ETV Bharat / state

बर्खास्त होंगे उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय के 228 कर्मी, हाईकोर्ट ने फैसला सही ठहराया

उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त 228 कर्मचारियों के बर्खास्तगी के आदेश को सही माना है. पूर्व में एकलपीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के इस आदेश पर रोक लगा दी थी. इस आदेश को खंडपीठ में चुनौती दी गयी थी. खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को सही ठहराया है.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Nov 24, 2022, 12:51 PM IST

Updated : Nov 24, 2022, 2:06 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त 228 कर्मचारियों के बर्खास्तगी के आदेश को सही माना है. पूर्व में एकलपीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के इस आदेश पर रोक लगा दी थी. विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ द्वारा बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती दिए जाने वाली विधानसभा द्वारा दायर विशेष अपीलों पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमुर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधानसभा द्वारा पारित आदेश को सही ठहराया है. कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नहीं किया जा सकता.

विधानसभा सचिवालय की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि इन कर्मियों की नियुक्ति काम चलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी. शर्तों के मुताबिक, बिना किसी कारण व नोटिस के इनकी सेवाएं कभी भी समाप्त की जा सकती हैं. इनकी नियुक्तियां विधानसभा सेवा नियमावली के विरुद्ध जाकर की गई हैं.

कर्मचारियों का पक्ष: वहीं, कर्मचारियों की ओर से कहा गया था कि उनको बर्खास्त करते समय विधानसभा अध्यक्ष द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से उल्लंघन किया है. अध्यक्ष द्वारा 2016 से 2021 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया गया है जबकि ऐसी ही नियुक्तियां विधानसभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित भी किया जा चुका है. यह नियम सब पर एक समान लागू होना चाहिए था.

अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ में चुनौती दी थी. याचिकाओं में कहा गया था कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितंबर को समाप्त कर दी. उन्हें किस आधार पर और किस कारण से हटाया गया इसका बर्खास्तगी आदेश में कहीं उल्लेख नहीं किया गया और न ही उन्हें सुना गया. जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है. कर्मचारियों का कहना था कि एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है और यह आदेश विधि विरुद्ध है.
इसे भी पढ़ें- विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये कर्मियों को फिर मिली नियुक्ति, बैकफुट पर अध्यक्ष और सरकार

कर्मचारियों का कहना था कि उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य का निर्णय उनपर लागू नहीं होता क्योंकि यह नियम वहां लागू होता है जहां पद खाली न हों और बैकडोर नियुक्तियां की गई हों. यहां पद खाली थे तभी नियुक्तियां हुईं. विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित किया जा चुका है फिर उनको किस आधार पर बर्खास्त किया गया.

याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई, लेकिन उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया. पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है. उसके बाद एक कमेटी द्वारा उनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों जांच हुई जो वैध पाई गई जबकि नियमानुसार 6 माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था.

ये है पूरा प्रकरणः उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद भाजपा-कांग्रेस पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती कैसे करवाया. इसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की 72 नियुक्तियां भी शामिल थी. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी.
ये भी पढ़ेंः विधानसभा भर्ती में भाई भतीजावाद पर संघ का एक्शन, कोर्ट के बहाने BJP नैतिकता से झाड़ रही पल्ला!

सीएम ने खंडूड़ी को लिखा खतः इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था. एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किए गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. सुनवाई में उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी. साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे.

कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं, वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे थे.

विधानसभा में इन पदों पर हुईं थी भर्ती: अपर निजी सचिव समीक्षा, अधिकारी समीक्षा अधिकारी, लेखा सहायक समीक्षा अधिकारी, शोध एवं संदर्भ, व्यवस्थापक, लेखाकार सहायक लेखाकार, सहायक फोरमैन, सूचीकार, कंप्यूटर ऑपरेटर, कंप्यूटर सहायक, वाहन चालक, स्वागती, रक्षक पुरुष और महिला विधानसभा में बैक डोर में हुई. नियुक्तियों को लेकर बड़ी बात यह है कि विधानसभा ने विभिन्न पदों के लिए बकायदा विज्ञप्ति भी जारी की गई थी.

