देहरादून: आधुनिकता के दौर में तेजी के साथ बदलते वक्त में इंसानी व्यवहार के साथ उनके चुनाव के तरीके भी बदले हैं. पुरानी वस्तुएं इनदिनों इतिहास बनकर रह गई हैं. एक समय में सियासत और स्टेटस का प्रतीक माने जाने वाली एंबेसडर कार आज सड़कों पर इक्का-दुक्का ही नजर आती है. उत्तराखंड राज्य गठन के समय अंतरिम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के सरकारी काफिले में चमचमाती एंबेसडर कारों के काफिले से सरकार का एक अलग रुतबा हुआ करता था, लेकिन अब एंबेसडर कार की जगह लग्जरी कारों ने ले ली है. सत्ता का परिचय रखने वाली यह कार आज बेकार हो गई है.
तिरंगा फिल्म का वो सीन
90 के दौर में आई सुपरहिट फिल्म तिरंगा का वो सीन जब ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह के किरदार निभा रहे अभिनेता राजकुमार की कार में बम लगने का अलार्म बजने लगता है और राजकुमार अपने ड्राइवर को बोलते हैं- ड्राइवर काला बटन खींचो. फिर सभी लोग सुरक्षित बच जाते हैं. इस सीन ने सरकारी काफिले में चलने वाली एंबेसडर कारों की लोकप्रियता की छाप आज भी लोगों के दिलों पर बरकारार रखी है.
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एक दौर था जब शोहरत, सत्ता, पावर और रसूख में अगर एक चीज कॉमन थी तो वह थी एंबेसडर कार. लेकिन आज ऐसा लगता है कि यह सुपरहिट कार बेकार हो चली है. क्योंकि इसकी जगह लग्जरी गाड़ियों ने ली है.
उत्तराखंड के पास 200 में 55 एंबेसडर बची हैं
एक जमाने में उत्तराखंड सरकार की शान रही एंबेसडर कार आज गैराज में बेकार पड़ी धूल फांक रही हैं. राज्य गठन के समय बीजेपी की अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का पूरा काफिले एंबेसडर कारों से लैस हुआ करता था. राज्य संपत्ति विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य गठन के समय उत्तराखंड सरकार के पास 200 से अधिक एंबेसडर कार मौजूद थीं, लेकिन आज मात्र 55 एंबेसडर ही बची हैं. विभाग आज भी इनसे काम ले रहा है. सरकार जल्द ही इन गाड़ियों को भी बदलने वाली है क्योंकि आज कोई भी इन गाड़ियों को नहीं चाहता है. सबका एंबेसडर से मोह भंग हो चुका है.
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एंबेसडर कार की खास बातें
- इंडियन कार कही जाने वाली एंबेसडर कार हालांकि आज बिक चुकी है. फ्रांस की ऑटो कंपनी प्यूज़ो ने इसे केवल 80 करोड़ में खरीदा है. एम्बेसडर कार को हिंदुस्तान मोटर ने बनाना शुरू किया था और इसकी मैन्युफैक्चरिंग 1958 से 2014 तक की गई.
- कहा जाता है कि इस कार की प्रेरणा ब्रिटेन की मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज 3 कार से ली गयी थी. ये कार भारत देश में निर्माण की जाने वाली पहली कार थी और तब इसे देश में स्टेटस सिंबल माना जाता था.
- 1980 के मध्य में मारुति सुजुकी के भारत में आने के बाद भारतीय बाजार में हिंदुस्तान मोटर की एंबेसडर कार का वर्चस्व थोड़ा कम हुआ. मारुति ने मारुति 800, एंबेसडर से कम कीमत पर बाजार में उतारी. इसके बाद निरंतर एंबेसडर कार की लोकप्रियता में गिरावट आती गई. उसके बाद और भी कई विदेशी कार निर्माता कंपनियां भारत में आयी. जिसके साथ-साथ एंबेसडर कार का क्रेज लोगों में कम होता गया.
- हालांकि, इसके बावजूद भी एंबेसडर का भारतीय राजनीतिज्ञों, राजदूतों और सेना में इस्तेमाल जारी रहा. सफेद अंबेडकर पर लाल बत्ती वाली गाड़ी ही इस्तेमाल की जाती थी और ब्लैक अम्बेसडर तो अभी भी सैन्य अधिकारी इस्तमाल करते हैं.
- ब्रिटेन से प्रेरणा लेने के बावजूद भी एंबेसडर को हमेशा ही इंडियन कार कहा जाता रहा. इसे किंग ऑफ इंडियन रोड का दर्जा भी मिला.
- इसके कई मॉडल और वर्जन आए. इसमें मार्क 1, मार्क 2, मार्क 3, मार्क 4, एंबेसडर नोवा, एंबेसडर 1800 ISZ, कुछ प्रमुख मॉडल है. यह सभी 1982 से पहले लांच किए गए थे.
- 2003 में इसका नया मॉडल आया एंबेसडर ग्रैंड और इसके बाद एंबेसडर अविगो लांच किए गए. आखिरकार गिरती खपत के चलते 2014 में एंबेसडर कार का भारत में निर्माण बंद हो गया और फ्रांस की ऑटो कंपनियों ने इसे खरीद लिया.