देहरादून: देश में शायद ही कभी किसी ने कांग्रेस की इतनी बड़ी चुनावी हार की कल्पना की होगी. उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटों पर हार का जो मार्जिन रहा उसने कांग्रेस को अंदर तक हिला दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसे कौन से तीन बड़े कारण रहे जिसने कांग्रेस को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया. देखिये ये रिपोर्ट.
उत्तराखंड में 5 लोकसभा सीटों पर जीत-हार को लेकर जो मार्जिन रहा उसने कांग्रेस को आत्ममंथन करने के लिए मजबूर कर दिया है. राज्य में करीब दो लाख से ज्यादा मार्जिन से भाजपा के हर प्रत्याशी ने कांग्रेस प्रत्याशी को शिकस्त दी . खास बात यह है कि उत्तराखंड में ये लगातार दूसरा मौका है जब भाजपा ने पांचों सीटों पर कब्जा किया है. लेकिन सवाल यह है कि ऐसा क्या हुआ कि उत्तराखंड की जनता ने भाजपा को शिरोधार्य कर लिया और 2009 में पांचों सीटें जितने वाली कांग्रेस को नकार दिया. दरअसल भाजपा की जीत और कांग्रेस की जबरदस्त हार की कई वजहें रही. लेकिन कुछ गलतियां कांग्रेस पर इतनी भारी पड़ गई कि पार्टी खुद को पांच लोकसभा सीटों पर संभाल भी ना सकी.
कांग्रेस का कमजोर संगठन
उत्तराखंड में कांग्रेस का कमजोर संगठन पार्टी की जबरदस्त हार का सबसे बड़ा कारण रहा. प्रदेश में प्रीतम सिंह को अध्यक्ष बने 2 साल से ज्यादा होने के बावजूद वे अपनी नई कार्यकारिणी गठित ही नहीं कर सके. जिससे प्रदेशभर में संगठन स्तर पर होने वाले बेहतर मैनेजमेंट की कमी साफ देखने को मिली. एक तरफ जहां भाजपा न्याय पंचायत स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं से काम करा रही थी तो दूसरी तरफ कांग्रेस के पास बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की भारी कमी दिखाई दे रही थी.
नेताओं में अनुशासन की कमी ने बिगाड़ा समीकरण
देश की सबसे पुरानी पार्टी को जो हार इन चुनावों में नसीब हुई वो शायद ही कभी मिली हो. पार्टी नेताओं में अनुशासन की कमी और गुटबाजी कांग्रेस के हार का सबसे बड़ा कारण रहा. पार्टी में प्रीतम-इंदिरा के सामने हरीश रावत हर समय खड़े दिखाई दिए. दोनों तरफ से हुई बयानबाजी के चलते पार्टी को इसका नुकसान चुनाव परिणामों के रूप में देखने को मिला. यहां तक कि कई जगहों पर गुटबाजी के चक्कर में नेताओं ने चुनाव के दौरान भी घर बैठना ही मुनासिब समझा.
आम लोगों तक संदेश पहुंचाने में कांग्रेस रही नाकाम
उत्तराखंड में कांग्रेस की एक बहुत बड़ी कमजोरी यह भी रही कि पार्टी के नेता और कार्यकर्ता आम जनता तक पार्टी का संदेश ही नहीं पहुंचा पाए. बात राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर लोगों को समझाने की हो या केंद्र सरकार की गलत नीतियों को आम लोगों को बताने की इन दोनों ही मामलों में कांग्रेस नाकाम साबित हुई. यही कारण रहा कि लोगों ने भाजपा के राष्ट्रवाद के मुद्दे को हाथों-हाथ लिया और कांग्रेस को नकार दिया.
चुनाव के नतीजों के बाद खुद कांग्रेस नेता भी अब यह मान रहे हैं कि पार्टी ने बहुत सारी गलतियां की हैं. जिसका खामियाजा चुनाव परिणामों के रूप में सामने आया है. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने चुनाव में कांग्रेस की गलतियों को मानते हुए कहा कि प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर अनुशासनहीनता, संगठन की कमजोरी और संदेश न पहुंचा पाने की कमी ने कांग्रेस को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया है.