विधानसभा ने जिन 35 लोगों की नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति निकाली गई थी, उसकी दो बार परीक्षा रोकी गई. सबसे बड़ी बात यह है कि नियुक्तियों की विज्ञप्ति में अभ्यार्थियों को ₹1000 परीक्षा शुल्क देना पड़ा, 8000 अभ्यार्थियों ने इस परीक्षा के लिए आवेदन किया. परीक्षा कई विवादों के बाद हुई, लेकिन अभी तक इस परीक्षा का परिणाम नहीं आया. इसके पीछे हाईकोर्ट में रोस्टर को लेकर परीक्षा पर स्टे लगना बताया गया है. उधर, इस बीच बैकडोर से 72 लोगों की नियुक्तियां करवा दी गईं.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त 228 कर्मचारियों के बर्खास्तगी के आदेश को सही माना है. पूर्व में एकलपीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के इस आदेश पर रोक लगा दी थी. विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ द्वारा बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती दिए जाने वाली विधानसभा द्वारा दायर विशेष अपीलों पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमुर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधानसभा द्वारा पारित आदेश को सही ठहराया है. कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नहीं किया जा सकता.

विधानसभा सचिवालय की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि इन कर्मियों की नियुक्ति काम चलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी. शर्तों के मुताबिक, बिना किसी कारण व नोटिस के इनकी सेवाएं कभी भी समाप्त की जा सकती हैं. इनकी नियुक्तियां विधानसभा सेवा नियमावली के विरुद्ध जाकर की गई हैं.

कर्मचारियों का पक्ष: वहीं, कर्मचारियों की ओर से कहा गया था कि उनको बर्खास्त करते समय विधानसभा अध्यक्ष द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से उल्लंघन किया है. अध्यक्ष द्वारा 2016 से 2021 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया गया है जबकि ऐसी ही नियुक्तियां विधानसभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित भी किया जा चुका है. यह नियम सब पर एक समान लागू होना चाहिए था.

अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ में चुनौती दी थी. याचिकाओं में कहा गया था कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितंबर को समाप्त कर दी. उन्हें किस आधार पर और किस कारण से हटाया गया इसका बर्खास्तगी आदेश में कहीं उल्लेख नहीं किया गया और न ही उन्हें सुना गया. जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है. कर्मचारियों का कहना था कि एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है और यह आदेश विधि विरुद्ध है.
इसे भी पढ़ें- विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये कर्मियों को फिर मिली नियुक्ति, बैकफुट पर अध्यक्ष और सरकार

कर्मचारियों का कहना था कि उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य का निर्णय उनपर लागू नहीं होता क्योंकि यह नियम वहां लागू होता है जहां पद खाली न हों और बैकडोर नियुक्तियां की गई हों. यहां पद खाली थे तभी नियुक्तियां हुईं. विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित किया जा चुका है फिर उनको किस आधार पर बर्खास्त किया गया.

याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई, लेकिन उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया. पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है. उसके बाद एक कमेटी द्वारा उनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों जांच हुई जो वैध पाई गई जबकि नियमानुसार 6 माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था.

ये है पूरा प्रकरणः उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद भाजपा-कांग्रेस पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती कैसे करवाया. इसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की 72 नियुक्तियां भी शामिल थी. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी.
ये भी पढ़ेंः विधानसभा भर्ती में भाई भतीजावाद पर संघ का एक्शन, कोर्ट के बहाने BJP नैतिकता से झाड़ रही पल्ला!

सीएम ने खंडूड़ी को लिखा खतः इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था. एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किए गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. सुनवाई में उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी. साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे.

कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं, वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे थे.

विधानसभा में इन पदों पर हुईं थी भर्ती: अपर निजी सचिव समीक्षा, अधिकारी समीक्षा अधिकारी, लेखा सहायक समीक्षा अधिकारी, शोध एवं संदर्भ, व्यवस्थापक, लेखाकार सहायक लेखाकार, सहायक फोरमैन, सूचीकार, कंप्यूटर ऑपरेटर, कंप्यूटर सहायक, वाहन चालक, स्वागती, रक्षक पुरुष और महिला विधानसभा में बैक डोर में हुई. नियुक्तियों को लेकर बड़ी बात यह है कि विधानसभा ने विभिन्न पदों के लिए बकायदा विज्ञप्ति भी जारी की गई थी.

विधानसभा ने जिन 35 लोगों की नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति निकाली गई थी, उसकी दो बार परीक्षा रोकी गई. सबसे बड़ी बात यह है कि नियुक्तियों की विज्ञप्ति में अभ्यार्थियों को ₹1000 परीक्षा शुल्क देना पड़ा, 8000 अभ्यार्थियों ने इस परीक्षा के लिए आवेदन किया. परीक्षा कई विवादों के बाद हुई, लेकिन अभी तक इस परीक्षा का परिणाम नहीं आया. इसके पीछे हाईकोर्ट में रोस्टर को लेकर परीक्षा पर स्टे लगना बताया गया है. उधर, इस बीच बैकडोर से 72 लोगों की नियुक्तियां करवा दी गईं.

Last Updated : Nov 24, 2022, 2:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.