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मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल का तीसरा दिनः महिलाओं ने किया ऐतिहासिक रामी बौराणी नाटक का मंचन - Mussoorie Winter Line Carnival

मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल के तीसरे दिन झूमेलो ग्रुप ने मसूरी शहीद स्थल पर ऐतिहासिक रामी बौराणी नाटक का मंचन किया. इसके अलावा गढ़वाली लोक नृत्य की प्रस्तुति भी दी. नाटक में रामी के किरदार ने लोगों को भावुक कर दिया.

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Published : Dec 29, 2022, 9:44 AM IST

Updated : Dec 29, 2022, 10:42 AM IST

मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल का तीसरा दिन.

मसूरीः विंटर लाइन कार्निवाल की तीसरे दिन की शाम को स्थानीय महिलाओं ने गढ़वाली लोक नृत्य और रामी बौराणी नाटक का मंचन (Jhumelo Group staged Rami Baurani play) किया. मसूरी की प्रमिला नेगी ने झूमेलो ग्रुप (Pramila Negi Jhumelo Group) द्वारा मसूरी के शहीद स्थल पर गणेश वंदना के साथ गढ़वाली लोक नाटक रामी बौराणी (Garhwali Folk Drama Rami Baurani) का मंचन किया. जिसने सभी श्रोताओं को भावुक कर दिया.

इस मौके पर मौजूद लोगों ने स्थानीय महिलाओं के हुनर को सराहा. उन्होंने कहा कि कलाकार के लिए उम्र मायने नहीं रखती है. अगर कलाकर को प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाए तो कलाकार को अपनी कला का हुनर दिखाने का अवसर मिलता है. झूमेलो ग्रुप की प्रमिला नेगी ने बताया कि हमारी आने वाली पीढ़ी को मालूम होना चाहिए कि हमारे गढ़वाल का इतिहास क्या है. नाटक के जरिए यही दर्शाने का प्रयास किया गया है.

उन्होंने सरकार और प्रशासन का मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल में मसूरी की घरेलू महिलाओं को मंच देने के लिए आभार जताया. वहीं, नृत्य नाटिका में रामी की भूमिका निभाने वाली कलाकार लक्ष्मी उनियाल ने बताया कि रामी बौराणी का किरदार निभाते हुए वह बिल्कुल रामी के रूप में ढल गईं थी. उन्होंने कहा कि इस मंच से हमारे उत्तराखंड का इतिहास देश एवं विदेश तक जा सके.
ये भी पढ़ेंः न्यू ईयर के स्वागत के लिए ऋषिकेश तैयार, कहीं डीजे तो कहीं राफ्टिंग पर मचेगा धमाल

क्या है रामी बौराणी कथाः यह एक प्रचलित लोक कथा है. जिसमें उत्तराखंड में नारी के प्यार व त्याग की गाथा है. गढ़वाल का रहने वाला एक सैनिक का 12 वर्ष तक फौज में लड़ाई के दौरान पता नहीं चलता है. उसकी कोई सूचना उसके घर वालों को नहीं होती है. पवित्र मन में आस्था रखकर उसकी धर्मपत्नी रामी को पूरा विश्वास होता है कि उसका पति जरूर एक दिन आएगा. वह 12 साल तक इंतजार करती है. रामी का पति 12 वर्ष के बाद फौज की लड़ाई में लापता होने के बाद अपना वेश बदल कर घर आता है और अपने घर का स्थिति जानने का प्रयास करता है. उसके पिता की मृत्यु हो चुकी होती है. उसकी पत्नी अपनी बूढ़ी सास के साथ समय गुजार रही होती है.

बीरू लेता है रामी की परिक्षा गांव लौटते हुए रामी का पति बीरू सोच रहा है कि 12 साल का वक्त बहुत लंबा होता है. इसलिए वह गांव पहुंचने के बाद पत्नी की परीक्षा लेने के बारे में सोचता है. वह गांव पहुंचने से पहले ही रामी का इम्तिहान लेने के लिए संन्यासी का वेश धारण कर लेता है. जब वह गांव पहुंचता है उसे यह देखकर बड़ी हैरानी होती है कि उसके खेत में एक स्त्री कुछ काम कर रही है. वह पास से देखता है तो वह उसकी पत्नी रामी होती है. कड़ी मेहनत और जीवन के अकेलेपन और विरह वेदना ने रामी के चेहरे का नूर खत्म सा कर दिया है.

धार्मिक श्रद्धा के वशीभूत रामी साधू को प्रणाम करती है. साधु के पूछने पर रामी उसे बताती है कि पति लम्बे समय से प्रदेश में युद्ध में हैं और वह उनका इंतजार कर रही है. साधु से बात करते हुए बताती है कि मेरा नाम रामी है. मैं रावतों की बेटी हूं और पाली के सेठों की बहू हूं. मेरे ससुर परलोक सिधार चुके हैं और सास घर पर हैं. मेरे पति को गए लंबा समय हुआ है और उनकी कुशल-क्षेम तक नहीं मिल पा रही है.

