देहरादून: उत्तराखंड में अवैध पेड़ काटने और धोखाधड़ी कर जमीन अपने नाम करने का एक मामला पिछले 11 सालों से चर्चाओं में है. हैरत की बात यह है कि इस प्रकरण में प्रदेश के पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू को मुख्य आरोपी माना गया है. इसके बावजूद साल 2012 में प्रकाश में आने वाला पूर्व डीजीपी से जुड़ा ये प्रकरण आज भी अनसुलझा है. स्थिति यह है कि अब गृह विभाग को इस प्रकरण में एसआईटी जांच कराने की याद आ रही है. 11 साल पुराने मामले पर शासन ने एसआईटी जांच करने के आदेश देते हुए जांच को नया रूप दे दिया है.
पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू से जुड़ा प्रकरण अब पुलिसिया जांच में फंसता हुआ नजर आ रहा है. साल 2012 में बीएस सिद्धू के खिलाफ प्रकाश में आए मामले पर करीब 11 साल में भी कोई हल नहीं निकल पाया है. चौंकाने वाली बात यह है कि अब शासन ने इस मामले में एसआईटी जांच के आदेश दे दिए हैं. यानी, पुलिस देहरादून के राजपुर रोड पर काटे गए 25 पेड़ों और यहां पर मौजूद जमीन की खरीद-फरोख्त के मामले को 11 साल में भी नहीं सुलझा पाई है. यह पूरा मामला पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू से जुड़ा है. इसके मायने यह हैं कि मामला हाईप्रोफाइल है. पुलिस को जांच से लेकर कार्रवाई तक में सौ बार सोचना पड़ रहा है.
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क्या है ये पूरा प्रकरण: साल 2012 में ओल्ड मसूरी रोड पर वीरगिरवाली स्थित आरक्षित वन क्षेत्र में कई पेड़ों को अवैध रूप से काटे जाने की खबर मिली. बताया गया कि इस क्षेत्र में करीब 9 बीघा जमीन गलत तरीके से कुछ लोगों द्वारा अपने नाम कर ली गई है. इस दौरान जो नाम सामने आया वह तत्कालीन एडीजी बीएस सिद्धू का था. इसके बाद सिद्धू के खिलाफ कार्यवाही को लेकर शिकायती पत्र भी चलने लगे, लेकिन, पुलिस विभाग के इतने बड़े अफसर पर जांच या किसी कार्यवाही के बारे में भी कोई कैसे सोच सकता था. हालांकि, इसके बाद बीएस सिद्धू प्रदेश के डीजीपी भी बन गए. 2016 में डीजीपी रहे बीएस सिद्धू के खिलाफ शासन स्तर पर जांच की गई. पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू को तब झटका लगा जब उनको अपने रिटायरमेंट से 1 दिन पहले ही चार्जशीट थमा दी गई. हालांकि, इतना कुछ होने के बाद भी मामले पर कोई भी मुकदमा नहीं हो पाया.
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इस प्रकरण पर विवाद बना रहा, लेकिन, कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ. साल 2022 में जाकर इस प्रकरण में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. वन विभाग के अधिकारी की तरफ से राजपुर थाने में सिद्धू के खिलाफ शिकायती पत्र दे दिया गया. इसके बाद मुकदमा भी दर्ज हो गया. वह बात अलग है कि तमाम अधिकारियों की तरफ से जांच की गई. नए नए पहलू भी इसमें निकल कर सामने आए, लेकिन जांच के आधार पर कार्यवाही शून्य ही रही. मुकदमा दर्ज होने के बाद पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू ने हाईकोर्ट की भी शरण ली. उसके बाद हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई.
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राजपुर रोड में 9 बीघा जमीन का क्या है मामला: ओल्ड राजपुर रोड पर करीब 9 बीघा जमीन जो कि आरक्षित वन क्षेत्र की थी उस पर फर्जीवाड़ा करते हुए खरीद-फरोख्त की गई. बड़ी बात यह है कि जमीन का यह सौदा बेहद शातिराना तरीके से किया गया. इस जमीन को खरीदने वाला कोई और नहीं बल्कि प्रदेश में पुलिस का सबसे बड़ा अधिकारी यानी डीजीपी बीएस सिद्धू थे. खास बात यह है कि इस पूरे प्रकरण के सामने आने के बाद तत्कालीन सीईओ मसूरी ने इसकी जांच की. डीजीपी बीएस सिद्धू ने जिस नत्थू लाल से इस जमीन को खरीदना बताया उसे इस जांच में 1983 में ही मरा हुआ बताया गया. यानी जिस व्यक्ति की मौत 1983 में हो चुकी थी उस व्यक्ति से 2012 में जमीन खरीदने की बात कही गई.
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मामले में ग्रीन ट्रिब्यूनल से लेकर चीफ सेक्रेटरी तक कई पत्र चले. इनमें पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू सवालों के घेरे में रहे. खास बात यह है कि 2013 में बीएस सिद्धू ने वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ ही एक मुकदमा दर्ज करवा दिया. जिसमें वन विभाग द्वारा गलत तरीके से पेड़ काटने की बात कही गई. मामले की जांच सब इंस्पेक्टर और इस पूरे मामले में बेहद चर्चित रहे निर्विकार सिंह से करवाई गई. हालांकि, निर्विकार सिंह कुछ ही दिन जांच के अधिकारी रहे. इस दौरान उन्होंने जो जांच की उसके बाद उनके खिलाफ कई तरह की कार्रवाई होने लगी. बहरहाल इस पूरे मामले ने तूल पकड़ा. डीजीपी के रिटायरमेंट से 1 दिन पहले ही उन्हें चार्जशीट सौंपी गई. इसमें मुकदमा 2022 में दर्ज हुआ.
अब शासन ने इस मामले में भाजपा नेता रविंद्र जुगरान के पत्र पर एसआईटी जांच के आदेश दे दिए हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि पिछले इतने समय से चल रही पुलिस की जांच के क्या मायने हैं? जब बार-बार जांच को नए सिरे से शुरू किया जा रहा है.