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IMA से पास आउट हुआ अफगानिस्तान का अंतिम बैच, अधर में लटका 43 GC का भविष्य

देहरादून में करीब 1,400 एकड़ में फैली ये विशाल धरोहर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि ये पराक्रमी सैन्य अफसरों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. इतिहास गवाह है कि यहां तैयार होने वाले वीरों ने पराक्रम की हर परकाष्ठा को पार की है. भारतीय सैन्य अकादमी से शनिवार को 377 कैडेट पास आउट हो गए हैं. जिसमें अफगानिस्तान के 43 कैडेट्स का अंतिम बैच भी शामिल है.

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IMA से पास आउट होगा अफगानिस्तान का अंतिम बैच
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Published : Jun 10, 2022, 9:53 PM IST

Updated : Jun 11, 2022, 10:24 AM IST

देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी. भारतीय सैन्य अकादमी से शनिवार को 377 कैडेट पास आउट हो गए हैं. जिसमें अफगानिस्तान के 43 कैडेट्स का अंतिम बैच भी शामिल है.

भारतीय सेना को मिले 288 जांबाज: इस बार आईएमए में 11 जून को हुए पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना को 288 युवा अफसर मिले. इसके अलावा 8 मित्र देशों की सेना को भी 89 सैन्य अधिकारी मिले. अब तक आईएमए के नाम देश​-विदेश की सेना को 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर देने का गौरव जुड़ा है. इनमें 34 मित्र देशों को मिले 2,724 सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं.

भारतीय सैन्य अकादमी से शनिवार को 377 कैडेट पास आउट हो गए हैं, जिसमें 288 भारतीय सेना का हिस्सा बने, जबकि 89 विदेशी कैडेट हैं. भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में लेफ्टिनेंट जनरल अमरदीप सिंह भिंडर (Lieutenant general Amardeep Singh Bhinder) रिव्यूइंग अफसर शामिल हुए. वह दक्षिण पश्चिमी कमान के कमांडर (जनरल आफिसर कमांडिंग-इन-चीफ) हैं. उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि परेड की सलामी ली.

afghanistan cadets
देहरादून IMA से पासआउट अफगानिस्तान के कैडेट.

ये भी पढे़ंः IMA POP: देश को मिले 288 नए योद्धा, उत्तराखंड के 33 जेंटलमैन कैडेट पास आउट

अफगानिस्तान के अंतिम 43 कैडेट्स हुए पास: भारतीय सैन्य अकादमी 11 जून को हुए पासिंग आउट परेड के दौरान अपने भारतीय बैच के साथियों के साथ अफगानिस्तान के 43 कैडेट्स का अंतिम बैच पास आउट हुआ. दरअसल, पिछले साल अगस्त में जब से तालिबान सत्ता में आया है, अफगान राष्ट्रीय सेना का अस्तित्व समाप्त हो गया है.

आईएमए में 83 अफगान जेंटलमैन कैडेट थे, जब तालिबान ने पिछले साल 15 अगस्त को उस देश पर कब्जा कर लिया था. उस संख्या में से, 40 ने पिछले साल दिसंबर में अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जबकि शेष 43 कैडेट 11 जून को परेड में पास आउट हो गए. आईएमए से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि जब से अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आया है, कोई नया कैडेट प्रशिक्षण के लिए आईएमए नहीं आया.

ये भी पढे़ंः Indian Military Academy: 90 साल का सफर, 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर, जानिए पूरा इतिहास

इससे पहले फरवरी में, तालिबान की ओर से अफगान राष्ट्रीय रक्षा सुरक्षा बलों के जवानों को बंधक बनाने और उन्हें कत्ल करने की खबरों के बीच रक्षा मंत्रालय ने विभिन्न भारतीय सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों के करीब 80 अफगान कैडेटों को भारत में लंबे समय तक रहने की अनुमति दी थी. क्योंकि तालिबान की वापसी के बाद अफगान कैडेटों ने अपने देश लौटने से इनकार कर दिया था. उनमें से कुछ ने भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में शरण मांगी थी.

