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खुशियों की सवारी योजना चलाने में नाकाम रहा स्वास्थ्य महकमा

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Published : Jul 6, 2019, 6:42 PM IST

कई सीएमओ ने तो इस योजना के संचालन को किए जाने को लेकर खुद की असमर्थता भी जताई है. एनएचएम के एमडी युगल किशोर पंत कि मानें तो जिलों में समितियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी और अधिकतर समितियां इसके संचालन में फेल रही है. ऐसे में अब इसके लिए टेंडर किए गए हैं, जिससे नई व्यवस्था के तहत इस योजना को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके.

फाइल फोटो

देहरादून: उत्तराखंड में खुशियों की सवारी योजना स्वास्थ्य महकमें से नहीं संभल पाई. नतीजतन अब योजना के लिए टेंडर करवाए गए हैं. इससे पहले भी इस योजना का संचालन 108 आपातकालीन सेवा द्वारा किया जाता था, लेकिन जिलों के सीएमओ को योजना का संचालन दिए जाने के साथ ही यह योजना पटरी से उतर गई. खुशियों की सवारी योजना लापरवाह स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के चलते पटरी से उतर गई है. जिलों में महिलाओं को ठीक से डिलीवरी के बाद इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

खुशियों की सवारी चलाने में नाकाम स्वास्थ्य विभाग.

पढ़ें- Budget 2019: उत्तराखंड के लिए बड़े काम का था 'ग्रीन बोनस', जानिए प्रदेश को इससे क्या होते फायदे?

उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमे में विभागीय अधिकारियों की हीला हवाली अक्सर तमाम योजनाओं पर भारी पड़ती है. फिलहाल ऐसा ही कुछ खुशियों की सवारी योजना के साथ भी दिखाई दे रहा है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम ) ने इस योजना का संचालन करने की जिम्मेदारी जैसे ही जनपदों के सीएमओ को दी वैसे ही यह योजना पटरी से उतर गई.हालत यह है कि प्रदेश के अधिकतर जिलों में इस सेवा का लाभ सही से महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है.

बता दें कि खुशियों की सवारी योजना गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद उनको घर पहुंचाने से जुड़ी है. इसमें महिलाओं को डिलीवरी के बाद मुफ्त में घर तक पहुंचाया जाता है. हालांकि इस योजना का पहले काफी सफलता के साथ संचालन भी किया गया है, लेकिन यह सफल संचालन तब हुआ जब 108 आपातकालीन सेवा द्वारा इस योजना का संचालन किया गया था, लेकिन जैसे ही इस योजना को 108 आपातकालीन सेवा से वापस लेकर जिलों के सीएमओ को दिया गया वैसे ही यह योजना पूरी तरह से फेल होती दिखाई देने लगी.

पढ़ें- उत्तराखंड में यहां चलती थी सुल्ताना डाकू की हुकूमत, थर-थर कांपते थे ब्रिटिश अधिकारी

यही नहीं खबर है कि कई सीएमओ ने तो इस योजना के संचालन को किए जाने को लेकर खुद की असमर्थता भी जताई है. एनएचएम के एमडी युगल किशोर पंत कि मानें तो जिलों में समितियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी और अधिकतर समितियां इसके संचालन में फेल रही है. ऐसे में अब इसके लिए टेंडर किए गए हैं, जिससे नई व्यवस्था के तहत इस योजना को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके.

उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमा यू तो मुख्यमंत्री के पास है. बावजूद इसके अधिकारियों की योजनाओं को लेकर हीला हवाली बेहद ज्यादा रही है. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दूसरे कामों में व्यस्त होने का फायदा अधिकारी स्वास्थ्य विभाग में तमाम योजनाओं पर लापरवाही के रूप में उठा रहे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में खुशियों की सवारी योजना स्वास्थ्य महकमें से नहीं संभल पाई. नतीजतन अब योजना के लिए टेंडर करवाए गए हैं. इससे पहले भी इस योजना का संचालन 108 आपातकालीन सेवा द्वारा किया जाता था, लेकिन जिलों के सीएमओ को योजना का संचालन दिए जाने के साथ ही यह योजना पटरी से उतर गई. खुशियों की सवारी योजना लापरवाह स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के चलते पटरी से उतर गई है. जिलों में महिलाओं को ठीक से डिलीवरी के बाद इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

खुशियों की सवारी चलाने में नाकाम स्वास्थ्य विभाग.

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उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमे में विभागीय अधिकारियों की हीला हवाली अक्सर तमाम योजनाओं पर भारी पड़ती है. फिलहाल ऐसा ही कुछ खुशियों की सवारी योजना के साथ भी दिखाई दे रहा है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम ) ने इस योजना का संचालन करने की जिम्मेदारी जैसे ही जनपदों के सीएमओ को दी वैसे ही यह योजना पटरी से उतर गई.हालत यह है कि प्रदेश के अधिकतर जिलों में इस सेवा का लाभ सही से महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है.

