देहरादूनः उत्तराखंड की राजनीति में अवैध खनन का आरोप किसी बड़े दाग से कम नहीं रहा है. यही कारण है कि कांग्रेस हो या बीजेपी हर विपक्षी दल हमेशा सत्ता धारियों पर अवैध खनन को राजनीतिक हथियार बनाकर हमलावर बना रहता है. लेकिन खास बात ये है कि अवैध खनन को लेकर राजनेता इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाते हैं. आखिर ऐसा क्या कारण है कि उत्तराखंड में खनन से हुई इनकम राजनेताओं के लिए एक बड़ा जरिया बनती है.
दरअसल, उत्तराखंड में खनन सरकार के राजस्व का एक बड़ा जरिया है. खनन के जरिए राज्य सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है. यही नहीं, इसी व्यवसाय के जरिए राजनेताओं के साथ-साथ कई लोग करोड़पति और अरबपति तक बने हैं. खनन में बेशुमार कमाई का नतीजा ही है कि इस धंधे में अवैध रूप से भी कई माफिया ने एंट्री की और अवैध खनन के जरिए लाखों और करोड़ों की कमाई शुरू हुई.
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इस अवैध धंधे में माफिया के उतरने से खनन का यह व्यवसाय इतना बदनाम हो गया कि उत्तराखंड में सत्ता के खिलाफ विपक्षी दलों ने इसे अपना हथियार बना लिया. लेकिन फिर भी सवाल ये है कि उत्तराखंड में राजस्व के लिहाज से खनन का योगदान क्या है.
- प्रदेश में साल 2016-17 में विभाग द्वारा 500 करोड़ का लक्ष्य रखा गया जबकि 335 करोड़ राजस्व राज्य को मिला.
- साल 2017-18 में 620 करोड़ के लक्ष्य के साथ 437 करोड़ का राजस्व राज्य को मिला.
- साल 2018-19 में 750 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष 451 करोड़ का राजस्व राज्य को मिला.
- साल 2019-20 में विभाग ने 750 करोड़ का ही लक्ष्य रखा जिसमें कोरोना के चलते 391 करोड़ का ही राजस्व राज्य को मिला.
- 2020-21 में 750 करोड़ का लक्ष्य रहा और 506 करोड़ का राजस्व राज्य को मिला.
- अब इस साल यानी 2021-22 में राज्य ने एक बार फिर 750 करोड़ का लक्ष्य रखा लेकिन अक्टूबर तक केवल 173 करोड़ रुपए का ही राजस्व राज्य को मिल पाया.
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अवैध खनन से माफिया मालामालः खनन से सरकार का राजस्व सैकड़ों करोड़ में रहा, हालांकि इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी खनन विभाग के अधिकारी करने में कामयाब नहीं रह पाए. लेकिन अवैध खनन के जरिए माफिया ने अपनी झोली भरने में कोई कमी नहीं छोड़ी. एक अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में सैकड़ों करोड़ रुपए का अवैध खनन होता है, जिस पर सरकार की तरफ से लगाम नहीं लगाई जा सकी है. खास बात ये है कि खुद सरकार में वन मंत्री हरक सिंह रावत इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनकी विधानसभा क्षेत्र में जमकर अवैध खनन किया गया और खुद क्षेत्र के डीएफओ को उन्होंने इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए डीएफओ को वन मुख्यालय में अटैच भी किया था.
राज्य सरकारें द्वारा खनन रॉयल्टी की निर्धारित की दरेंः बालू, बजरी और बॉर्डर के लिए उत्तराखंड में 70 से 85 रुपए प्रति टन रॉयल्टी तय की गई है. हिमाचल में ₹60 प्रति टन, राजस्थान में 12 से ₹35 प्रति टन, हरियाणा में 27 से ₹40 प्रति टन और उत्तर प्रदेश में 30 से ₹68 प्रति टन की रॉयल्टी की दरें तय की गई हैं.
3 जिलों में खनन का खेलः उत्तराखंड के 3 जिले हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल में अवैध खनन को लेकर जमकर राजनीति हो रही है. कांग्रेस सीधे तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर खनन प्रेमी होने का आरोप लगा रही है. सबसे बड़ी बात है कि विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री के जनसंपर्क अधिकारी का पत्र जिसमें बागेश्वर में 3 खनन की गाड़ियों को छोड़ने की बात कही गई, इस मामले पर उत्तराखंड की विधानसभा में भी जमकर हंगामा हो चुका है. कांग्रेस भी इस मामले पर हमलावर रुख में भाजपा पर अवैध खनन कराने का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस का कहना है कि उनकी सरकार के मंत्री ने इस बात की पुष्टि की है कि सरकार में अवैध खनन भारी मात्रा में हो रहा है.
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एक-दूसरे पर निशानाः विपक्ष में रहने के दौरान अवैध खनन को कांग्रेस के खिलाफ हथियार बनाने वाली भाजपा इन दिनों अवैध खनन पर खुद गिरी हुई है. हालांकि भाजपा इस बात से साफ इनकार कर रही है कि उत्तराखंड में मौजूदा सरकार अवैध खनन कर रही है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी कहते हैं कि सरकार ने जो भी खनन किया है वह खनन नीति के तहत किया है. हालांकि, भाजपा इस मुद्दे पर हरीश रावत पर भी हमलावर है और भाजपा के प्रवक्ता कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि उनकी सरकारों में न सिर्फ अवैध खनन बल्कि अवैध शराब कारोबार जमकर हुआ है.
बहरहाल, उत्तराखंड में अवैध खनन बड़ा राजनीतिक मुद्दा तो है लेकिन राजनीतिक दल इसे सिर्फ एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तमाल करते हैं. सत्ता में आने के बाद अवैध खनन पर लगाम लगाने में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही फेल रही है. यही कारण है कि भाजपा हो या कांग्रेस, विपक्षी मुखोटा बनकर हमेशा सत्ताधारी दल को निशाना बनाते रहते हैं.