आईएमए से पासआउट होकर कहां जाएंगे?: अफगानिस्तानी कैडेट्स के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि वे जिस सेना और देश को बचाने के लिए आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे थे, उसका खुद का वजूद खतरे में पड़ गया है. अब वे किसके लिए काम करेंगे. यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद वो कहां जाएंगे. उन्हें अभी भविष्य के सारे रास्ते बंद दिख रहे हैं.

ये भी पढे़ंः 'उन आंखों' ने खुद को फिर से अफसर बनते देखा, यादों के झरोखे से आईएमए की POP

अफगानी कैडेट्स को लेकर आईएमए का बयान: अफगानिस्तान के जवान कहां जाएंगे, कैसे जाएंगे. इस बारे में भारत सरकार की तरफ से अभी तक हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं आई है. जिस तरह से भारत के जवानों ने तैयारी की हैं, उसी तरह से अफगानिस्तान के भी जवान पूरी मेहनत से यहां तक पहुंचे हैं. आगे का फैसला भारत सरकार करेगा. इस बारे में फिलहाल हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं है, जैसा भी कुछ होगा एक आधिकारिक बयान जारी किया जाएगा.

अफगानिस्तानी कैडेट्स के आंकड़ों पर एक नजर: साल 2018 में 49 अफगानी कैडेट्स पास आउट हुए थे. दिसंबर 2020 में 41 और जून 2021 में 43 अफगानी कैडेट्स पास आउट हुए थे. अभी भी 83 अफगानी कैडेट्स आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे हैं. इसमें से 40 तो दिसंबर में पास आउट हो गए और बाकी के 43 कैडेट्स 11 जून 2022 की POP में पास आउट हुए.

परिजनों को लेकर चिंतित अफगान कैडेट्स: आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे अफगानिस्तान के कैडेट्स अपने परिजनों को लेकर चिंतित हैं. शौर्य चक्र विजेता रिटायर्ड कर्नल राकेश सिंह कुकरेती ने बताया कि देहरादून IMA से पास आउट होने वाले अफगानिस्तान के सैन्य अधिकारियों को उनके देश के हालात सामान्य होने तक रोका जा सकता है. जब तक वे सैन्य ट्रेनिंग ले रहे हैं, उनके जीवन सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है.

तालिबान के हाथों में भविष्य: रिटायर्ड कर्नल कुकरेती ने बताया कि तालिबान सरकार की डिमांड पर IMA से पास आउट हुए अफगानिस्तान के कैडेट्स को वापस भेजा जा सकता है. इसके अलावा कुकरेती ने बताया कि यदि वे भारत में ही अपने सेवा देना चाहते हैं तो इसके लिए भारत सरकार को निर्णय लेना होगा. वैसे भारतीय सेना के नियमों के मुताबिक उन्हें यहां रखने का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है.

इन देशों के जैटलमैन कैडेट लेते हैं ट्रेनिंग: IMA में अफगानिस्तान के अलावा भूटान, नेपाल, श्रीलंका, तजाकिस्तान, मालदीव और वियतनाम समेत 18 मित्र राष्ट्रों के जेंटलमैन कैडेट्स हर साल ट्रेनिंग लेते हैं.

IMA की स्थापना: एक अक्तूबर 1932 में स्थापित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का 90 वर्ष का गौरवशाली इतिहास है. अकादमी 40 कैडेट्स के साथ शुरू हुई थी. अब तक अकादमी देश-विदेश की सेनाओं को 63 हजार 768 युवा अफसर दे चुकी है. इनमें 34 मित्र देशों के 2,724 कैडेट्स भी शामिल हैं. 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने थे. इसी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन के साथ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी पास आउट हुए थे. आईएमए ने ही पाकिस्तान को उनका पहला आर्मी चीफ भी दिया है.

