीमित कार्रवाई की गई है.
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जांच रिपोर्ट में इन अधिकारियों को बताया गया जिम्मेदार: कॉर्बेट टाइगर सफारी के नाम पर फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार काटे गए 6 हजार पेड़ों के लिए कई अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया है. यही नहीं मोरघट्टी, कुगड्डा, स्नेह, पाखरो फारेस्ट रेस्ट हाउस को बिना किसी स्वीकृति के बनाया गया. उधर एलीफेंट वॉल और कंडी मार्ग का क्षेत्र भी बिना अनुमति के तैयार किया गया. यही नहीं चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के लिए कोर जोन में रेजिडेंस बनाने का काम भी बिना अनुमति के हुआ. इन सभी कामों के लिए अलग-अलग अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई. इसमें तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन जेएस सुहाग, तत्कालीन सीसीएफ गढ़वाल सुशांत पटनायक, तत्कालीन कॉर्बेट के निदेशक राहुल, तत्कालीन डीएफओ अखिलेश तिवारी, किशन चंद, तत्कालीन वन परिक्षेत्र अधिकारी मथुरा सिंह, बृज बिहारी शर्मा और एलआर नाग का नाम शामिल है. यही नहीं तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया.
इन अधिकारियों पर नहीं हुई अब तक कोई ठोस कार्रवाई: तत्कालीन चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग को उस दौरान सस्पेंड किया गया. कालागढ़ के डीएफओ किशनचंद को सस्पेंड करने के साथ उनकी गिरफ्तारी की गई. उधर रेंजर ब्रिज बिहारी शर्मा को भी सस्पेंड किया गया. उनकी भी गिरफ्तारी हुई. इस पूरे मामले में ना तो सीसीएफ गढ़वाल सुशांत पटनायक पर कोई कार्रवाई की गई और न ही तत्कालीन निदेशक राहुल जिनकी अधिकतर अवैध कार्यों में जिम्मेदारी तय की गई है, पर कार्रवाई हुई. उधर तत्कालीन पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की कोई जिम्मेदारी भी तय नहीं की गई. मामले में अखिलेश तिवारी को भी कार्रवाई की जद से दूर रखा गया.
देश की सर्वोच्च अदालत ने भी लिया संज्ञान: इस पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी संज्ञान लिया. यह मामला सबसे पहले 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील की याचिका के रूप में सामने आया. इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश से एनजीटी ने कॉर्बेट पार्क में जाकर जांच की. जिसमें कई गड़बड़ियां सामने आई. यहां तक कि सरकार की तरफ से भी बिना मंजूरी वाले प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय स्वीकृति दे दी गई. जिससे शासन में बैठे तत्कालीन अपर मुख्य सचिव की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं. उधर बिना किसी मंजूरी के उस वक्त के वन मंत्री हरक सिंह रावत ने नवंबर 2020 में योजना का शिलान्यास भी कर दिया. बड़ी बात यह है कि इसके लिए एक करोड़ से ज्यादा की रकम स्वीकृति की गई. कॉर्बेट फंड से भी बजट पास होता रहा. इस पूरे मामले के उछलने के बाद उत्तराखंड सरकार और कॉर्बेट निदेशक समेत वन विभाग के अधिकारियों ने इन अवैध कामों पर अपना ध्यान देने की जहमत उठाई. इसके बावजूद वन मंत्री कहते हैं कि सरकार की तरफ से जो लोग जिम्मेदार हैं, उन पर कार्रवाई की गई.
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मामले में बचने की कोशिश करते रहे अफसर: इस पूरे मामले को लेकर फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के खिलाफ उत्तराखंड वन विभाग के तत्कालीन हॉफ ने पत्र लिखा. पत्र में 6000 पेड़ काटे जाने को गलत ठहरा दिया गया. उधर उत्तराखंड शासन ने भी समय-समय पर जांच को लेकर बचने की कोशिश की. जिसमें प्रमुख सचिव का अवैध निर्माण को लेकर लिखा गया पत्र भी शामिल माना जा सकता है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुए अवैध काम को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक फिलहाल मामला विचाराधीन है. एनजीटी से लेकर एनटीसीए तक इस पर जांच के बाद की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की बात कह रहे हैं. लेकिन, इस पूरे मामले में चुनिंदा अफसरों को ही बलि का बकरा बनाया गया. हालांकि, एनजीटी ने अब इस मामले की जुलाई में अगली सुनवाई की तारीख तय की है. इस दौरान प्रमुख सचिव वन को भी बुलाया गया है. साथ ही भारत सरकार के सचिव को भी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के लिए कहा गया है.