देहरादून: उत्तराखंड में इस बार का राजनीतिक दंगल दो रावतों के बिना ही होने जा रहा है. प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों की उठा पटक के बीच यह दो दिग्गज नेता चुनाव से पहले ही सत्ता से आउट हो गए हैं. एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Former CM Trivendra Singh Rawat) चुनाव की जद से बाहर हो चुके हैं. वहीं, हरक सिंह रावत (Congress leader Harak Singh Rawat) को पार्टी ने इस लड़ाई से बाहर रखा है.
उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हुआ है, जब विधानसभा चुनाव की लड़ाई से त्रिवेंद्र सिंह रावत (BJP leader Trivendra Singh Rawat) और हरक सिंह रावत बाहर हो गए हैं. हालांकि, प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी जंग शुरू हो चुकी है. लेकिन भाजपा से त्रिवेंद्र सिंह रावत इस लड़ाई को बाहर से ही देख रहे हैं. यही हाल कांग्रेस में हरक सिंह रावत का भी है. उत्तराखंड की राजनीति में इन दोनों रावतों का क्या सफर रहा है जानिए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत का राजनीतिक सफर: साल 1969 से राजनीतिक सफर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के साथ जुड़कर करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संघ के प्रचारक के रूप में लंबे समय तक काम किया. इसके बाद 1985 में वह देहरादून महानगर के प्रचारक बने और 1993 में क्षेत्रीय संगठन मंत्री भी बन गए. उसके बाद फिर उन्होंने साल 1997 में भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. राज्य स्थापना के बाद साल 2002 में उन्होंने पहली बार डोईवाला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद साल 2007 के चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल करते हुए भाजपा की सरकार में कैबिनेट मंत्री बन कर अपना कद और ऊंचा कर लिया.
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हालांकि, साल 2012 में वह उमेश शर्मा काऊ से चुनाव हार गए. उधर, साल 2017 में एक बार फिर डोईवाला विधानसभा सीट से जीतकर वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. राज्य स्थापना के बाद अब तक लगातार सभी चुनाव लड़ने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत 2022 के चुनाव के लिए इस चुनावी जंग से बाहर हो गए हैं. वैसे तो उन्होंने खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें टिकट नहीं देना चाहती थी. ऐसी स्थिति में उनका सम्मान रखते हुए पार्टी हाईकमान की इच्छा पर ही उनके द्वारा पत्र लिखा गया.
हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर: उत्तराखंड की राजनीति के दिग्गज और दबंग नेता हरक सिंह रावत भी उत्तराखंड की राजनीति में हमेशा विधानसभा तक पहुंचे हैं. राज्य के सभी चुनाव जीतकर हर बार विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं. हालांकि, हरक सिंह रावत की राजनीति उत्तर प्रदेश के समय से ही काफी आगे तक पहुंच गई थी. उन्होंने साल 1991 में ही उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र का मंत्री बनने में कामयाबी हासिल की थी. हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश की सरकार में पर्यटन मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं.
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साल 1993 में उन्होंने एक बार फिर पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीता. राज्य स्थापना के बाद 2002 में उन्होंने लैंसडाउन विधानसभा सीट से चुनाव जीता और सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. इसके बाद साल 2007 में एक बार फिर लैंसडाउन से चुनाव जीता और नेता प्रतिपक्ष बनकर विधानसभा में कांग्रेस का नेतृत्व किया. इसके बाद 2012 के चुनाव में उन्होंने रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट से जीत हासिल की और सरकार में एक बार फिर कैबिनेट मंत्री बने, जबकि 2017 में वो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और कोटद्वार विधानसभा सीट जीतकर कैबिनेट मंत्री बने.
हाल ही में बीजेपी ने किया निष्कासित: हाल ही में हरक सिंह रावत को बीजेपी अलाकमान ने पार्टी से निष्कासित कर दिया. उसके बाद हरक ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. इस बार उनकी बहू अनुकृति गुसाईं (Congress candidate Anukriti Gusain) को लैंसडाउन से टिकट मिला है. कांग्रेस ने हरक सिंह रावत को टिकट नहीं दिया. इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव कहते हैं कि हरक सिंह रावत के कांग्रेस में शामिल होने के दौरान ही यह तय कर दिया गया था कि हरक सिंह रावत की इच्छा के अनुसार उन्हें प्रदेश में चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी दी जाएगी. उनकी जगह उनकी बहू को इस बार चुनाव मैदान में उतारा गया है. उन्हें उम्मीद है कि वह और बेहतर जनसेवक के रूप में सामने आएंगी.