माया जाल में फंसाने की कोशिशः अब साधु असली परीक्षा लेने के लिए उससे कहता है कि रामी 12 वर्ष से क्यों तू उसके इंतजार में अपनी जवानी बर्बाद कर रही है. आओ दो घड़ी बुरांश की छाया में साथ बैठकर बात करते हैं और जीवन का आनंद उठाते हैं. ये सुनते ही वह रामी को गुस्सा आ जाता है वह साधू को खरी-खोटी सुनाते हुए कहती है कि तू साधु नहीं कपटी है, तेरे मन में खोट है. मैं एक पतिव्रता नारी हूं.

बीरू की थाली में भोजन करने की जीदः कई कोशिशें करने की बाद भी नाकाम रहने पर थक-हारकर साधु गांव की ओर घर में अपनी मां के पास पहुंचता है. बुढ़ापे से असक्त हो चुकी मां उसे नहीं पहचान पाती. साधू कहता है कि बहुत भूखा-प्यासा हूं, हो सके तो मुझे भोजन करा दो. साधु रामी के पति बीरू की थाली में भोजन करने की जिद करता है. यह सुनकर रामी और भी ज्यादा बौखलाकर कहती है मैं अपने पति की थाली में किसी गैर को खाना नहीं परोस सकती. मेरे पति की थाली को कोई नहीं छू सकता.

इसी बीच रामी के सतीत्व के प्रभाव से साधु का वेश धरे बीरू अपनी मां के चरणों में गिर पड़ता है और अपना चोला उतार फेंकता है. वह बोला है कि है मां, मैं तुम्हारा बेटा बीरू हूं. मां, देखो मैं वापस आ गया. मां फौरन अपने बेटे को गले लगा लेती है.

गढ़वाल की लोकप्रिय नाटक मंचनः इसी बीच सास की पुकार सुनकर रामी भी बाहर आ गई और इस तरह उसे अपनी तपस्या का फल मिल गया. एक पतिव्रता भारतीय स्त्री का प्रतीक रामी के तप, त्याग और समर्पण है. इस कहानी को उत्तराखंड में खूब कहा-सुना जाता है. इसकी काव्य नाटिका और गीत भी खूब प्रचलित हैं. रामी बौराणी की काव्य नाटिका का मंचन भी बहुत लोकप्रिय है.

26 दिसंबर को शुरू हुआ मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल: मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल का शुभारंभ 26 दिसंबर को हुआ. सीएम धामी ने विंटर लाइन कार्निवाल का उद्घाटन किया था. पहली शाम को बसंती बिष्ट के जागरों ने समां बांधा था. वहीं लखविंदर वडाली ने भी सूफी गायन से लोगों को मोह लिया था. दूसरे दिन की शाम जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण और सीमा ने रंग जमाया था. मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल की तीसरी शाम रामी बौराणी नाटक के नाम रही.

मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल का तीसरा दिन.

मसूरीः विंटर लाइन कार्निवाल की तीसरे दिन की शाम को स्थानीय महिलाओं ने गढ़वाली लोक नृत्य और रामी बौराणी नाटक का मंचन (Jhumelo Group staged Rami Baurani play) किया. मसूरी की प्रमिला नेगी ने झूमेलो ग्रुप (Pramila Negi Jhumelo Group) द्वारा मसूरी के शहीद स्थल पर गणेश वंदना के साथ गढ़वाली लोक नाटक रामी बौराणी (Garhwali Folk Drama Rami Baurani) का मंचन किया. जिसने सभी श्रोताओं को भावुक कर दिया.

इस मौके पर मौजूद लोगों ने स्थानीय महिलाओं के हुनर को सराहा. उन्होंने कहा कि कलाकार के लिए उम्र मायने नहीं रखती है. अगर कलाकर को प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाए तो कलाकार को अपनी कला का हुनर दिखाने का अवसर मिलता है. झूमेलो ग्रुप की प्रमिला नेगी ने बताया कि हमारी आने वाली पीढ़ी को मालूम होना चाहिए कि हमारे गढ़वाल का इतिहास क्या है. नाटक के जरिए यही दर्शाने का प्रयास किया गया है.

उन्होंने सरकार और प्रशासन का मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल में मसूरी की घरेलू महिलाओं को मंच देने के लिए आभार जताया. वहीं, नृत्य नाटिका में रामी की भूमिका निभाने वाली कलाकार लक्ष्मी उनियाल ने बताया कि रामी बौराणी का किरदार निभाते हुए वह बिल्कुल रामी के रूप में ढल गईं थी. उन्होंने कहा कि इस मंच से हमारे उत्तराखंड का इतिहास देश एवं विदेश तक जा सके.
ये भी पढ़ेंः न्यू ईयर के स्वागत के लिए ऋषिकेश तैयार, कहीं डीजे तो कहीं राफ्टिंग पर मचेगा धमाल

क्या है रामी बौराणी कथाः यह एक प्रचलित लोक कथा है. जिसमें उत्तराखंड में नारी के प्यार व त्याग की गाथा है. गढ़वाल का रहने वाला एक सैनिक का 12 वर्ष तक फौज में लड़ाई के दौरान पता नहीं चलता है. उसकी कोई सूचना उसके घर वालों को नहीं होती है. पवित्र मन में आस्था रखकर उसकी धर्मपत्नी रामी को पूरा विश्वास होता है कि उसका पति जरूर एक दिन आएगा. वह 12 साल तक इंतजार करती है. रामी का पति 12 वर्ष के बाद फौज की लड़ाई में लापता होने के बाद अपना वेश बदल कर घर आता है और अपने घर का स्थिति जानने का प्रयास करता है. उसके पिता की मृत्यु हो चुकी होती है. उसकी पत्नी अपनी बूढ़ी सास के साथ समय गुजार रही होती है.

