देहरादून: सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) के इस दौर में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग (computer science engineering) आजकल प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में सबसे ज्यादा पढ़ाई जा रही है. सबसे ज्यादा एडमिशन भी कंप्यूटर साइंस में ही देखने को मिल रहे हैं. दूसरी तरफ कोर इंजीनियरिंग सेक्टर जैसे कि सिविल, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल जैसे सब्जेक्ट से युवाओं का मन खट्टा होता जा रहा है. इसकी क्या कुछ वजह है ? और भविष्य में इसका क्या असर होगा. आइए जानते हैं इसका समाधान.
वीर माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Uttarakhand Technological University) के कुलपति प्रोफेसर ओंकार सिंह (Vice Chancellor Professor Onkar Singh) बताते हैं कि देश में तकनीकी शिक्षा एक संक्रमण काल से गुजर रही है. तकनीकी शिक्षा एक बहु-विधा की शिक्षा होती थी और और आज भी है. लेकिन पिछले कुछ सालों में तकनीकी शिक्षा में एक खास तरह का असंतुलन देखने को मिल रहा है. तकनीकी शिक्षा का अगर इतिहास देखा जाए तो सबसे पहले सिविल इंजीनियरिंग की शुरुआत हुई, जिसके बाद सिविल इलेक्ट्रिकल और फिर मैकेनिकल इंजीनियरिंग.
इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का दौर: उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, फिर कंप्यूटर साइंस. बाद में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का दौर आया. इस तरह से यह सभी क्षेत्र तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र थे और सभी अलग-अलग विधाओं वाली यह तकनीकी शिक्षा स्नातक स्तर पर बीटेक, बीएससी, इंजीनियरिंग में पढ़ाई जाती है. ओमकार सिंह बताते हैं कि यह जितने भी अलग-अलग विधाएं या फिर सब्जेक्ट्स हैं, इन सब का आपस में समावेशी विकास के साथ एक मकसद होता था कि समाज में जीवन को कैसे आसान बनाया जाए.
कुछ खास ट्रेंडिंग सब्जेक्ट्स की तरफ युवाओं का रुझान: प्रोफेसर ओंकार सिंह (Prof Onkar Singh) बताते हैं कि तकनीकी शिक्षा के इस समावेशी तंत्र में पिछले एक दशक से कुछ अजीब तरह का असंतुलन देखने को मिल रहा है. आज के युवा एक खास तरह के सब्जेक्ट के पीछे दौड़ लगा रहे हैं. कतिपय विधाओं या फिर सब्जेक्ट में प्रवेश नहीं लेना चाहते हैं, या फिर उनकी दिलचस्पी उन विधाओं में कम हो गई है. इसका असर देश के टॉप प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के आंकड़ों में साफ देखा जा सकता है.
परंपरागत इंजीनियरिंग की सीटें कम हुईं: आंकड़े बताते हैं कि प्राइवेट कॉलेजों में सबसे ज्यादा प्रवेश कंप्यूटर साइंस विषय पर ही हो रहे हैं. पिछले कुछ साल में यह भी देखने को मिला है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों ने अपनी कोर इंजीनियरिंग डिसएप्लायंस, जैसे कि सिविल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल इन सब्जेक्ट में सीटें बेहद कम कर दी हैं. दूसरी तरफ कंप्यूटर साइंस में सीट्स बढ़ा दी गई हैं. प्राइवेट कॉलेजों की ओर से इंजीनियरिंग के पैटर्न में बदलाव किया जा रहा है. इस बदलाव के पीछे कहीं ना कहीं, शिक्षा का व्यवसायीकरण भी जिम्मेदार है. क्योंकि कॉलेज द्वारा उन्हीं सीटों को बढ़ाया जा रहा है, जिन सीटों पर युवाओं का रुझान ज्यादा है या फिर जिन सब्जेक्ट में नौकरी लगने के चांस ज्यादा है.
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आने वाले दौर में ना मिलेंगे सिविल, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर: उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति बताते हैं कि प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों का यह फॉर्मेट उनके रेवेन्यू मॉडल को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है. मौजूदा दौर में व्यवसायिक शिक्षा को ध्यान में रखते हुए भी छात्र इस और रुचि ले रहे हैं, लेकिन इससे पूरी इस सोसाइटी और टेक्निकल एडवांसमेंट की सस्टेनेबिलिटी में इसका गहरा असर देखने को मिलेगा.
विकास को सस्टेनेबल बनाना जरूरी: वीसी सिंह बताते हैं कि दुनिया के और समाज के इस विकास को सस्टेनेबल यानी लंबे समय तक टिकाऊ रखने के लिए बेहद जरूरी है कि हम हॉलिस्टिक डेवलपमेंट मैन पावर का भी करें. उन्होंने कहा कि देश और समाज के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है कि हमारे पास एक ट्रेंड कंपीडेंट ह्यूमन रिसोर्स का होना हर इंजीनियरिंग सेक्टर के लिए बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए कि इंजीनियरिंग के कुछ सब्जेक्ट की सीट बिल्कुल खाली हो जाए और कुछ सब्जेक्ट पर छात्रों की होड़ लग जाए.
