देहरादून: उत्तराखंड में ठंड का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है. एक ओर पर्वतीय क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है तो वहीं मैदानी क्षेत्रों में कोहरे के चलते हाड़ कंपा देने वाली ठंड पड़ रही है. जिसको देखते हुए नगर निगम और जिला प्रशासन की ओर से तमाम जगहों पर अलाव की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही, नगर निगम और अन्य संस्थाओं की ओर से रैन बसेरे भी संचालित किए जा रहे हैं, ताकि लोगों को खुली छत के नीचे सोने की नौबत ना आए. लेकिन लोग भीषण ठंड में खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं. आखिर क्या है इसके पीछे की असल वजह? देखिए ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट...
बेघर लोगों को मिल सके आसरा: देहरादून शहर में तमाम रैन बसेरे संचालित हो रहे हैं. जो नगर निगम की ओर से संचालित किए जा रहे है. इसके साथ ही कुछ रैन बसेरे संस्था की ओर से भी संचालित किए जा रहे हैं. ताकि जो बेघर है, उनको सोने का ठिकाना मिल सके. हालांकि, संचालित रैन बसेरे में मजदूर, सड़कों के किनारे भीख मांगे वाले लोग सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. वहीं नगर निगम और जिला प्रशासन की ओर से समय-समय पर लकड़ियां और कंबल उपलब्ध कराए जाते हैं.
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लोग रैन बसेरों का नहीं कर रहे रुख: रैन बसेरों की स्थिति यह है कि इनमें ठहरने की कैपेसिटी के अनुपात में बेहद कम लोग ही रुक रहे हैं. ईटीवी भारत संवाददाता ने देहरादून के घंटाघर के समीप मौजूद रैन बसेरा और रायपुर रोड स्थित रैन बसेरे की स्थिति जानी. दोनों ही रैन बसेरे में क्षमता के मुकाबले कम लोग ही इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. जबकि रैन बसेरे को नगर निगम और संस्थाओं की ओर से रुकने के बेहतर इंतजामात किए गए हैं. कुल मिलाकर रैन बसेरे तो बना दिए गए हैं और उसको संचालित भी किया जा रहा है, लेकिन उनमें रुकने वाले ही नहीं मिल रहे हैं.
दस रुपए लिया जाता है शुल्क: देहरादून के घंटाघर के समीप मौजूद रैन बसेरा जोकि दून शेल्टर्स सोसाइटी की ओर से संचालित की जा रही है. इस रैन बसेरे में नगर निगम की ओर से लकड़ियां समय-समय पर उपलब्ध कराई जा रही हैं. जबकि जिला प्रशासन की ओर से ठंड के दौरान कंबल भी वितरित किए जाते हैं. इन रैन बसेरे में 100 लोगों के रुकने की क्षमता है. बावजूद इसके रोजाना करीब 60 से 70 लोग रैन बसेरे का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, संस्था की ओर से संचालित इस रैन बसेरे में 10 रुपए की रोजाना पर्ची काटी जाती है. जिसके एवज में सुबह रैन बसेरे में रुकने वाले लोगों को चाय दिया जाता है. इसके अलावा नहाने के लिए गर्म पानी की भी व्यवस्था की गईं है.
निशुल्क रैन बसेरों का हाल : रायपुर रोड के चुना भट्टा स्थित रैन बसेरा जोकि नगर निगम की ओर से संचालित किया जाता है. इस रैन बसेरे में लोगों के ठहरने के लिए तमाम व्यवस्थाएं तो हैं, लेकिन यहां रात बिताने वाले लोगों की संख्या काफी कम है. जबकि इस रैन बसेरे में रुकना निशुल्क है. इस रैन बसेरे में करीब 60 से 70 लोगों के रुकने की व्यवस्था है. बावजूद इसके रोजाना करीब 6 या 7 लोग ही इस रैन बसेरे में रात्रि विश्राम करते हैं. इसके अलावा, इस रैन बसेरे में करीब 15 बेड भी हैं. यही नहीं, इस रैन बसेरे में अलाव की भी व्यवस्था की गई है. जिसके लिए नगर निगम की ओर से लकड़ियां उपलब्ध कराई जाती हैं.
जानिए लोगों ने क्या कहा: लोगों ने रैन बसेरे में ना जाने की तमाम वजहों को बताया है. सड़क किनारे सो रहे लोगों ने बताया कि रैन बसेरे में नशा करने और अराजक लोग जाते हैं. जो वहां जाकर गंदगी फैलाते हैं. जिसके चलते वो रैन बसेरे के बजाय, खुले आसमान के नीचे सोते हैं. यही नहीं, कुछ लोगों ने बताया कि उनके पास पैसे नहीं हैं. जबकि घंटाघर स्थित रैन बसेरे में 10 रुपए का शुल्क लिया जा रहा है. लेकिन उनके पास पैसे नहीं हैं. कुछ का कहना है कि वो जहां सो रहे हैं, वह जगह ठीक है. क्योंकि वो नई जगह है इसलिए जाना नहीं चाहते हैं.
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कई लोगों के पास आधार कार्ड नहीं: सड़क किनारे सो रहे लोगों ने अपनी तमाम वजहों को तो गिना दिया, लेकिन वहीं, कुछ लोग ऐसे भी मिले, जिनके पास आधार कार्ड ही नहीं है. उनका कहना है कि उनका आधार कार्ड चोरी हो गया. लेकिन जब वो दोबारा बनवाने गए तो उनसे तमाम कागज मांगे जा रहे हैं. लेकिन उनके पास कोई कागज नहीं हैं. जिसके चलते वो रैन बसेरे में नहीं जा सकते हैं. यही नहीं, सड़क किनारे एक महिला भी सोती नजर आई, जिसने बताया कि वो नेपाल की रहने वाली है और उसके पास आधार कार्ड नहीं है. जिसके चलते मजबूरन सड़क किनारे सोना पड़ रहा है.
क्या कह रहे जिम्मेदार: प्रदेश में संचालित रैन बसेरों की व्यवस्थाओं के सवाल पर शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने बताया कि ठंड का कहर बढ़ रहा है. जिसके चलते विभाग के निदेशक को इस बाबत निर्देश दिए थे कि जितने भी रैन बसेरे हैं, उसमें पूरी व्यवस्था की जाए. साथ ही चौक चौराहों पर अलाव की व्यवस्था की जाए. हालांकि, निकाय का कार्यकाल समाप्त होने के चलते वहां प्रशासक बैठे हैं. लिहाजा सभी से संवाद करते हुए रैन बसेरों की व्यवस्था को दुरुस्त करने और जगह जगह पर अलाव जलाने का काम किया जाए. साथ ही कहा कि फंड की कोई कमी नहीं है. लिहाजा, सरकार इस मामले को लेकर संवेदनशील है.