देहरादूनः उत्तराखंड में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सरकारी तंत्र तो जुटा है, लेकिन निजी अस्पतालों की भूमिका सवालों के घेरे में है. राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या 12 सौ पार कर चुकी है, लेकिन सरकार निजी अस्पतालों की मदद लेने में गुरेज कर रही है. उधर, निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के पुरोधा भी खुद आगे आकर कोरोना महामारी में सहयोग करने की बात कहने का दम नहीं जुटा पा रहे हैं.
बता दें कि, राज्य में 11 कोरोना के मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं और संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 1245 पर पहुंच गया है. ऐसे में अस्पतालों पर दिनों दिन बढ़ते दबाव के बावजूद निजी अस्पतालों की कोरोना को लेकर प्रदेश में अबतक कोई भूमिका तय नहीं की गई है. खास बात ये है कि तेजी से संख्या बढ़ने के चलते अब मरीजों को कोविड केयर सेंटर में भेजा जाने लगा है.
यानी अस्पतालों से बाहर सामान्य रूप से मरीजों को काम चलाऊ व्यवस्था दी जा रही है. ऐसा करने के पीछे अस्पतालों का तर्क मरीजों का पूरी तरह स्वस्थ होना बताया जाता है. लेकिन, ऐसा है तो फिर मरीजों को उनके घरों पर ही रहने की इजाजत क्यों नही दी जा रही है.
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हकीकत ये है कि प्रदेश में कोविड-19 मरीजों को लेकर जैसे-जैसे सरकारी अस्पताल पर दबाव बढ़ रहा है. सरकार अपनी सहूलियत के लिहाज से मानकों को बदल रही है. जबकि, निजी अस्पतालों की भूमिका को भी तय कर व्यवस्थाओं को बड़ा और बेहतर किया जा सकता था. सवाल ये उठता है कि आखिरकार सरकार निजी अस्पतालों को पूरी तरह से अधिकृत कर कोविड-19 डेडीकेटेड अस्पताल करने से क्यों गुरेज कर रही है.
दून मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 को लेकर ज्यादा दबाव है. एक समय ऐसा था जब अस्पताल में करीब ढाई सौ मरीज और संदिग्धों को रखा गया था. फिलहाल दून मेडिकल कॉलेज में करीब 300 बेड मौजूद हैं, जिसमें 100 कोविड 19 के मरीज रखे गए हैं.
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आंकड़ों के लिहाज से अस्पताल में बेड की पर्याप्त व्यवस्था दिखाई देती है, लेकिन हकीकत यह भी है कि यहां से बड़ी संख्या में मरीजों को सामान्य रूप से बनाए गए कोविड केयर सेंटर्स भेजा जा रहा है. इतना ही नहीं मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए बदले गए मानकों के अनुसार पहले की तुलना में काफी कम समय में ही मरीज को छुट्टी दी जा रही है.
वहीं, स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती का कहना है कि सरकार के पास फिलहाल व्यवस्थाएं पर्याप्त हैं, लेकिन हालात बिगड़ते हैं तो निजी अस्पतालों को भी इसमें सहायता के लिए शामिल किया जाएगा. बहरहाल, अस्पतालों में बेड बढ़ाकर मरीजों की जिम्मेदारी को लेकर इतिश्री तो की जा रही है, लेकिन वरिष्ठ डॉक्टरों की तैनाती और पर्याप्त स्टाफ की व्यवस्था करना भी महकमे के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.