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जंगलों को बर्बाद न कर दे वन विभाग का ये नया प्रस्ताव, पंचायतों की होगी बल्ले-बल्ले - मृत वृक्षों के कटान से जुड़ा प्रस्ताव

उत्तराखंड वन विभाग 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों को काटने का अधिकार ग्रामीण पंचायतों को देने पर विचार कर रहा है. यह 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मृत वृक्षों के कटान से जुड़ा प्रस्ताव होगा.

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Published : Dec 2, 2021, 10:25 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड वन विभाग पहाड़ी जिलों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए एक बड़ा प्रस्ताव तैयार करने जा रहा है. यह प्रस्ताव ग्रामीण पंचायतों को एक खास अधिकार देने की शुरुआत है, जिसे स्थानीय लोगों के लिहाज से अच्छा माना जा सकता है. लेकिन, अक्सर ऐसे फैसलों पर वनों के माफियाओं की भी नजर होती है. जो ऐसे निर्णयों का अपने हक में फायदा उठाने में देरी नहीं करते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से अक्सर जंगलों पर हक-हकूकधारी की मांग सुनाई देती रही है. यह मांग जंगलों के चारे और जरूरी लकड़ियों की जरूरत को लेकर उठाई जाती रही है. जबकि, देश के कठोर वन कानून के चलते लोग जंगलों के रक्षक होने के बावजूद उस पर अपना अधिकार नहीं रखते हैं. लेकिन, वन महकमे का नया प्रस्ताव अब पहाड़ी जिलों में लोगों को कुछ राहत जरूर दे सकता है.

जंगलों को बर्बाद न कर दे वन विभाग का ये नया प्रस्ताव.

दरअसल, वन विभाग 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों को काटने का अधिकार यहां के लोगों या पंचायतों को देने पर विचार कर रहा है. बकायदा इसके लिए अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश भी दे दिए गए हैं. वन मंत्री हरक सिंह रावत इस प्रस्ताव को तैयार करने की बात कह रहे हैं. यह 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मृत वृक्षों के कटान से जुड़ा प्रस्ताव होगा.

अब तक इसका अधिकार वन विकास निगम को था. लेकिन, अब स्थानीय पंचायतों को ही इसका कटान और इस्तेमाल करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसको शासन से मंजूरी मिलने के बाद स्थानीय लोगों को इस अधिकार को देने की कसरत शुरू की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः इंडोर स्टेडियम का खेल मंत्री अरविंद पांडे ने किया शुभारंभ, खिलाड़ियों को मिलेगा लाभ

वैसे आपको बता दें कि 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हरे वृक्षों को काटे जाने पर रोक है. जिसको लेकर उत्तराखंड सरकार पहले ही केंद्र में गुहार लगाकर 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर जरूरत के लिहाज से पेड़ काटे जाने की मंजूरी राज्य को देने की मांग कर चुका है. वैसे विपक्षी दलों को भी यह प्रस्ताव पसंद आया है और पार्टी के नेता जनता के हक वाले इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने बताया कि पेड़ों की कटाई और चटाई का अधिकार लोगों को दिया जाना बेहद जरूरी है. बशर्ते कि इससे पर्यावरण पर कोई गलत असर न पड़े.

उत्तराखंड में वनों की स्थिति पर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 1000 से 2000 मीटर तक सबसे ज्यादा वन मौजूद है. प्रदेश में करीब 41.31% वन इसी क्षेत्र में है, जबकि इससे कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में करीब 36 प्रतिशत वन है. 2000 मीटर से 3000 मीटर तक 23.76% और 3000 से 4000 मीटर तक 6.74% वन हैं. 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले जगहों पर सबसे कम 0.03% वन है.

बता दें कि उत्तराखंड में पर्यावरण को लेकर पहली बार स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा आंदोलन हुआ था. चमोली के एक छोटे से गांव रैणी से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी. यह आंदोलन 1970 के दशक में हुआ, जिसमें 1974 के दौरान चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में इस आंदोलन को चलाया गया और लोगों को बाहर की एक कंपनी द्वारा पेड़ों को काटे जाने के नुकसान के लिए जागरूक किया गया.

ये भी पढ़ेंः रुद्रप्रयाग के इस गांव में दोगुनी कीमत पर पड़ रहा ग्रामीणों को गैस सिलेंडर, जानिए वजह

इसके बाद इसी साल गौरा देवी ने 27 महिलाओं का नेतृत्व करते हुए पेड़ों से चिपक कर इस आंदोलन को चमोली ही नहीं बल्कि कई जिलों में फैला दिया. यह आंदोलन भले ही पेड़ों को न काटे जाने को लेकर हुआ हो. लेकिन हकीकत में इसकी मनसा स्थानीय लोगों को जंगलों पर अधिकार से जुड़ी थी. हालांकि, इस आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों को काटे जाने पर पूरा प्रतिबंध लगा दिया.

