देहरादून: उत्तराखंड को अपराधिक घटनाओं (criminal incident in uttarakhand) के लिहाज से बेहद शांत प्रदेश माना जाता है. दूसरे प्रदेशों के मुकाबले यहां बड़े अपराधों का ग्राफ काफी कम दिखाई देता है, लेकिन यह हालात पर्यावरणीय लिहाज से ठीक उलट दिखाई देते हैं. स्थिति यह है कि पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) को लेकर बनाए गए नियमों की यहां जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. शायद इसीलिए उत्तराखंड देश में पर्यावरणीय अपराधों में अव्वल दिखाई देता है. हिमालयी राज्यों में तुलनात्मक रूप से तो देवभूमि के हालात और गंभीर दिखाई देते हैं.
उत्तराखंड के लिए पर्यावरण एक बहुमूल्य संपदा (valuable environmental asset) है. यहीं कारण है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर राज्य सरकार, केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस (Green bonus demand) की मांग भी करता रहा है. इसका मकसद राज्य द्वारा बहुमूल्य पर्यावरणीय संपदा का दोहन ना करते हुए इसके संरक्षण के एवज में क्षतिपूर्ति लेना है. हालांकि, केंद्र आज तक राज्य की इस भावना को नहीं समझ पाया है, लेकिन पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए उत्तराखंड में जो स्थितियां मौजूद है, उसकी कीमत देश और दुनिया अच्छी तरह से जानती है. वैसे इसी स्वस्थ पर्यावरणीय माहौल के बीच कुछ आंकड़े ऐसे भी हैं, जो काफी रोचक होने के साथ प्रदेश के लिए चिंता बढ़ाने वाले भी हैं.
ये आंकड़े पर्यावरणीय अपराधों से जुड़े हैं, जो उत्तराखंड को बहुमूल्य वन संपदा वाला राज्य होने के साथ यहां नियम और कानूनों की धज्जियां उड़ाने का भी बोध कराते हैं. दरअसल NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau) की तरफ से साल 2021 तक की, जो रिपोर्ट सामने आई है, उसमें पर्यावरणीय अपराधों में उत्तराखंड को काफी संवेदनशील दिखाया गया है.
क्या कहते हैं आंकड़े यह भी जानिए: उत्तराखंड पर्यावरण के लिहाज से बेहद धनी राज्य है. यहां विश्व प्रसिद्ध राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park) से लेकर कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Park) और दूसरे कई पशु विहार और राष्ट्रीय पार्क मौजूद हैं. प्रदेश का करीब 70% क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है. इसमें भी एक बड़ा क्षेत्र ऐसा है, जो रिजर्व फॉरेस्ट को जाता है. हिमालय की ऊंची श्रृंखलाओं में मौजूद ग्लेशियर से निकलने वाला शुद्ध पानी कई नदियों को प्रवाह देता है. यानी जंगलों के अपार विस्तार से लेकर वन्यजीवों तक की मौजूदगी के साथ स्वच्छ पानी और हवा उत्तराखंड की पहचान रही है.
वहीं, यह भी सच है कि जहां संपदा है, वहां इस संपदा पर गलत निगाह रखने वाले लोगों की भी मौजूदगी होती है. जाहिर है कि इतनी बड़ी संपदा के बीच अपराधिक मामलों का अधिक संख्या में दर्ज किया जाना स्वाभाविक है. इसी बात को उत्तराखंड पुलिस महकमा भी बयां कर रहा है. उत्तराखंड पुलिस विभाग में अपर पुलिस महानिदेशक डॉ. वी मुरुगेशन बताते हैं कि पर्यावरणीय अपराध कई तरह के होते हैं. जिसमें वाइल्डलाइफ की तस्करी के साथ ही टोबैको और स्मोकिंग प्रोडक्ट एक्ट के तहत पुलिस की अहम भूमिका होती है. जिसके लिए समय-समय पर पुलिस अधिकारियों को निर्देशित भी किया जाता है. पुलिस विभाग की सक्रियता अधिक होने के कारण ऐसे मामलों में अपराधिक घटनाएं अधिक संख्या में रजिस्टर्ड होती है.
एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने देशभर में पर्यावरणीय अपराधों को लेकर जो रिकॉर्ड तैयार किया है. उसमें तमिलनाडु पहले पायदान पर है. यहां पर पर्यावरणीय अपराधों की संख्या (number of environmental crimes) सबसे अधिक दिखाई देती है. हालांकि, उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए देश में छठे पायदान पर रहना भी एक चिंता की बात है. आपको यह भी बता दें कि पर्यावरणीय अपराधों में एनसीआरबी की तरफ से विभिन्न पर्यावरण से जुड़े एक्ट शामिल किए गए. अलग-अलग तमाम कैटेगरी में इसका आकलन किया गया है.
पर्यावरणीय अपराधों को लेकर NCRB के आंकड़े: पर्यावरणीय अपराधों में उन सभी श्रेणियों को शामिल किया जाता है, जिससे पर्यावरण पर सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव पड़ता है. प्रदेश में जंगलों की आग एक बड़ी वजह है. इन मामलों में भी जानबूझकर आग लगाने वाले लोगों पर कार्रवाई की जाती है. पर्यावरणीय अपराधों को लेकर सामने आए आंकड़ों को लेकर अध्ययन करने वाले जानकार चिंता जाहिर करते हैं. पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर एके बियानी बताते हैं कि पर्यावरणीय अपराध को लेकर यह आंकड़े चिंताजनक हैं. इसके लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए. पर्यावरण को नुकसान की एक बड़ी वजह विकास कार्यों को लेकर भारी दबाव है. इसके अलावा राज्य में पर्यटकों के कारण भी पर्यावरण पर भारी दबाव रहता है.