बता दें कि खुशियों की सवारी योजना गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद उनको घर पहुंचाने से जुड़ी है. इसमें महिलाओं को डिलीवरी के बाद मुफ्त में घर तक पहुंचाया जाता है. हालांकि इस योजना का पहले काफी सफलता के साथ संचालन भी किया गया है, लेकिन यह सफल संचालन तब हुआ जब 108 आपातकालीन सेवा द्वारा इस योजना का संचालन किया गया था, लेकिन जैसे ही इस योजना को 108 आपातकालीन सेवा से वापस लेकर जिलों के सीएमओ को दिया गया वैसे ही यह योजना पूरी तरह से फेल होती दिखाई देने लगी.

पढ़ें- उत्तराखंड में यहां चलती थी सुल्ताना डाकू की हुकूमत, थर-थर कांपते थे ब्रिटिश अधिकारी

यही नहीं खबर है कि कई सीएमओ ने तो इस योजना के संचालन को किए जाने को लेकर खुद की असमर्थता भी जताई है. एनएचएम के एमडी युगल किशोर पंत कि मानें तो जिलों में समितियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी और अधिकतर समितियां इसके संचालन में फेल रही है. ऐसे में अब इसके लिए टेंडर किए गए हैं, जिससे नई व्यवस्था के तहत इस योजना को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके.

उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमा यू तो मुख्यमंत्री के पास है. बावजूद इसके अधिकारियों की योजनाओं को लेकर हीला हवाली बेहद ज्यादा रही है. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दूसरे कामों में व्यस्त होने का फायदा अधिकारी स्वास्थ्य विभाग में तमाम योजनाओं पर लापरवाही के रूप में उठा रहे हैं.

Intro:summary- उत्तराखंड में खुशियों की सवारी योजना स्वास्थ्य महकमें से नहीं संभल पाई... नतीजतन अब योजना के लिए टेंडर करवाए गए हैं... इससे पहले भी इस योजना का संचालन 108 आपातकालीन सेवा द्वारा किया जाता था लेकिन जिलों के सीएमओ को योजना का संचालन दिए जाने के साथ ही यह योजना पटरी से उतर गई...

खुशियों की सवारी योजना लापरवाह स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के चलते पटरी से उतर गई है ...जिलों में महिलाओं को ठीक से डिलीवरी के बाद इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है...


Body:उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमे में विभागीय अधिकारियों की हीला हवाली अक्सर तमाम योजनाओं पर भारी पड़ती है और फिलहाल ऐसा ही कुछ खुशियों की सवारी योजना के साथ भी दिखाई दे रहा है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इस योजना का संचालन करने की जिम्मेदारी जैसे ही जनपदों के सीएमओ को दी वैसे ही यह योजना पटरी से उतर गई.. हालत यह है कि प्रदेश के अधिकतर जिलों में इस सेवा का लाभ सही से महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है... आपको बता दें कि खुशियों की सवारी योजना गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद उनको घर पहुंचाने से जुड़ी है इसमें महिलाओं को डिलीवरी के बाद मुफ्त में घर तक पहुंचाया जाता है... हालांकि इस योजना का पहले काफी सफलता के साथ संचालन भी किया गया है लेकिन यह सफल संचालन तब हुआ जब 108 आपातकालीन सेवा द्वारा इस योजना का संचालन किया गया था लेकिन जैसे ही इस योजना को 108 आपातकालीन सेवा से वापस लेकर जिलों के सीएमओ को दिया गया वैसे ही यह योजना पूरी तरह से फेल होती दिखाई देने लगी... यही नहीं खबर है कि कई सीएमओ ने तो इस योजना के संचालन को किए जाने को लेकर खुद की असमर्थता भी जताई है... NHM के एमडी युगल किशोर पंत की मानें तो जिलों में समितियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी और अधिकतर समितियां इसके संचालन में फेल रही है ऐसे में अब इसके लिए टेंडर किए गए हैं जिससे नई व्यवस्था के तहत इस योजना को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके।

बाइट-युगल किशोर पंत , एमडी, एनएचएम


Conclusion:उत्तराखंड स्वास्थ्य महकमा यू तो मुख्यमंत्री के पास है लेकिन बावजूद इसके अधिकारियों की योजनाओं को लेकर हीला हवाली बेहद ज्यादा रही है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दूसरे कामों में व्यस्त होने का फायदा अधिकारी स्वास्थ्य विभाग में तमाम योजनाओं पर लापरवाही के रूप में उठा रहे हैं।
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