उत्तराखंड वन विभाग द्वारा प्रस्ताव को तैयार कर लोगों के हक में इसे आगे बढ़ाने की बात कही जा रही है. लेकिन, एक तरफ जहां स्थानीय लोगों और पंचायतों को इसका फायदा होगा. वहीं, दूसरी तरफ यह भी संभावना लगाई जा रही है कि इससे कुछ वन माफिया भी सक्रिय हो सकते हैं और कमजोर वन पंचायतों में इस नियम का फायदा भी उठाया जा सकता है. ऐसे में जानकार कहते हैं कि नियम लोगों की बेहतरी के लिए है. लेकिन, इसको लेकर सरकार को निगरानी भी करनी होगी ताकि इसके बहाने हरे पेड़ों पर आरियां न चले.

देहरादूनः उत्तराखंड वन विभाग पहाड़ी जिलों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए एक बड़ा प्रस्ताव तैयार करने जा रहा है. यह प्रस्ताव ग्रामीण पंचायतों को एक खास अधिकार देने की शुरुआत है, जिसे स्थानीय लोगों के लिहाज से अच्छा माना जा सकता है. लेकिन, अक्सर ऐसे फैसलों पर वनों के माफियाओं की भी नजर होती है. जो ऐसे निर्णयों का अपने हक में फायदा उठाने में देरी नहीं करते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से अक्सर जंगलों पर हक-हकूकधारी की मांग सुनाई देती रही है. यह मांग जंगलों के चारे और जरूरी लकड़ियों की जरूरत को लेकर उठाई जाती रही है. जबकि, देश के कठोर वन कानून के चलते लोग जंगलों के रक्षक होने के बावजूद उस पर अपना अधिकार नहीं रखते हैं. लेकिन, वन महकमे का नया प्रस्ताव अब पहाड़ी जिलों में लोगों को कुछ राहत जरूर दे सकता है.

जंगलों को बर्बाद न कर दे वन विभाग का ये नया प्रस्ताव.

दरअसल, वन विभाग 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों को काटने का अधिकार यहां के लोगों या पंचायतों को देने पर विचार कर रहा है. बकायदा इसके लिए अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश भी दे दिए गए हैं. वन मंत्री हरक सिंह रावत इस प्रस्ताव को तैयार करने की बात कह रहे हैं. यह 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मृत वृक्षों के कटान से जुड़ा प्रस्ताव होगा.

अब तक इसका अधिकार वन विकास निगम को था. लेकिन, अब स्थानीय पंचायतों को ही इसका कटान और इस्तेमाल करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसको शासन से मंजूरी मिलने के बाद स्थानीय लोगों को इस अधिकार को देने की कसरत शुरू की जाएगी.

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वैसे आपको बता दें कि 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हरे वृक्षों को काटे जाने पर रोक है. जिसको लेकर उत्तराखंड सरकार पहले ही केंद्र में गुहार लगाकर 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर जरूरत के लिहाज से पेड़ काटे जाने की मंजूरी राज्य को देने की मांग कर चुका है. वैसे विपक्षी दलों को भी यह प्रस्ताव पसंद आया है और पार्टी के नेता जनता के हक वाले इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने बताया कि पेड़ों की कटाई और चटाई का अधिकार लोगों को दिया जाना बेहद जरूरी है. बशर्ते कि इससे पर्यावरण पर कोई गलत असर न पड़े.

उत्तराखंड में वनों की स्थिति पर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 1000 से 2000 मीटर तक सबसे ज्यादा वन मौजूद है. प्रदेश में करीब 41.31% वन इसी क्षेत्र में है, जबकि इससे कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में करीब 36 प्रतिशत वन है. 2000 मीटर से 3000 मीटर तक 23.76% और 3000 से 4000 मीटर तक 6.74% वन हैं. 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले जगहों पर सबसे कम 0.03% वन है.

बता दें कि उत्तराखंड में पर्यावरण को लेकर पहली बार स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा आंदोलन हुआ था. चमोली के एक छोटे से गांव रैणी से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी. यह आंदोलन 1970 के दशक में हुआ, जिसमें 1974 के दौरान चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में इस आंदोलन को चलाया गया और लोगों को बाहर की एक कंपनी द्वारा पेड़ों को काटे जाने के नुकसान के लिए जागरूक किया गया.

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इसके बाद इसी साल गौरा देवी ने 27 महिलाओं का नेतृत्व करते हुए पेड़ों से चिपक कर इस आंदोलन को चमोली ही नहीं बल्कि कई जिलों में फैला दिया. यह आंदोलन भले ही पेड़ों को न काटे जाने को लेकर हुआ हो. लेकिन हकीकत में इसकी मनसा स्थानीय लोगों को जंगलों पर अधिकार से जुड़ी थी. हालांकि, इस आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों को काटे जाने पर पूरा प्रतिबंध लगा दिया.

उत्तराखंड वन विभाग द्वारा प्रस्ताव को तैयार कर लोगों के हक में इसे आगे बढ़ाने की बात कही जा रही है. लेकिन, एक तरफ जहां स्थानीय लोगों और पंचायतों को इसका फायदा होगा. वहीं, दूसरी तरफ यह भी संभावना लगाई जा रही है कि इससे कुछ वन माफिया भी सक्रिय हो सकते हैं और कमजोर वन पंचायतों में इस नियम का फायदा भी उठाया जा सकता है. ऐसे में जानकार कहते हैं कि नियम लोगों की बेहतरी के लिए है. लेकिन, इसको लेकर सरकार को निगरानी भी करनी होगी ताकि इसके बहाने हरे पेड़ों पर आरियां न चले.

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