कंप्यूटर साइंस में छात्रों की ज्यादा रुचि: ओंकार सिंह बताते हैं कि आज अच्छी मेरिट रखने वाले छात्र कंप्यूटर साइंस की तरफ ज्यादा रुचि रखने हैं. यह दिखाता है कि एक धारणा छात्रों के मन में ऐसे बनती जा रही है कि जो अवसर कंप्यूटर साइंस डोमेन में उपलब्ध है, वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग या फिर किसी अन्य इंजीनियरिंग सेक्टर में नहीं है. वह बताते हैं कि यह कुछ हद तक पे पैकेज यानी अच्छी सैलरी वाली नौकरी के आधार पर तो सही हो सकता है, लेकिन यदि आप दूरगामी दृष्टिकोण से देखें तो इस तरह के कई आंकड़े हैं, जो कि दिखाते हैं कि कोर इंजीनियरिंग सेक्टर जैसे कि सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल ऐसे सेक्टर हैं, जो कि एवरग्रीन हैं.
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प्रोफेसर सिंह बताते हैं कि मैन पावर एसेसमेंट राष्ट्रीय स्तर पर कुछ इस तरह से किए जाने की जरूरत है कि हम यह देखें कि अगले आने वाले कुछ सालों में हमें किस सेक्टर में कितने इंजीनियर की जरूरत होगी और कितने इंजीनियर हम तैयार कर रहे हैं.
इंजीनियरिंग सेक्टर में नौकरियों के पैटर्न बदले: वीसी ओंकार सिंह इस बात को स्वीकार करते हैं कि आज समाज के तौर तरीके बदले हैं. इंजीनियरिंग सेक्टर में मिलने वाली नौकरियों के तौर तरीके भी बदले हैं. एक दौर था जब सरकारी नौकरी के लिए सबसे ज्यादा सिविल इंजीनियरिंग को तवज्जो दी जाती थी. लेकिन आज के दौर में सरकारी नौकरी और सिविल इंजीनियरिंग पढ़कर नौकरी लगना बेहद टेढ़ी खीर हो चुका है. यदि हम चीजों को थोड़ा दूसरे नजरिए से देखें तो असंतुलन को कम किया जा सकता है.
सब्जेक्ट पैटर्न में बदलाव जरूरी: प्रोफेसर ओंकार सिंह बताते हैं कि इसका एक सीधा सा समाधान है कि कोर इंजीनियरिंग सब्जेक्ट के साथ-साथ छात्रों को वर्तमान समय में उसे आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग से कैसे जोड़ना है, उस पर ध्यान दिया जाए कि एक सिविल इंजीनियरिंग पढ़ने वाले छात्र के सिलेबस में आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट को भी अनिवार्य किया जाए. इस तरह से सब्जेक्ट पैटर्न में थोड़ा सा बदलाव करके आने वाले दौर में हर प्रकार का इंजीनियर इंटरनेट और कंप्यूटर साइंस से जुड़े हुए सब्जेक्ट के साथ अपने कोर इंजीनियरिंग सेक्टर के समावेशी विधा में पूर्ण होगा और वह किसी भी तरह से पीछे नहीं रहेगा.
ओटोमेशन बिना कोर इंजीनियरिंग सेक्टर अधूरा: प्रोफेसर ओमकार सिंह बताते हैं कि तकनीकी शिक्षा में कुछ रिफॉर्म करने की जरूरत है और कोर इंजीनियरिंग सेक्टर के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के कुछ सब्जेक्ट पर जोर देने से हर प्रकार का इंजीनियर ऑटोमेशन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. सिंह बताते हैं कि किसी भी तरह के ऑटोमेशन में भले ही आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग काम करती है, लेकिन बिना कोर इंजीनियरिंग सेक्टर के कोई भी ऑटोमेशन पूरा नहीं होता है.
आने वाले दौर में ये होगा जरूरी: इसलिए हमारे द्वारा तैयार किए गए इंजीनियर इस तरह के इंजीनियर होने चाहिए जो कि आने वाले दौर में अपने कोर इंजीनियरिंग सेक्टर के साथ-साथ ऑटोमेशन के बारे में भी जानकारी रखते हों. उन्होंने उदाहरण दिया कि यदि हम किसी सिविल इंजीनियर को या मैकेनिकल इंजीनियरिंग की जानकारी रखने वाले इंजीनियर को किसी एप्लीकेशन की तरफ ओरिएंट करेंगे यानी कि हम किसी टेक्नालॉजी के निर्माण में उसे जोड़ेंगे और अगर ऑटोमेशन की बात करें, तो उपकरण का जो बेसिक होता है वह कोर इंजीनियरिंग बेस्ड होता है.