देहरादून: सूबे की सियायत में वैसे तो नेताओं से कई मिथक जुड़े है. लेकिन बदरीनाथ धाम से एक ऐसा मिथक जुड़ा है. जिसे तोड़ने का साहस राजनेताओं ने नहीं दिखता. इसे अंधविश्वास कहे या कुछ और लेकिन धारणा है कि जो भी राजनेता हेलीकॉप्टर से बदरीनाथ धाम पहुंचता है. तो उस राजनेता सत्ता रुठ जाती है और माननीय को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ती है. यही कारण है कि आज भी राजनेता सड़क मार्ग से ही बदरीनाथ धाम पहुंचते हैं.
यूं तो उत्तराखंड में चार धामों से जुड़े कई मिथक है, लेकिन बदरीनाथ धाम का हेलीकॉप्टर कनेक्शन राजनेताओं की कुंडली में राहु दोष से कम नहीं है. क्योंकि जो भी राजनेता आजतक बदरीनाथ धाम हेलीकॉप्टर से पहुंचा है. उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा है. वैसे इस मिथक के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. सत्ता खोने में सबसे पहला नाम पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का लिया जाता है. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी हेलीकॉप्टर से बदरीनाथ आई थी. जिसके बाद उन्हें सत्ता से दूर होना पड़ा.
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इंदिरा गांधी इकलौती ऐसी राजनेता नहीं है जिनके कारण इस मिथक को बल मिला है. इस फहरिस्त में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी समेत वीर बहादुर सिंह, डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक, यूपी के पूर्व राज्यपाल सूरजभान और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी शामिल है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले दिनों इसी मिथक को लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कार्यक्रम में फेरबदल किया गया था और वह सड़क मार्ग से बदरीनाथ धाम पहुंचे.
हालांकि, माननीय इस अंधविश्वास के चलते बदरीनाथ धाम की यात्रा पर सड़क मार्ग से ही करना पसंद करते हैं. लेकिन बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला की माने तो यह मिथक है और मिथक कल्पना पर ही आधारित होते हैं. इसलिए राजनेताओं को इन्हें नहीं मानना चाहिए. वहीं, केदारनाथ से विधायक मनोज रावत भी मानते हैं कि यह महज एक मिथक के सिवा कुछ नहीं है. लेकिन फिर भी बदरीनाथ के ऊपर हेलीकॉप्टर सेवाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए.
बहरहाल, राजनेताओं से जुड़े मिथक केवल उत्तराखंड में ही देखने को नहीं मिलते. यूपी में नोएडा से भी एक ऐसा ही मिथक जुड़ा है. कहा जाता है कि जिसने भी यूपी का सीएम रहते नोएडा में कदम रखा है. वह सत्ता से बेदखल हो गया. वैसे सीएम योगी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की थी. लेकिन विधानसभा उपचुनाव में योगी को उन्हीं के गढ़ में करारी हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में इस मिथक को और भी बल मिला है.
जानें नोएडा मिथक का इतिहास
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से ही नोएडा का ये मिथक शुरू होता है. साल 1988 में नोएडा दौरे से लौटने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने वीर बहादुर सिंह का इस्तीफा मांग लिया, जिसके बाद 1989 में नारायण दत्त तिवारी और 1999 में कल्याण सिंह की भी कुर्सी नोएडा से लौटने के बाद चली गई. 1995 में नोएडा आने के कुछ दिन बाद ही मुलायम सिंह को भी अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी.
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वहीं, साल 2007 में यूपी की तत्कानीन सीएम मायावती ने कई योजनाओं का उद्घाटन नोएडा से किया लेकिन 2012 में उनकी सत्ता भी चली गई. उनके बाद सीएम बने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हालांकि अपने पांच साल के कार्यकाल में एक बार भी नोएडा नहीं गए, सभी योजनाओं का शिलान्यास उन्होंने लखनऊ में रहकर ही किया लेकिन वो भी अपनी सत्ता बचा नहीं पाए.
अखिलेश के बाद फिर प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए योगी आदित्यनाथ. वो अबतक नोएडा के लगभग 4 दौरे कर चुके हैं. 23 दिसंबर 2017 को नोएडा के बॉटेनिकल गार्डेन मेट्रो स्टेशन पर होने वाले मेजेंटा लाइन के उद्घाटन समारोह की तैयारियों का जायजा लेने आए थे. फिर 25 दिसंबर 2017 को प्रधानमंत्री के साथ मेट्रो उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए. इसके बाद 17 जून 2018 को नोएडा में यूपी सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस का निरीक्षण करने पहुंचे थे. 8 जुलाई 2018 को नोएडा में सैमसंग की दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल यूनिट के उद्घाटन समारोह में शामिल हुये थे.
नोएडा के इन दौरों के बाद सीधे तौर पर योगी को कोई नुकसान नहीं हुआ है लेकिन उनकी पार्टी को कई बार मुंह की खानी पड़ी है. प्रदेश में होने वाले उपचुनावों में सत्ताधारी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. भाजपा तीन लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव हार चुकी है. यही नहीं, योगी के गढ़ गोरखपुर में हुये उपचुनाव के साथ ही प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट हो या कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा, यहां भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.