देहरादूनः उत्तराखंड में इस साल फायर सीजन शुरू होते ही राज्यवासियों के लिए चिंता पैदा हो गई थी. हालांकि, मई महीने में बारिश की दस्तक के साथ वन विभाग और सरकार के साथ ही लोगों ने भी आग की इन घटनाओं से राहत पाई. लेकिन जून माह की शुरुआत में ही जिस तरह तापमान अपने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ रहा है, उसने एक बार फिर वनाग्नि की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की आशंका बढ़ा दी है. इन्हीं आशंकाओं के बीच ETV भारत ने वन विभाग की तैयारियों को जानने के लिए राजधानी के प्रदेश स्तरीय वनाग्नि कंट्रोल रूम पहुंच कर तैयारियों का जायजा लेने की कोशिश की.
राजधानी देहरादून में गर्मी सितम ढा रही है. पारा 41 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है. हरिद्वार में जून महीने में अधिकतम 42 डिग्री सेल्सियस तक तापमान मापा गया. यही नहीं, जून के पहले हफ्ते में मैदानी जिलों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ों पर भी तापमान सामान्य से 4 डिग्री अधिक आंका गया. जाहिर है कि तापमान में बढ़ोत्तरी लोगों के लिए गर्मी के रूप में परेशानी तो पैदा कर ही रही है, इसके साथ ही जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर भी आशंकाएं बढ़ गई हैं.
छोटे से कमरे में कंट्रोल रूमः इन्हीं आशंकाओं के बीच ETV भारत ने वन विभाग की तैयारियों को भांपने की कोशिश की. अंदाजा लगाइए कि उत्तराखंड जैसा राज्य जहां 65% तक वन क्षेत्र है, वहां वन विभाग ने फिलहाल कंट्रोल रूम एक 7x7 के कमरे में संचालित किया हुआ है. यहां इक्विपमेंट के नाम पर मात्र एक कंप्यूटर है जो हमारे कंट्रोल रूम पहुंचने के समय बंद था. इसके अलावा टेलीफोन की एक लाइन मौजूद है और एक वायरलेस जिसके भरोसे पूरे प्रदेश की सूचनाएं इकट्ठी की जा रही हैं.
एक लैंडलाइन फोन पर प्रदेशभर का जिम्माः हैरानी की बात यह है कि जिस टोल फ्री नंबर को पूरे प्रदेश में बैठकर जंगल में आग की घटनाओं की सूचना देने के लिए उपलब्ध कराया गया है, वह टोल फ्री नंबर आउट ऑफ कवरेज एरिया चल रहा है. वन विभाग की तरफ से बताया गया है कि 1800 180 4141 नंबर जंगलों में आग को लेकर टोल फ्री नंबर है लेकिन यह नंबर काम ही नहीं कर रहा. हालांकि, एक लैंडलाइन नंबर भी इसमें एड किया गया है जो काफी मुश्किल से मिल रहा है. खास बात यह है कि फोन की एक ही लाइन है और इसी एक फोन पर टोल फ्री नंबर और लैंडलाइन नंबर दोनों मौजूद हैं.
उत्तराखंड में फायर सीजन 15 फरवरी से शुरू होकर 15 जून तक रहता है. ऐसे में अब गर्मी का सीजन पीक पर पहुंच चुका है. इस समय प्रदेश में सबसे ज्यादा गर्मी हो रही है. ऐसे में वन विभाग छोटे से कमरे में कंट्रोल रूम चलाने के पीछे अपना अलग तर्क दे रहा है. वन विभाग का कहना है कि कंट्रोल रूम जो दूसरी जगह पर स्थापित किया गया है, उसको रिनोवेट किया जा रहा है.
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ना कर्मचारी, ना मददः सवाल यह उठता है कि वन विभाग को यह सब काम फायर सीजन में ही क्यों याद आते हैं. बहरहाल, जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर वन विभाग की तैयारियां पहले से ही सवालों में रही हैं. वन विभाग जंगलों में आग बुझाने को लेकर पूरी तरह से मौसम पर निर्भर दिखाई दिया है. इसकी बड़ी वजह यह है कि ना तो विभाग के पास कर्मचारी पर्याप्त मात्रा में हैं और ना ही वन विभाग आम लोगों की मदद ले पाने में सफल हो पाया है. जंगलों में आग को लेकर हुई पिछले दिनों एक बैठक में तो अधिकारियों ने यहां तक कहा कि स्थानीय लोगों की तरफ से जंगलों में आग बुझाने को लेकर पूरी तरह से समर्थन भी नहीं मिल रहा है. हालांकि, इसके बाद भी वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि विभाग पूरी तरह से तैयार है और इस मामले को लेकर गंभीर भी है.
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जंगलों में लगने वाली आग को बुझाना काफी मुश्किल होता है. ये बात वन विभाग भी अच्छी तरह से जानता है. लेकिन आग बुझाने के लिए जरूरी तैयारियों को लेकर महकमा सुस्त ही दिखाई दिया है. क्या होनी चाहिए तैयारियां जिन पर वन विभाग ने नहीं किया पूरी तरह काम. समझिए...
उत्तराखंड में बढ़ी वनाग्नि की घटनाएंः उत्तराखंड में गर्मी के आखिरी समय में तापमान में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई है. ऐसे में शांत हो चुकी वनाग्नि की घटनाएं फिर से देखी गई. वन विभाग की मानें तो 1 जून तक वन विभाग के पास प्रदेश भर में एक भी वनाग्नि की घटना रिकॉर्ड नहीं की गई थी. लेकिन गर्मी के प्रकोप के बीच 2 जून को 12 वनाग्नि की घटनाएं रिकॉर्ड की गई. इसमें 1 घटना कुमाऊं और 11 गढ़वाल मंडल में दर्ज की गई. इसमें कुल मिलाकर 13.5 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गये.
इसके बाद लगातार वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई. 3 जून को 5 घटनाएं, 4 जून को 12 घटनाएं, 5 जून को 6 घटनाएं, 6 जून को 9 घटनाएं, 7 जून को सबसे ज्यादा 21 घटनाएं देखने को मिली. इस दौरान 3.26 हेक्टेयर जंगल आग से स्वाहा हो गये. वहीं, 9 जून को 6 घटनाएं देखी गईं. बहरहाल, जिस प्रदेश में आग की घटनाएं अपने चरम पर पहुंचने के बाद जिम्मेदार विभाग को घटनाओं को लेकर पुराने अध्ययन कराने की याद आती हो, वहां तैयारियों का क्या हाल होगा यह आसानी से समझा जा सकता है.