देहरादून: किसी भी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन (leadership change) के बाद मुख्यमंत्री के लिए तमाम व्यवस्थाओं को मुकम्मल करने के साथ ही अन्य संसाधनों को पूरा करने में मोटा पैसा खर्च किया जाता है. इन सबके अतिरिक्त प्रचार प्रसार में भी एक बड़ी रकम खर्च की जाती है. वहीं, नेतृत्व परिवर्तन के बाद किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई बर्बाद हो जाती है. देखिए इस रिपोर्ट में.
कोरोना संक्रमण (corona infection) के साथ ही मॉनसून सीजन (monsoon season) में डेंगू का खतरा भी बढ़ने लगा है. ऐसे में राज्य सरकार ने कुछ दिनों पहले ही जन जागरूकता (public awareness) के लिए सभी जिलों में कोरोना संक्रमण और डेंगू से बचाव व रोकथाम (Dengue prevention and treatment) के लिए जगह-जगह पर बैनर लगवाए थे. हालांकि, यह पोस्टर लगे कुछ दिन ही हुए थे कि उत्तराखंड राज्य में सियासी भूचाल आया और नेतृत्व परिवर्तन कर दिया गया, जिसके बाद इन बैनर पोस्टर (banner poster) को उतारने के लिए गाड़ियां दौड़ा दी गई. क्योंकि इन पोस्टर बैनरों पर तत्कालीन सीएम तीरथ सिंह रावत की तस्वीर छपी थी.
अमूमन यह देखा जाता है कि जब भी नेतृत्व परिवर्तन होता है तो उसके 24 घंटे के भीतर ही हर जगह से पूर्व मुख्यमंत्री के तस्वीरों को गायब कर तत्काल प्रभाव से नए मुख्यमंत्री के तस्वीरों को चस्पा किया जाता है, लेकिन यह कोई नहीं सोचता कि इन बैनर जिस पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे. इस पोस्टरों को बनाने में जनता का पैसा लगा हुआ था. ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही करोड़ों रुपए की बर्बादी हो जाती है.
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उत्तराखंड में भी 4 सालों में तीन बार नेतृत्व परिवर्तन किया गया. नेतृत्व परिवर्तन के बाद सड़कों किनारे लगे कोरोना संक्रमण और डेंगू से बचाव के बैनर को सिर्फ इसलिए उतार दिया गया, क्योंकि उसमें तत्कालिक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) का फोटो लगा हुआ था. हालांकि, यह बैनर अभी कुछ दिनों पहले ही लगाए गए थे. मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ देहरादून शहर के मुख्य जगहों पर 800 बैनर लगवाए गए थे.
ऐसे में इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश भर के सभी जिलों में कितने बैनर लगाए गए होंगे. इन सभी बैनर को लगवाने के लिए कितना खर्च आया होगा. यही नहीं सभी जिलों से बैनर पोस्टर उतारने के लिए देहरादून से कई गाड़ियां भी भेज दी गई, जो लगातार चौक चौराहों और गली-मोहल्लों में लगे जागरूकता बैनर को उतार रही है.