देहरादूनः दुनियाभर के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में सबसे जटिल यात्राओं में आने वाली मानसरोवर यात्रा का अंतिम पड़ाव आ चुका है. इस वर्ष अब तक 15 जत्थों को SDRF ने देवदूत बनकर सकुशल यात्रा करवाई है, जबकि अंतिम पड़ाव में अब मात्र 3 जत्थे ही शेष रह गए हैं, जिनकी यात्रा जारी है. 18वें और अंतिम जत्थे की यात्रा बीते रविवार शुरू हो गई थी.
उत्तराखंड से मानसरोवर यात्रा सफल बनाने में SDRF की अहम भूमिका रही है. वहीं यात्रा पूरी कर लौटे श्रद्धालुओं ने SDRF को शुक्रिया कहा है. उनका कहना है कि अगर SDRF नहीं होती तो यात्रा मुश्किल होती.
यात्रा में पिथौरागढ़ के नजंग से गूंजी तक लगभग 40 किमी की पैदल यात्रा अत्यंत दुर्गम और वीरान स्थानों से गुजरती है. चौमास की भारी बारिश यात्रा को और भी मुश्किल बना देती है. ऐसे हालातों में SDRF कैलाश मानसरोवर यात्रियों को आगे ले जाती है.
वर्ष 2019 में कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान SDRF टीमों ने 22 रेस्क्यू कार्यों को अंजाम देकर 245 यात्रियों की मदद की. सम्पूर्ण यात्रा में 18 दलों में कुल 201 महिला यात्री सहित 941 श्रद्धालु सम्मलित हैं. इंस्पेक्टर नरेंद्र कुमार आर्य के नेतृत्व में SDRF की दो टीमें यात्रा ड्यूटी पर तैनात हैं. टीम चोटिल होने पर यात्रियों का उपचार कर रही है. वहीं दुर्गम रास्तों को पार कराने में उनकी मदद भी करती है.
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वहीं इस यात्रा के 16वें दल में एक यात्री मनोहर दुबे निवासी मध्य प्रदेश को दिल का दौरा पड़ने पर SDRF ने तुरंत उपचार देकर उनकी जान बचाई.
नजंग में यात्रियों को मौत के मुंह से बचाया
SDRF ने छोटी कैलाश यात्रा में सम्मलित यात्रियों की भी यात्रा के दौरान सहायता की. नजंग में जंगली जहरीली मधुमख्यियों ने यात्रियों पर हमला कर दिया. इस दौरान SDRF जवानों ने वैकल्पिक मार्ग से उन्हें वापस निकाला.
श्रद्धालुओं ने किया दिल से शुक्रिया
यात्रा के दौरान एक दल के भूस्खलन में फंसने पर SDRF द्वारा बेहतरीन कार्य किया गया. अधिकांश यात्रियों ने वीडियो के माध्यम से SDRF को मानव सेवा समर्पित बल बताते हुए उनकी सराहना की.