देहरादून: उत्तराखंड में भू कानून जल्द लागू (Uttarakhand Land Law) होने की उम्मीद है. भू कानून समिति ने हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सूक्ष्म लघु व मध्यम श्रेणी के उद्योग लगाने के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी के स्थान पर शासन स्तर से देने की सिफारिश की है. इसको लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी गई है. वहीं, कांग्रेस ने राज्य सरकार की ओर से गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस का कहना है कि समिति की सिफारिशें भू सुधार की बजाय भूमि की खरीद फरोख्त कर सरकार के चेहते उद्योगपतियों और बड़े उद्योग तक ही सीमित करने जैसी है.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि बीजेपी सरकार उच्च अधिकार प्राप्त समिति के गठन से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति (Land Law Committee in Uttarakhand) के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने बीते 4 सालों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए अपने चहेते और खास लोगों को जमीन खरीदने की अनुमति देकर उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि को कौड़ियों के भाव नीलाम किया है.
करन माहरा (Congress State President Karan Mahara) ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी स्वीकारा गया है कि अभी तक जिलाधिकारी की ओर से कृषि या औद्योगिक प्रयोजन के लिए कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है, लेकिन कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि, औद्योगिक प्रयोजना करके रिजॉर्ट, निजी बंगले बनवाकर उस भूमि का दुरुपयोग किया गया है.
समिति की संस्तुतियां मानी तो जमीन खरीदना और भी आसानः वहीं, केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत का कहना है कि राज्य सरकार बड़ी धूमधाम से एक समिति लाई थी. इसमें समिति की राय पर भू कानून पर परिवर्तन की बात कही गई थी, लेकिन रिपोर्ट देखने पर लगता है कि जिस जमीन को बचाने का दावा राज्य सरकार कर रही थी, उसके ठीक उलट यदि समिति की संस्तुतियां मान ली जाएंगी तो राज्य में जमीनों को खरीदना और सरल होगा. ऐसे में फर्क सिर्फ इतना रह जाएगा कि जो अनुमति पहले जिलाधिकारी दिया करते थे, वो अनुमति अब शासन देगा.
मनोज रावत (Former Kedarnath MLA Manoj Rawat) का कहना है कि 6 दिसंबर 2018 को बीजेपी सरकार उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमीदारी उन्मूलन विधेयक अधिनियम की धारा 143 और 144 में परिवर्तन लाई है. इससे उत्तराखंड में औद्योगीकरण (Industrialization in Uttarakhand) यानी (उद्योग, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य) कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी कहीं भी कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी गई थी. उन्होंने कहा कि भूमि क्रय विक्रय के नियमों में बदलाव करने के बाद बीते 4 सालों में बीजेपी सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीन खरीदने की अनुमति दी है.
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कांग्रेस ने मांगा भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्यौराः कांग्रेस का कहना है कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने सभी जिला अधिकारियों से जिला स्तर पर विभिन्न उद्योगपतियों, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं के नाम पर भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्यौरा भी मांगा गया, ऐसे में राज्य की जनता को ये भी जानने का पूरा अधिकार है कि 6 दिसंबर 2018 के बाद धाराओं में परिवर्तन के बाद राज्य सरकार या अधिकारियों ने किस-किस को कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है.
क्या है भू कानून समिति: भू कानून समिति (Land Law Committee in Uttarakhand) में अध्यक्ष समेत कुल पांच सदस्य हैं. इसमें समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं. सदस्य के तौर पर दो रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल और अरुण कुमार ढौंडियाल शामिल हैं. डेमोग्राफिक चेंज होने की शिकायत करने वाले अजेंद्र अजय भी इसके सदस्य हैं. उधर, सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन फिलहाल इस समिति में हैं.
हिमाचल के भू कानून की दिखेगी छवि: उम्मीद की जा रही है कि समिति की तरफ से जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है, उसमें हिमाचल के भू कानून की भी कुछ झलक दिख सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तराखंड में नए कानून को हिमाचल की तर्ज पर बनाए जाने की मांग उठती रही है. समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं.
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इतना ही नहीं इस समिति की तरफ से हिमाचल के भू कानून (Land Law in Himachal) का अध्ययन किया गया है. समिति की तरफ से इस कानून के लिए मांगे गए सुझावों में करीब 200 सुझाव मिले थे. इनमें ज्यादातर में उत्तराखंड की तरह ही भौगोलिक परिस्थितियां होने के कारण हिमाचल के भू कानून को प्रदेश में लागू करने के सुझाव मिले थे.
राज्य गठन से है सख्त भू कानून की मांग: वैसे भू कानून उत्तराखंड के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है. राज्य स्थापना के बाद से ही भू कानून की मांग उठने लगी थी. उस दौरान उत्तर प्रदेश का ही भू अधिनियम प्रदेश में लागू रहा. राज्य बनने के बाद काफी तेजी से जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई. इसी को देखते हुए एनडी तिवारी सरकार में भू कानून को लेकर कुछ संशोधन किए गए. उत्तराखंड दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा हुआ है. यहां 71 फीसदी वनों के साथ 13.92 फीसदी मैदानी भूभाग है, तो 86% पर्वतीय क्षेत्र है.
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