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गैराज में धूल फांक रही 'किंग ऑफ इंडियन रोड', कभी होती थी सियासत और स्टेटस का सिंबल

इंडियन कार कही जाने वाली एंबेसडर को साल 2014 में फ्रांस की ऑटो कंपनी प्यूजो ने महज 80 करोड़ रुपये में खरीद लिया था. ये कार कभी भारतीयों का स्‍टेटस सिंबल होती थी लेकिन आज हिंदुस्तान की सड़कों से लगभग गायब है.

एंबेसडर कार
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Published : Aug 23, 2019, 6:30 AM IST

Updated : Aug 23, 2019, 10:00 AM IST

देहरादून: आधुनिकता के दौर में तेजी के साथ बदलते वक्त में इंसानी व्यवहार के साथ उनके चुनाव के तरीके भी बदले हैं. पुरानी वस्तुएं इनदिनों इतिहास बनकर रह गई हैं. एक समय में सियासत और स्टेटस का प्रतीक माने जाने वाली एंबेसडर कार आज सड़कों पर इक्का-दुक्का ही नजर आती है. उत्तराखंड राज्य गठन के समय अंतरिम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के सरकारी काफिले में चमचमाती एंबेसडर कारों के काफिले से सरकार का एक अलग रुतबा हुआ करता था, लेकिन अब एंबेसडर कार की जगह लग्जरी कारों ने ले ली है. सत्ता का परिचय रखने वाली यह कार आज बेकार हो गई है.

गैराज में धूल फांक रही 'किंग ऑफ इंडियन रोड'

तिरंगा फिल्म का वो सीन

90 के दौर में आई सुपरहिट फिल्म तिरंगा का वो सीन जब ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह के किरदार निभा रहे अभिनेता राजकुमार की कार में बम लगने का अलार्म बजने लगता है और राजकुमार अपने ड्राइवर को बोलते हैं- ड्राइवर काला बटन खींचो. फिर सभी लोग सुरक्षित बच जाते हैं. इस सीन ने सरकारी काफिले में चलने वाली एंबेसडर कारों की लोकप्रियता की छाप आज भी लोगों के दिलों पर बरकारार रखी है.

पढ़ें- संत रविदास मंदिर विवाद: 100 से ज्यादा गाड़ियों में तोड़फोड़, भीम आर्मी प्रमुख अरेस्ट

एक दौर था जब शोहरत, सत्ता, पावर और रसूख में अगर एक चीज कॉमन थी तो वह थी एंबेसडर कार. लेकिन आज ऐसा लगता है कि यह सुपरहिट कार बेकार हो चली है. क्योंकि इसकी जगह लग्जरी गाड़ियों ने ली है.

उत्तराखंड के पास 200 में 55 एंबेसडर बची हैं

एक जमाने में उत्तराखंड सरकार की शान रही एंबेसडर कार आज गैराज में बेकार पड़ी धूल फांक रही हैं. राज्य गठन के समय बीजेपी की अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का पूरा काफिले एंबेसडर कारों से लैस हुआ करता था. राज्य संपत्ति विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य गठन के समय उत्तराखंड सरकार के पास 200 से अधिक एंबेसडर कार मौजूद थीं, लेकिन आज मात्र 55 एंबेसडर ही बची हैं. विभाग आज भी इनसे काम ले रहा है. सरकार जल्द ही इन गाड़ियों को भी बदलने वाली है क्योंकि आज कोई भी इन गाड़ियों को नहीं चाहता है. सबका एंबेसडर से मोह भंग हो चुका है.