10 दिसंबर 1932 में भारतीय सैन्‍य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड ने किया था. उन्हीं के नाम पर आईएमए की प्रमुख बिल्डिंग को चैटवुड बिल्डिंग के नाम से जाना जाने लगा. आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय ने सैन्य अकादमी की कमान संभाली. 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने. 1949 में इसे सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया और इसका एक विंग क्लेमेंट टाउन में खोला गया. बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस अकादमी रखा गया.

पहले क्लेमेंट टाउन में सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी. बाद में 1954 में एनडीए के पुणे स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कॉलेज हो गया. फिर 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया. 10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया. साल में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आईएमए में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है.

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देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी. भारतीय सैन्य अकादमी से शनिवार को 377 कैडेट पास आउट हो गए हैं. जिसमें अफगानिस्तान के 43 कैडेट्स का अंतिम बैच भी शामिल है.

भारतीय सेना को मिले 288 जांबाज: इस बार आईएमए में 11 जून को हुए पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना को 288 युवा अफसर मिले. इसके अलावा 8 मित्र देशों की सेना को भी 89 सैन्य अधिकारी मिले. अब तक आईएमए के नाम देश​-विदेश की सेना को 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर देने का गौरव जुड़ा है. इनमें 34 मित्र देशों को मिले 2,724 सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं.

भारतीय सैन्य अकादमी से शनिवार को 377 कैडेट पास आउट हो गए हैं, जिसमें 288 भारतीय सेना का हिस्सा बने, जबकि 89 विदेशी कैडेट हैं. भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में लेफ्टिनेंट जनरल अमरदीप सिंह भिंडर (Lieutenant general Amardeep Singh Bhinder) रिव्यूइंग अफसर शामिल हुए. वह दक्षिण पश्चिमी कमान के कमांडर (जनरल आफिसर कमांडिंग-इन-चीफ) हैं. उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि परेड की सलामी ली.

afghanistan cadets
देहरादून IMA से पासआउट अफगानिस्तान के कैडेट.

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अफगानिस्तान के अंतिम 43 कैडेट्स हुए पास: भारतीय सैन्य अकादमी 11 जून को हुए पासिंग आउट परेड के दौरान अपने भारतीय बैच के साथियों के साथ अफगानिस्तान के 43 कैडेट्स का अंतिम बैच पास आउट हुआ. दरअसल, पिछले साल अगस्त में जब से तालिबान सत्ता में आया है, अफगान राष्ट्रीय सेना का अस्तित्व समाप्त हो गया है.

आईएमए में 83 अफगान जेंटलमैन कैडेट थे, जब तालिबान ने पिछले साल 15 अगस्त को उस देश पर कब्जा कर लिया था. उस संख्या में से, 40 ने पिछले साल दिसंबर में अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जबकि शेष 43 कैडेट 11 जून को परेड में पास आउट हो गए. आईएमए से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि जब से अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आया है, कोई नया कैडेट प्रशिक्षण के लिए आईएमए नहीं आया.

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इससे पहले फरवरी में, तालिबान की ओर से अफगान राष्ट्रीय रक्षा सुरक्षा बलों के जवानों को बंधक बनाने और उन्हें कत्ल करने की खबरों के बीच रक्षा मंत्रालय ने विभिन्न भारतीय सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों के करीब 80 अफगान कैडेटों को भारत में लंबे समय तक रहने की अनुमति दी थी. क्योंकि तालिबान की वापसी के बाद अफगान कैडेटों ने अपने देश लौटने से इनकार कर दिया था. उनमें से कुछ ने भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में शरण मांगी थी.

आईएमए से पासआउट होकर कहां जाएंगे?: अफगानिस्तानी कैडेट्स के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि वे जिस सेना और देश को बचाने के लिए आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे थे, उसका खुद का वजूद खतरे में पड़ गया है. अब वे किसके लिए काम करेंगे. यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद वो कहां जाएंगे. उन्हें अभी भविष्य के सारे रास्ते बंद दिख रहे हैं.