बीरू लेता है रामी की परिक्षा गांव लौटते हुए रामी का पति बीरू सोच रहा है कि 12 साल का वक्त बहुत लंबा होता है. इसलिए वह गांव पहुंचने के बाद पत्नी की परीक्षा लेने के बारे में सोचता है. वह गांव पहुंचने से पहले ही रामी का इम्तिहान लेने के लिए संन्यासी का वेश धारण कर लेता है. जब वह गांव पहुंचता है उसे यह देखकर बड़ी हैरानी होती है कि उसके खेत में एक स्त्री कुछ काम कर रही है. वह पास से देखता है तो वह उसकी पत्नी रामी होती है. कड़ी मेहनत और जीवन के अकेलेपन और विरह वेदना ने रामी के चेहरे का नूर खत्म सा कर दिया है.

धार्मिक श्रद्धा के वशीभूत रामी साधू को प्रणाम करती है. साधु के पूछने पर रामी उसे बताती है कि पति लम्बे समय से प्रदेश में युद्ध में हैं और वह उनका इंतजार कर रही है. साधु से बात करते हुए बताती है कि मेरा नाम रामी है. मैं रावतों की बेटी हूं और पाली के सेठों की बहू हूं. मेरे ससुर परलोक सिधार चुके हैं और सास घर पर हैं. मेरे पति को गए लंबा समय हुआ है और उनकी कुशल-क्षेम तक नहीं मिल पा रही है.

माया जाल में फंसाने की कोशिशः अब साधु असली परीक्षा लेने के लिए उससे कहता है कि रामी 12 वर्ष से क्यों तू उसके इंतजार में अपनी जवानी बर्बाद कर रही है. आओ दो घड़ी बुरांश की छाया में साथ बैठकर बात करते हैं और जीवन का आनंद उठाते हैं. ये सुनते ही वह रामी को गुस्सा आ जाता है वह साधू को खरी-खोटी सुनाते हुए कहती है कि तू साधु नहीं कपटी है, तेरे मन में खोट है. मैं एक पतिव्रता नारी हूं.

बीरू की थाली में भोजन करने की जीदः कई कोशिशें करने की बाद भी नाकाम रहने पर थक-हारकर साधु गांव की ओर घर में अपनी मां के पास पहुंचता है. बुढ़ापे से असक्त हो चुकी मां उसे नहीं पहचान पाती. साधू कहता है कि बहुत भूखा-प्यासा हूं, हो सके तो मुझे भोजन करा दो. साधु रामी के पति बीरू की थाली में भोजन करने की जिद करता है. यह सुनकर रामी और भी ज्यादा बौखलाकर कहती है मैं अपने पति की थाली में किसी गैर को खाना नहीं परोस सकती. मेरे पति की थाली को कोई नहीं छू सकता.

इसी बीच रामी के सतीत्व के प्रभाव से साधु का वेश धरे बीरू अपनी मां के चरणों में गिर पड़ता है और अपना चोला उतार फेंकता है. वह बोला है कि है मां, मैं तुम्हारा बेटा बीरू हूं. मां, देखो मैं वापस आ गया. मां फौरन अपने बेटे को गले लगा लेती है.

गढ़वाल की लोकप्रिय नाटक मंचनः इसी बीच सास की पुकार सुनकर रामी भी बाहर आ गई और इस तरह उसे अपनी तपस्या का फल मिल गया. एक पतिव्रता भारतीय स्त्री का प्रतीक रामी के तप, त्याग और समर्पण है. इस कहानी को उत्तराखंड में खूब कहा-सुना जाता है. इसकी काव्य नाटिका और गीत भी खूब प्रचलित हैं. रामी बौराणी की काव्य नाटिका का मंचन भी बहुत लोकप्रिय है.

26 दिसंबर को शुरू हुआ मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल: मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल का शुभारंभ 26 दिसंबर को हुआ. सीएम धामी ने विंटर लाइन कार्निवाल का उद्घाटन किया था. पहली शाम को बसंती बिष्ट के जागरों ने समां बांधा था. वहीं लखविंदर वडाली ने भी सूफी गायन से लोगों को मोह लिया था. दूसरे दिन की शाम जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण और सीमा ने रंग जमाया था. मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल की तीसरी शाम रामी बौराणी नाटक के नाम रही.

Last Updated : Dec 29, 2022, 10:42 AM IST
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