पढ़ें- हेलीकॉप्टर क्रैश: उड़ान भरने से पहले राजपाल का आखिरी फेसबुक LIVE

एंबेसडर कार की खास बातें

  • इंडियन कार कही जाने वाली एंबेसडर कार हालांकि आज बिक चुकी है. फ्रांस की ऑटो कंपनी प्यूज़ो ने इसे केवल 80 करोड़ में खरीदा है. एम्बेसडर कार को हिंदुस्तान मोटर ने बनाना शुरू किया था और इसकी मैन्युफैक्चरिंग 1958 से 2014 तक की गई.
  • कहा जाता है कि इस कार की प्रेरणा ब्रिटेन की मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज 3 कार से ली गयी थी. ये कार भारत देश में निर्माण की जाने वाली पहली कार थी और तब इसे देश में स्टेटस सिंबल माना जाता था.
  • 1980 के मध्य में मारुति सुजुकी के भारत में आने के बाद भारतीय बाजार में हिंदुस्तान मोटर की एंबेसडर कार का वर्चस्व थोड़ा कम हुआ. मारुति ने मारुति 800, एंबेसडर से कम कीमत पर बाजार में उतारी. इसके बाद निरंतर एंबेसडर कार की लोकप्रियता में गिरावट आती गई. उसके बाद और भी कई विदेशी कार निर्माता कंपनियां भारत में आयी. जिसके साथ-साथ एंबेसडर कार का क्रेज लोगों में कम होता गया.
  • हालांकि, इसके बावजूद भी एंबेसडर का भारतीय राजनीतिज्ञों, राजदूतों और सेना में इस्तेमाल जारी रहा. सफेद अंबेडकर पर लाल बत्ती वाली गाड़ी ही इस्तेमाल की जाती थी और ब्लैक अम्बेसडर तो अभी भी सैन्य अधिकारी इस्तमाल करते हैं.
  • ब्रिटेन से प्रेरणा लेने के बावजूद भी एंबेसडर को हमेशा ही इंडियन कार कहा जाता रहा. इसे किंग ऑफ इंडियन रोड का दर्जा भी मिला.
  • इसके कई मॉडल और वर्जन आए. इसमें मार्क 1, मार्क 2, मार्क 3, मार्क 4, एंबेसडर नोवा, एंबेसडर 1800 ISZ, कुछ प्रमुख मॉडल है. यह सभी 1982 से पहले लांच किए गए थे.
  • 2003 में इसका नया मॉडल आया एंबेसडर ग्रैंड और इसके बाद एंबेसडर अविगो लांच किए गए. आखिरकार गिरती खपत के चलते 2014 में एंबेसडर कार का भारत में निर्माण बंद हो गया और फ्रांस की ऑटो कंपनियों ने इसे खरीद लिया.

देहरादून: आधुनिकता के दौर में तेजी के साथ बदलते वक्त में इंसानी व्यवहार के साथ उनके चुनाव के तरीके भी बदले हैं. पुरानी वस्तुएं इनदिनों इतिहास बनकर रह गई हैं. एक समय में सियासत और स्टेटस का प्रतीक माने जाने वाली एंबेसडर कार आज सड़कों पर इक्का-दुक्का ही नजर आती है. उत्तराखंड राज्य गठन के समय अंतरिम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के सरकारी काफिले में चमचमाती एंबेसडर कारों के काफिले से सरकार का एक अलग रुतबा हुआ करता था, लेकिन अब एंबेसडर कार की जगह लग्जरी कारों ने ले ली है. सत्ता का परिचय रखने वाली यह कार आज बेकार हो गई है.

गैराज में धूल फांक रही 'किंग ऑफ इंडियन रोड'

तिरंगा फिल्म का वो सीन

90 के दौर में आई सुपरहिट फिल्म तिरंगा का वो सीन जब ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह के किरदार निभा रहे अभिनेता राजकुमार की कार में बम लगने का अलार्म बजने लगता है और राजकुमार अपने ड्राइवर को बोलते हैं- ड्राइवर काला बटन खींचो. फिर सभी लोग सुरक्षित बच जाते हैं. इस सीन ने सरकारी काफिले में चलने वाली एंबेसडर कारों की लोकप्रियता की छाप आज भी लोगों के दिलों पर बरकारार रखी है.

पढ़ें- संत रविदास मंदिर विवाद: 100 से ज्यादा गाड़ियों में तोड़फोड़, भीम आर्मी प्रमुख अरेस्ट

एक दौर था जब शोहरत, सत्ता, पावर और रसूख में अगर एक चीज कॉमन थी तो वह थी एंबेसडर कार. लेकिन आज ऐसा लगता है कि यह सुपरहिट कार बेकार हो चली है. क्योंकि इसकी जगह लग्जरी गाड़ियों ने ली है.

उत्तराखंड के पास 200 में 55 एंबेसडर बची हैं

एक जमाने में उत्तराखंड सरकार की शान रही एंबेसडर कार आज गैराज में बेकार पड़ी धूल फांक रही हैं. राज्य गठन के समय बीजेपी की अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का पूरा काफिले एंबेसडर कारों से लैस हुआ करता था. राज्य संपत्ति विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य गठन के समय उत्तराखंड सरकार के पास 200 से अधिक एंबेसडर कार मौजूद थीं, लेकिन आज मात्र 55 एंबेसडर ही बची हैं. विभाग आज भी इनसे काम ले रहा है. सरकार जल्द ही इन गाड़ियों को भी बदलने वाली है क्योंकि आज कोई भी इन गाड़ियों को नहीं चाहता है. सबका एंबेसडर से मोह भंग हो चुका है.

