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खुले द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट, यहां जल की कुछ बूंदें दिला देती हैं मोक्ष

उत्तराखंड में चार धाम और पंच केदार हैं, जिनकी पूजा-अर्चना अतीत से चली आ रही है. पंच केदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जबकि द्वितीय केदार के रूप में भगवान मद्महेश्वर को पूजा जाता है.

मद्महेश्वर मंदिर.
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Published : May 21, 2019, 8:33 AM IST

Updated : May 21, 2019, 2:02 PM IST

देहरादून: भगवान मद्महेश्वर के कपाट मंगलवार पूर्वाह्न 11:10 बजे पूरे विधि-विधान से श्रद्धालुओं के लिए खोले दिए गए हैं. इसे द्वितीय केदार भी कहा जाता है, जिसका हिन्दू स्वाबिलंबियों के लिए खास महत्व है. भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली रात्रि प्रवास के लिए अंतिम पड़ाव गौंडार गांव पहुंचते ही स्थानीय लोगों ने पारंपरिक वाद्य यंत्र के साथ डोली का स्वागत किया था. स्थानीय लोगों के साथ ही श्रद्धालुओं ने डोली की पूजा-अर्चना की.

उत्तराखंड में चार धाम और पांच पंच केदार हैं, जिनकी पूजा-अर्चना अतीत से चली आ रही है. पंच केदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जबकि द्वितीय केदार के रूप में भगवान मद्महेश्वर को पूजा जाता है. पंच केदारों में भगवान मद्महेश्वर को शिव का नाभि क्षेत्र कहा जाता है.

पौराणिक कथा के अनुसार मद्महेश्वर मंदिर के प्राकृतिक नैसर्गिक सुंदरता के कारण भगवान शिव और माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहां मनाई थी. मान्यता है कि यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं. शीतकाल में छह माह के लिए मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. जिसके बाद भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली मंदिर तक पहुंचाने के साथ ही कपाट खुलते हैं. मद्महेश्वर मंदिर समुद्रतल से 3497 मीटर की उंचाई पर स्थित है. शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने पर मद्महेश्वर की पूजा ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में होती है. मद्महेश्वर धाम से दो किमी की दूरी पर धौला क्षेत्रपाल नामक गुफा भी स्थित है.

देहरादून: भगवान मद्महेश्वर के कपाट मंगलवार पूर्वाह्न 11:10 बजे पूरे विधि-विधान से श्रद्धालुओं के लिए खोले दिए गए हैं. इसे द्वितीय केदार भी कहा जाता है, जिसका हिन्दू स्वाबिलंबियों के लिए खास महत्व है. भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली रात्रि प्रवास के लिए अंतिम पड़ाव गौंडार गांव पहुंचते ही स्थानीय लोगों ने पारंपरिक वाद्य यंत्र के साथ डोली का स्वागत किया था. स्थानीय लोगों के साथ ही श्रद्धालुओं ने डोली की पूजा-अर्चना की.

उत्तराखंड में चार धाम और पांच पंच केदार हैं, जिनकी पूजा-अर्चना अतीत से चली आ रही है. पंच केदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जबकि द्वितीय केदार के रूप में भगवान मद्महेश्वर को पूजा जाता है. पंच केदारों में भगवान मद्महेश्वर को शिव का नाभि क्षेत्र कहा जाता है.

पौराणिक कथा के अनुसार मद्महेश्वर मंदिर के प्राकृतिक नैसर्गिक सुंदरता के कारण भगवान शिव और माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहां मनाई थी. मान्यता है कि यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं. शीतकाल में छह माह के लिए मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. जिसके बाद भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली मंदिर तक पहुंचाने के साथ ही कपाट खुलते हैं. मद्महेश्वर मंदिर समुद्रतल से 3497 मीटर की उंचाई पर स्थित है. शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने पर मद्महेश्वर की पूजा ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में होती है. मद्महेश्वर धाम से दो किमी की दूरी पर धौला क्षेत्रपाल नामक गुफा भी स्थित है.

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श्रद्धालुओं के लिए आज खुलेंगे मद्महेश्वर धाम के कपाट, ये है मान्यता

doors of  madhmeshwar temple will open on tuesday

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देहरादून: आज भगवान मद्महेश्वर के कपाट पूर्वाह्न 11:10 बजे पूरे विधि-विधान से श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. इसे द्वितीय केदार भी कहा जाता है, जिसका हिन्दू स्वाबिलंबियों के लिए खास महत्व है. भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली रात्रि प्रवास के लिए अंतिम पड़ाव गौंडार गांव पहुंचते ही स्थानीय लोगों ने पारंपरिक वाद्य यंत्र के साथ डोली का स्वागत किया. साथ ही स्थानीय लोगों के साथ ही श्रद्धालुओं ने डोली की पूजा-अर्चना की. 

उत्तराखंड में चार धाम और पांच पंच केदार हैं, जिनकी पूजा-अर्चना अतीत से चली आ रही है. पंच केदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जबकि द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर को पूजा जाता है. पंच केदारों में भगवान मद्महेश्वर को शिव का नाभि क्षेत्र कहा जाता है. रुद्रप्रयाग जिले के एक बड़े हिस्से के लोगों के आराध्य देव के रूप में भगवान को यहां पूजा जाता है.

पौराणिक कथा के अनुसार मद्महेश्वर मंदिर के प्राकृतिक नैसर्गिक सुंदरता के कारण भगवान शिव और माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहां मनाई थी. मान्यता है कि यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं. शीतकाल में छह माह के लिए मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. जिसके बाद भगवान मद्महेश्वर की विग्रह डोली मंदिर तक पहुंचाने के साथ ही कपाट खुलते हैं. 

मद्महेश्वर मंदिर समुद्रतल से 3497 मीटर की उंचाई पर स्थित है. शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने पर मद्महेश्वर की पूजा ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में होती है. मदमहेश्वर धाम से दो किमी की दूरी पर धौला क्षेत्रपाल नामक गुफा भी स्थित है.

 


Conclusion:
Last Updated : May 21, 2019, 2:02 PM IST
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