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अफगानी कैडेट्स को लेकर आईएमए का बयान: अफगानिस्तान के जवान कहां जाएंगे, कैसे जाएंगे. इस बारे में भारत सरकार की तरफ से अभी तक हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं आई है. जिस तरह से भारत के जवानों ने तैयारी की हैं, उसी तरह से अफगानिस्तान के भी जवान पूरी मेहनत से यहां तक पहुंचे हैं. आगे का फैसला भारत सरकार करेगा. इस बारे में फिलहाल हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं है, जैसा भी कुछ होगा एक आधिकारिक बयान जारी किया जाएगा.

अफगानिस्तानी कैडेट्स के आंकड़ों पर एक नजर: साल 2018 में 49 अफगानी कैडेट्स पास आउट हुए थे. दिसंबर 2020 में 41 और जून 2021 में 43 अफगानी कैडेट्स पास आउट हुए थे. अभी भी 83 अफगानी कैडेट्स आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे हैं. इसमें से 40 तो दिसंबर में पास आउट हो गए और बाकी के 43 कैडेट्स 11 जून 2022 की POP में पास आउट हुए.

परिजनों को लेकर चिंतित अफगान कैडेट्स: आईएमए में ट्रेनिंग ले रहे अफगानिस्तान के कैडेट्स अपने परिजनों को लेकर चिंतित हैं. शौर्य चक्र विजेता रिटायर्ड कर्नल राकेश सिंह कुकरेती ने बताया कि देहरादून IMA से पास आउट होने वाले अफगानिस्तान के सैन्य अधिकारियों को उनके देश के हालात सामान्य होने तक रोका जा सकता है. जब तक वे सैन्य ट्रेनिंग ले रहे हैं, उनके जीवन सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है.

तालिबान के हाथों में भविष्य: रिटायर्ड कर्नल कुकरेती ने बताया कि तालिबान सरकार की डिमांड पर IMA से पास आउट हुए अफगानिस्तान के कैडेट्स को वापस भेजा जा सकता है. इसके अलावा कुकरेती ने बताया कि यदि वे भारत में ही अपने सेवा देना चाहते हैं तो इसके लिए भारत सरकार को निर्णय लेना होगा. वैसे भारतीय सेना के नियमों के मुताबिक उन्हें यहां रखने का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है.

इन देशों के जैटलमैन कैडेट लेते हैं ट्रेनिंग: IMA में अफगानिस्तान के अलावा भूटान, नेपाल, श्रीलंका, तजाकिस्तान, मालदीव और वियतनाम समेत 18 मित्र राष्ट्रों के जेंटलमैन कैडेट्स हर साल ट्रेनिंग लेते हैं.

IMA की स्थापना: एक अक्तूबर 1932 में स्थापित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का 90 वर्ष का गौरवशाली इतिहास है. अकादमी 40 कैडेट्स के साथ शुरू हुई थी. अब तक अकादमी देश-विदेश की सेनाओं को 63 हजार 768 युवा अफसर दे चुकी है. इनमें 34 मित्र देशों के 2,724 कैडेट्स भी शामिल हैं. 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने थे. इसी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन के साथ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी पास आउट हुए थे. आईएमए ने ही पाकिस्तान को उनका पहला आर्मी चीफ भी दिया है.

10 दिसंबर 1932 में भारतीय सैन्‍य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड ने किया था. उन्हीं के नाम पर आईएमए की प्रमुख बिल्डिंग को चैटवुड बिल्डिंग के नाम से जाना जाने लगा. आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय ने सैन्य अकादमी की कमान संभाली. 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने. 1949 में इसे सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया और इसका एक विंग क्लेमेंट टाउन में खोला गया. बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस अकादमी रखा गया.

पहले क्लेमेंट टाउन में सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी. बाद में 1954 में एनडीए के पुणे स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कॉलेज हो गया. फिर 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया. 10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया. साल में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आईएमए में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है.

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Last Updated : Jun 11, 2022, 10:24 AM IST
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