पढ़ें- हेलीकॉप्टर क्रैश: उड़ान भरने से पहले राजपाल का आखिरी फेसबुक LIVE

एंबेसडर कार की खास बातें

  • इंडियन कार कही जाने वाली एंबेसडर कार हालांकि आज बिक चुकी है. फ्रांस की ऑटो कंपनी प्यूज़ो ने इसे केवल 80 करोड़ में खरीदा है. एम्बेसडर कार को हिंदुस्तान मोटर ने बनाना शुरू किया था और इसकी मैन्युफैक्चरिंग 1958 से 2014 तक की गई.
  • कहा जाता है कि इस कार की प्रेरणा ब्रिटेन की मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज 3 कार से ली गयी थी. ये कार भारत देश में निर्माण की जाने वाली पहली कार थी और तब इसे देश में स्टेटस सिंबल माना जाता था.
  • 1980 के मध्य में मारुति सुजुकी के भारत में आने के बाद भारतीय बाजार में हिंदुस्तान मोटर की एंबेसडर कार का वर्चस्व थोड़ा कम हुआ. मारुति ने मारुति 800, एंबेसडर से कम कीमत पर बाजार में उतारी. इसके बाद निरंतर एंबेसडर कार की लोकप्रियता में गिरावट आती गई. उसके बाद और भी कई विदेशी कार निर्माता कंपनियां भारत में आयी. जिसके साथ-साथ एंबेसडर कार का क्रेज लोगों में कम होता गया.
  • हालांकि, इसके बावजूद भी एंबेसडर का भारतीय राजनीतिज्ञों, राजदूतों और सेना में इस्तेमाल जारी रहा. सफेद अंबेडकर पर लाल बत्ती वाली गाड़ी ही इस्तेमाल की जाती थी और ब्लैक अम्बेसडर तो अभी भी सैन्य अधिकारी इस्तमाल करते हैं.
  • ब्रिटेन से प्रेरणा लेने के बावजूद भी एंबेसडर को हमेशा ही इंडियन कार कहा जाता रहा. इसे किंग ऑफ इंडियन रोड का दर्जा भी मिला.
  • इसके कई मॉडल और वर्जन आए. इसमें मार्क 1, मार्क 2, मार्क 3, मार्क 4, एंबेसडर नोवा, एंबेसडर 1800 ISZ, कुछ प्रमुख मॉडल है. यह सभी 1982 से पहले लांच किए गए थे.
  • 2003 में इसका नया मॉडल आया एंबेसडर ग्रैंड और इसके बाद एंबेसडर अविगो लांच किए गए. आखिरकार गिरती खपत के चलते 2014 में एंबेसडर कार का भारत में निर्माण बंद हो गया और फ्रांस की ऑटो कंपनियों ने इसे खरीद लिया.
Intro:एंकर- आज के इस बदलाव की दौड़ में जहां हम हर रोज तकनीकी और शोहरत के नए स्वरूप से रूबरू हो रहे हैं तो वहीं शोहरत, रसूख और लग्जरी का पर्याय माने जाने वाली हिंदुस्तान मोटर की अम्बेसडर कार आज मात्र इतिहास में धूल फांकते पुराने पन्ने की तरह हो चुकी है। उत्तराखंड में राज्य गठन के समय अंतरिम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के सरकारी काफिले में चमचमाती अम्बेसडर कारों के काफिले से सरकार का एक अलग रुतबा हुआ करता था जिसकी जगह आज फॉर्च्यूनर कार के अलावा तमाम कारों ने ले ली है और सत्ता का परिचय रखने वाली यह कार आज बेकार हो चली है। देखिए हम भी सरकार पर हमारी ए स्पेशल रिपोर्ट


Body:वीओ- नब्बे के दौर में आई सुपरहिट फिल्म तिरंगा का वो सीन जब ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह के किरदार में मौजूद अभिनेता राजकुमार की कार में बम लगने का अलार्म बजने लगता है, और राजकुमार अपने ड्राइवर को बोलते हैं- ड्राइवर काला बटन खींचो और फिर सभी लोग सुरक्षित बच जाते हैं। इस सिम ने सरकारी काफिले में चलने वाली अम्बेसडर कारों की लोकप्रियता की छाप आज भी लोगों के दिलों पर बरकारार रखी है। एक दौर था जब शोहरत सत्ता पावर और रसूख में अगर एक चीज कॉमन थी तो वह थी अंबे सरकार लेकिन आज ऐसा लगता है कि यह सुपरहिट कार बेकार हो चली है और इसकी जगह तमाम तरह की आलीशान चमचमाती गाड़ियों पर है लेकिन उस दौर में अपनी अलग पहचान रखने वाली अंबे सरकार के जैसा किसी और को इतनी पहचान आज भी नहीं मिली है।

