देहरादूनः भारतीय सेना के युद्ध कौशल में साहस और शौर्य का कोई सानी नहीं है. जो देश और सरहद की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर देते हैं. इन्हीं वीर जाबांजों में 8वीं गोरखा राइफल्स के वीर योद्धा लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा का नाम भी शामिल है. जिन्होंने साल 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में अपनी शूरवीरता और त्याग का परिचय दिया था. उन्होंने पैंगोंग लेक के उत्तर में सिरिजैप में चीनी फौज को चकमा देकर उनके सैकड़ों सैनिक मार गिराए थे. जबकि, उन्हें बंदी भी बना लिया गया था. वहीं, उनके इस शौर्य के लिए उन्हें परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया.
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भारत-चीन युद्ध (1962) में उच्च कोटि की शूरवीरता एवं त्याग का परिचय देने वाले 8वीं गोरखा राइफल्स के वीर योद्धा, भारतीय सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल धनसिंह थापा जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन.!#DhanSinghThapa
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बता दें कि, हर साल 10 अप्रैल को शहीद मेजर धन सिंह थापा की जयंती मनाई जाती है. वहीं, उनकी जयंती पर सांसद अजय भट्ट ने श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि 'भारत-चीन युद्ध (1962) में उच्च कोटि की शूरवीरता एवं त्याग का परिचय देने वाले 8वीं गोरखा राइफल्स के वीर योद्धा, भारतीय सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल धनसिंह थापा जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन.'
चीनी सेना के दांत कर दिए थे खट्टे
मेजर धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल, 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. वो नेपाली मूल के भारतीय थे. धन सिंह थापा 28 अगस्त 1949 में भारतीय सेना के 8वीं गोरखा राइफल्स में कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे. थापा ने साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लद्दाख में चीन की सेना का बहादुरी से सामना किया था.
इस युद्ध में चीन ने पैंगोंग झील के उत्तर में सिरिजैप और यूल पर कब्जा करने के उद्देश्य से घुसपैठ शुरू की थी. धन सिंह थापा ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टी को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजैप घाटी में गोरखा राइफल्स की कमान संभाली. जल्द ही यह पोस्ट चीनी सेनाओं ने घेर लिया था.
वहीं, मेजर थापा और उनके सैनिकों ने इस पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया. इस युद्ध में केवल एक वीर उस युद्ध को झेलकर जीवित रहा, उस वीर का नाम धन सिंह थापा था. धन सिंह थापा भले ही चीन की बर्बर सेना का सामना करने के बाद भी जीवित रहे, लेकिन युद्ध के बाद चीन ने बंदी बनाया. जहां मान लिया गया कि वो शहीद हो चुके हैं, लेकिन वो चकमा देकर बच निकले थे.
परमवीर चक्र से सम्मानित किए धन सिंह थापा
उधर, सेना के अनुरोध पर भारत सरकार ने मेजर धनसिंह थापा को मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ देने की घोषणा कर दी थी, लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद जब चीन ने भारत को उसके युद्धबंदियों की सूची दी, तो उसमें मेजर थापा का भी नाम था. इस समाचार से पूरे देश में प्रसन्नता फैल गई. जिसके बाद उन्हें भारत-चीन युद्ध (1962) में उच्च कोटि की शूरवीरता और त्याग का परिचय देने पर भारतीय सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.