देहरादूनः देश में बाघों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट से बाघों की संख्या में इजाफा देखा गया है, लेकिन हकीकत ये भी है कि लगातार बाघों के मौत के मामले भी सामने आ रहे हैं. ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड से सामने आया है, जो हैरान करने वाला है. बाघ की मौत के बाद जब उसकी विसरा रिपोर्ट सामने आई तो बड़ा खुलासा हुआ. बाघ की मौत किसी जहरीली धातु की वजह से हुई थी.
विसरा रिपोर्ट में हेवी मेटल का जिक्रः दरअसल, हल्द्वानी रेंज में कुछ समय पहले एक बाघ की मौत हो गई थी. जिसका पोस्टमार्टम कराया गया. साथ ही उसके विसरा को जांच के लिए बरेली स्थित लैब भेजा गया. जब वहां से विसरा रिपोर्ट आई तो बड़ा खुलासा हुआ. विसरा रिपोर्ट के मुताबिक, बाघ की मौत सेप्टीसीमिया यानी किसी हेवी मेटल के पेट में जाने से हुई थी.
हैरानी की बात ये है कि यह धातु खाने या किसी हमले के बाद उसके विसरा में नहीं पहुंचा, बल्कि पानी के स्रोत से यह उसके पेट तक पहुंचा. माना जा रहा है कि जंगल में दूषित जल के कई स्रोत और ताल मौजूद हैं. जहां से पानी पीकर जंगली जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं. अंदेशा जताया जा रहा है कि इस बाघ ने भी वही पानी पिया होगा. जिसके बाद बाघ के पेट में कैंसर हो गया और उसकी मौत हो गई.
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बाघ के पेट में मिला हेवी मेटलः यह बाघ हल्द्वानी के छकाता फॉरेस्ट रेंज में मृत मिला था. बताया जा रहा है कि उसके शरीर के एक हिस्से पर घाव का निशान था, जिसकी वजह से संक्रमण पूरे शरीर पर फैल गया. इस तरह से उसके शरीर ने काम करना बंद कर दिया. जिस वजह से वो न तो खा पा रहा था और न ही किसी तरह का मूवमेंट कर पा रहा था. उधर, बाघ के पोस्टमार्टम के बाद विसरा को हल्द्वानी से सीधे बरेली भेजा गया. तब पता कि घाव की वजह से बाघ को सेप्टीसीमिया हुआ था.
इसके अलावा दूषित पानी पीने की वजह से उसके पेट में हेवी मेटल जमा हो हो गए थे. जानकार बताते हैं कि पानी में कई तरह के धातु पाए जाते हैं, लेकिन जब क्रोमियम कैडमियम के साथ तांबा और पारा समेत यूरेनियम जैसे धातु शरीर में पहुंचते है तो वो पेट या अन्य जगह पर कैंसर पैदा कर देते हैं. जिसकी वजह से इस तरह के मौत के मामले सामने आते हैं.
क्या कहते हैं अधिकारीः हल्द्वानी के डीएफओ बाबू लाल कहते हैं कि बाघ के विसरा रिपोर्ट को बरेली भेजा गया था, जिसमें सेप्टीसीमिया और हेवी मेटल जैसी चीजें मिलने का खुलासा हुआ है. अब हल्द्वानी और आसपास के तमाम क्षेत्रों के जल स्रोतों की मॉनिटरिंग की जाएगी. साथ ही पानी के सैंपल भी जांचे जाएंगे. उत्तराखंड ही नहीं देश के लिए बाघ समेत अन्य जीव जंतु बेहद महत्वपूर्ण है. इसलिए किसी तरह की कोई कोताही नहीं बरती जाएगी. जल्द ही इस अभियान को शुरू किया जाएगा.
उत्तराखंड में बाघों से जुड़े आंकड़ेः बीते 4-5 सालों में देशभर में बाघों की संख्या में इजाफा देखा गया है. आंकड़े बताते हैं कि करीब 4 सालों में 200 से ज्यादा बाघ रिकॉर्ड किए गए हैं. प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने के बाद 9 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसमें बताया गया कि साल 2018 में बाघों की संख्या 2,967 थी. जो साल 2022 में बढ़कर 3,167 हो गई.
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उत्तराखंड में 171 बाघ भी मारे गएः उत्तराखंड में साल 2001 से लेकर 2022 तक 171 बाघ मारे जा चुके हैं. यह मौत या तो नेचुरल हुई है या फिर आपसी संघर्ष में हुई है. इसके अलावा शिकारियों की वजह से भी उनकी जानें गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 6 बाघ शिकारियों ने मारे हैं. जबकि, दुर्घटना में 17 बाघों की मौत हुई है. जंगलों की आग से 2 बाघ मारे गए हैं. जबकि, 4 बाघ आदमखोर घोषित होने के बाद मार दिए गए.
इसके अलावा आपसी संघर्ष में 32 बाघों की जान गई है. जबकि, 81 बाघ प्राकृतिक मौत का शिकार हुए हैं. दो बाघ सांप के काटने से तो एक बाघ की मौत जाल में फंसने की वजह से हुई. हैरानी की बात ये है कि 26 ऐसी मौतें हुई है, जिनके बारे में कोई सूचना या कोई रिपोर्ट या पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद सामने नहीं आई है. ये अज्ञात मौत के मामले हैं.
ये भी है हकीकतः साल 2018 में शिवालिक की पहाड़ियों और गंगा नदी समेत अन्य मैदानी इलाकों में बाघों की संख्या 646 थी. जो 2022 में की गणना में 804 हो गई. हालांकि, उत्तराखंड में बाघ तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन यह भी हकीकत है कि उनके रहने और खाने पीने की साधन और जंगल भी कम हुए हैं. जंगलों में मानवीय हस्तक्षेप की वजह से बाघ आबादी वाले इलाकों में पहुंच रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 से साल 2022 तक करीब 60 लोग बाघ का शिकार हो चुके हैं. सबसे ज्यादा मौत साल 2022 में हुई थी. जिसमें करीब 11 लोगों की जान बाघ ने ले ली थी.
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