डोईवालाः देहरादून से लालढांग हरिद्वार की ओर जाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को डोईवाला के माजरी में एक गन्ने का खेत दिखा. तभी अचानक वो गाड़ी रुकवाकर उस गन्ने के खेत में पहुंचे और गन्ने को तोड़कर चूसते हुए उन्होंने गन्ना किसानों की पीड़ा पर बात की. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार ने किसानों के गन्ने के समर्थन मूल्य को नहीं बढ़ाया है, जबकि देश विदेश में चीनी की भारी मांग चल रही है.
उन्होंने कहा कि किसान लंबे समय से गन्ने के समर्थन मूल्य को बढ़ाने की मांग कर रहा है लेकिन सरकार ने किसानों की अनदेखी करके इस बार समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाया है. गन्ने की लागत को देखते हुए सरकार को गन्ने का समर्थन मूल्य 400 से 425 रुपए करना चाहिए था. हरीश रावत ने कहा कि गन्ने के समर्थन मूल्य में वृद्धि न करके सरकार ने किसानों के त्यौहार को फीका कर दिया है. उन्होंने कहा कि इकबालपुर चीनी मिल पर किसानों का करोड़ों रुपया बकाया चल रहा है.
वहीं, अपने सोशल मीडिया पर भी हरीश रावत ने इस वाकये को शेयर किया. उन्होंने लिखा कि, 'इस साल किसान समझ रहा था कि उसके गन्ने का मूल्य बढ़ेगा और उसका गन्ना उसके लिए मीठा होगा! गन्ना तो मीठा है, मगर सरकार ने उसका मूल्य न बढ़ाकर पिछले साल का ही मूल्य रखकर उसका स्वाद फीका कर दिया, इसलिए किसानों की दिवाली में भी यह कसर रह गई कि हमको हमारे गन्ने अच्छा मूल्य नहीं मिल पाया.'
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वहीं, इस दौरान किसान नेता उम्मेद बोरा ने कहा कि किसानों को सरकार से इस बार उम्मीद थी लेकिन सरकार ने किसानों की अनदेखी कर समर्थन मूल्य में एक रुपये की भी बढ़ोतरी नहीं की, जिससे किसान निराश हैं. किसानों ने शुगर मिल के अधिशासी निदेशक से मिलकर अपनी समस्याओं को भी रखा है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सरकार तक अपनी बात को पहुंचाने के अनोखे तरीके होते हैं. कभी पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए झंगोरा की खीर और मंडुए की रोटी खाते दिखाई देते हैं तो कभी सड़क किनारे ही जलेबी-पकौड़ी तलते और चखते हुए चलते हैं. हरीश रावत का यह अंदाज प्रदेशभर में पसंद भी किया जाता है.