उत्तराखंड राज्य गठन के समय 200 अंबे सरकारें आज केवल 55---
एक जमाने में किसी के सपनों में रहने वाली अम्बेसडर कर आज गैराजों में बेकार पड़ी धूल फांक रही है। राज्य गठन के समय भाजपा के अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का पूरा काफिला केवल अम्बेसडर कारों से लैस था। राज्य संपत्ति से मिली जानकारी के अनुसार राज्य गठन के समय सरकार के पास 200 से ज्यादा उस समय की लग्जरी अम्बेसडर कारें मौजूद थी। लेकिन समय के साथ कारों के इस बदलते दौर में अंबेडकर की लोकप्रियता बस यादों में धुंधली होती जा रही है। सीएम के काफिले की बात करें तो धीरे-धीरे राज्य संपत्ति विभाग मुख्यमंत्री के काफिले से इन पुरानी गाड़ियों को बाहर करने में लगा है। लेकिन यह उस कार की मजबूती और गुणवत्ता का ही कमाल है कि आज भी राज्य संपत्ति विभाग के पास 55 अम्बेसडर कारें मोजूद है और विभाग आज भी इन से काम ले रहा है। हालांकि यह भी कहना भी गलत नहीं होगा कि इस गाड़ी से सबका मोह भंग हो चुका है और आज कोई भी इस गाड़ी को नही चाहता है और यह स्वाभाविक भी है। क्योंकि आज मार्केट में तमाम आधुनिक और स्टाइलिश गाड़ियों ने अपनी जगह बना ली है।

बाइट- प्रवीन रावत, राज्य सम्पति अधिकारी उत्तराखंड

यह आंबेडकर कार की खास बातें----
इंडियन कार कही जाने वाली अम्बेसडर कार हालांकि आज बिक चुकी है और फ्रांस की ऑटो कंपनी प्यूज़ो ने इसे केवल 80₹ करोड़ में खरीदा है। एम्बेसडर कार को हिंदुस्तान मोटर ने बनाना शुरू किया था और इसकी मैन्युफैक्चरिंग 1958 से 2014 तक की गई। कहा जाता है कि इस कार की प्रेरणा ब्रिटेन की मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज 3 कार से ली गयी थी। ये कार भारत देश में निर्माण की जाने वाली पहली कार थी और तब इसे हमारे देश में स्टेटस सिंबल माना जाता था।
1980 के मध्य में मारुति सुजुकी के भारत आने के बाद भारतीय बाजार में हिंदुस्तान मोटर की अम्बेसडर कार का वर्चस्व थोड़ा कम हुआ। मारुति ने मारुति 800 गाड़ी अम्बेसडर की कीमत से कम कीमत पर बाजार में उतारी और इसके बाद निरंतर अम्बेसडर कार की लोकप्रियता में गिरावट आती गई। उसके बाद और भी कई विदेशी कार निर्माता कंपनियां भारत में आयी जिसके साथ साथ अम्बेसडर कार का क्रेज लोगों में कम होता गया।
हालांकि इसके बावजूद भी अम्बेसडर कार को भारतीय राजनीतिज्ञों, राजदूतों, सेना में इस्तेमाल जारी रहा। सफेद अंबेडकर पर लाल बत्ती वाली गाड़ी ही यूज़ की जाती थी और ब्लैक अम्बेसडर तो अभी भी सैन्य अधिकारी इस्तमाल करते हैं।
ब्रिटेन से प्रेरणा लेने के बावजूद भी अम्बेसडर को हमेशा ही इंडियन कार कहा जाता रहा। इसे किंग ऑफ इंडियन रोड का दर्जा भी मिला। इसके कई मॉडल और वर्जन आए इसमें मार्क 1, मार्क 2, मार्क 3, मार्क 4, अम्बेसडर नोवा, अम्बेसडर 1800 ISZ, कुछ प्रमुख मॉडल है। यह सभी 1982 से पहले लांच किए गए। 2003 में इसका नया मॉडल आया अम्बेसडर ग्रैंड और इसके बाद अम्बेसडर अविगो लांच किए गए और आखिरकार गिरती खपत के चलते 2014 में अम्बेसडर कार का भारत में निर्माण बंद हो गया और फ्रांस की ऑटो कंपनियों ने इसे खरीद लिया।


Conclusion:
Last Updated : Aug 23, 2019, 10:00 AM IST
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