देहरादून: उत्तराखंड सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. पलायन के चलते कई जिले प्रतिनिधित्व के खतरे तक पहुंच गए हैं. राज्य में साल 2007 में परिसीमन आयोग की सिफारिश पर 6 विधानसभाएं पहाड़ी जिलों से कम हो गई थीं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर ऐसे ही पलायन चलता रहा तो साल 2026 तक पहाड़ की कई विधानसभा सीटें कम हो सकती हैं.
पहले पहाड़ों तक विकास न पहुंचना पलायन की वजह बना और अब पलायन की वजह से विकास पहाड़ों तक नहीं पहुंच पा रहा है. पहाड़ों पर लगातार कम हो रही जनसंख्या के कारण सरकारी योजनाएं पहाड़ों तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिस कारण पहाड़ों पर विधानसभाओं की संख्या भी कम हो रही है, जिससे यहां बजट का कम होना भी लाजमी है.
साल 2007 से पहले प्रदेश में पहाड़ी विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व विधानसभा सदन में 40 था, लेकिन साल 2007 के बाद विधानसभा में पहाड़ से आने वाले विधायकों की संख्या घटकर 36 रह गई. परिसीमन आयोग ने पहाड़ पर कम हो रही जनसंख्या के आधार पर सीटों को कम करने की सिफारिश की थी, जिसकी उत्तराखंड के विधायकों ने विरोध करने की हिम्मत तक नहीं जुटाई.
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कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय बताते हैं कि परिसीमन आयोग ने प्रदेश में 10 से 16 पहाड़ी विधानसभाओं को खत्म कर मैदानी जिलों में जोड़ने की तैयारी की थी, लेकिन आयोग के इस कदम का विरोध होने के बाद 6 सीटें पहाड़ी जिलों की कम कर दी गईं.
पलायन आयोग रिपोर्ट के अनुसार-
- साल 2001 में करीब 950 गांव खाली हो गए थे.
- साल 2019 आते-आते यह आंकड़ा अब 2000 गांवों के पास पहुंच गया है.
- 13 जिलों वाले प्रदेश में 9 जिले पहाड़ी हैं, लेकिन यहां करीब 30 प्रतिशत जनसंख्या ही पहाड़ों पर निवास करती है.
- मैदानी जिलों की विधानसभाओं की संख्या पहाड़ी जिलों की विधानसभाओं से ज्यादा हो गई.
- साल 2026 में एक बार फिर परिसीमन होना है, ऐसे में पहाड़ों की कई सीटें और घटने की संभावना है, जो चिंता का विषय बना हुआ है.
- इस पलायन के कारण 2 सीटें पौड़ी, एक सीट अल्मोड़ा, एक सीट बागेश्वर, एक सीट चमोली और एक सीट पिथौरागढ़ जिले की कम की गई थीं.
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पलायन आयोग की रिपोर्ट से यह साफ है कि वर्तमान में पौड़ी और अल्मोड़ा जिले में बेहद तेजी से पलायन हो रहा है. यही स्थिति राज्य के दूसरे जिलों की भी बनी हुई है. ऐसे में यह तय है कि 2026 में यदि परिसीमन होता है तो पहाड़ की कई दूसरी सीटें भी कम हो जाएंगी. राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि यदि पहाड़ों की सीटें कम होती हैं तो अलग राज्य की अवधारणा ही खत्म हो जाएगी.
परिसीमन के दौरान जहां नागालैंड, असम, अरुणाचल, मणिपुर और झारखंड में इसका विरोध कर परिसीमन को नहीं होने दिया गया. वहीं, उत्तराखंड में राजनेता मौन रहे और इसका नतीजा यह हुआ कि पहाड़ी जिलों में परिसीमन के बाद सीटें कम हो गईं. पलायन के कारण पहाड़ों से लगातार जनसंख्या कम हो रही है, ऐसे में पहाड़ तक विकास कैसे पहुंचेगा? और अगर पहुंचेगा भी तो किसके लिए? यह बड़ा सवाल है.
आ अब लौटें
गौर हो कि पहाड़ों की इस सबसे बड़ी समस्या को देखते हुये ईटीवी भारत ने पलायन के खिलाफ एक मुहिम शुरू की है. 'आ अब लौटें' मुहिम के जरिये उन गांवों की समस्याओं को सामने लाया जा रहा है जो अब पलायन के कारण खाली हो चुके हैं या खाली होने की कगार पर हैं. सरकार तक उन गांवों की समस्याओं का पहुंचाया जा रहा है. अबतक इस मुहिम को कई बॉलीवुड सितारों का भी साथ मिल चुका है, वहीं विदेश में रह रहे पहाड़ी लोग भी इस मुहिम के जरिये अपने गांव तक जुड़ रहे हैं.