देहरादून: इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तराखंड में करारी शिकस्त मिली है. मतगणना से पहले सत्ता में आने का दम भर रहे पूर्व सीएम हरीश रावत एक बार फिर अपनी ही सीट बचाने में नाकामयाब रहे. वहीं हार के बाद हरीश रावत के राजनीतिक करियर पर भी सवाल उठने लगे हैं. वहीं हरीश रावत अपने को पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता बता रहे हैं. हरीश रावत ने ट्वीट कर लिखा कि आज दिल्ली में 4 बजे कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक है, मैं उसमें भाग लेने जा रहा हूं. दिल्ली की ओर जाने की कल्पना मात्र से मेरे पांव मन-मन भर भारी हो जाए, कैसे सोनिया जी की चेहरे की तरफ देखूंगा! कितना विश्वास था उनका मुझ पर.
हरीश रावत ने आगे लिखा कि देश के शीर्षस्थ सभी कांग्रेसजनों का मुझ पर बहुत बड़ा विश्वास था और हर कोई मुझसे कहता था कि उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार ले आओगे न! कहीं तो मेरी कुछ कमियां रही होंगी, जिससे मैं इतने बड़े विश्वास को कायम नहीं रख पाया और देश के सामान्य कांग्रेसजन का भी विश्वास था उत्तराखंड में हम कांग्रेस की सरकार ला रहे हैं. अब वास्तविकता यह है कि हम हारे ही नहीं हैं बल्कि हमारी हार कई और चिंताजनक संकेत भी दे रही है. मुझे राजनीति में एक स्तर तक पहुंचने के बाद व्यक्ति को व्यक्तिगत भावनाओं को अलग रखना होता है. वास्तविकता यह है पार्टी के सामने जो भविष्य की चुनौतियां हैं, उन चुनौतियों से पार पाना है, केवल हम राजनैतिक पार्टी बनें, सत्ता प्राप्त करें इसलिए नहीं, देश के लिए.
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मेरा आज भी मानना है कि देश के अंदर कोई दूसरी पार्टी ऐसी नहीं है जो पैन इंडिया स्वरूप ग्रहण करने में सक्षम हो और भाजपा का सशक्त विकल्प लोकतांत्रिक विकल्प प्रस्तुत कर सके, टुकड़े-टुकड़े में कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं. मगर उनके डीएनए में वह सब नहीं है जो कांग्रेस की डीएनए में है. मगर हम कहीं न कहीं पर रणनीतिक चूक का शिकार हो रहे हैं या कुछ और ऐसी स्थितियां बन रही हैं कि हर बार हम जनता का विश्वास जीतने में विफल हो जा रहे हैं! देशभर के कांग्रेसजनों और संवैधानिक लोकतंत्र के सेवकों और सामाजिक न्याय की शक्तियों की नजर आज भी कांग्रेस पर टिकी हुई है.
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं, अपने ईष्ट देवता से प्रार्थना करता हूं कि मेरी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व/सीडब्ल्यूसी को इतनी शक्ति दें कि वो इस गहरे होते हुए अंधकार में भी कुछ ऐसी रोशनी पैदा कर सकें कि जिसके रास्ते न केवल पार्टी बल्कि भारत के लिए भी हम एक सशक्त लोकतांत्रिक विकल्प बन सकें, जिसके ऊपर केवल नारे में सबका विश्वास नहीं बल्कि वास्तविक अर्थों में सबका विश्वास हो.