ऋषिकेश: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स ऋषिकेश के सर्जिकल गैस्ट्रो एंट्रोलॉजी विभाग में बीते दिनों एक दुर्लभ कंडीशन 'साइटस इनवर्सस' में रोबोट के जरिए सफलतापूर्वक गॉल ब्लैडर सर्जरी की गई. डॉक्टरों की मानें तो शल्य चिकित्सा के बाद मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है. संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ मीनू सिंह ने इस उपलब्धि के लिए चिकित्सकीय टीम की प्रशंसा की है.
एम्स सर्जिकल गैस्ट्रो एंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निर्झर राज ने बताया कि मेरठ निवासी महिला को तीन महीने पहले पेट के बाईं तरफ दर्द हुआ था. जिसके बाद महिला ने सहारनपुर मेडिकल कॉलेज में इसका परीक्षण कराया. जिसमें पाया गया कि उसके पेट में हो रहे दर्द का कारण गॉल ब्लैडर में पथरी (gall bladder stone) है. इस केस में खास बात ये रही कि महिला का गॉल ब्लैडर पेट के बाईं तरफ है, जबकि यह सामान्यतः दाईं तरफ होता है.
इसके बाद आगे अन्य परीक्षण कराने पर पता चला कि महिला एक रेयर शारीरिक विसंगति 'साइटस इनवर्सस' से पीड़ित है. जिसमें छाती एवं पेट में अंग रिवर्स पोजीशन में होते हैं. हृदय शरीर के दाईं तरफ होता है और पेट में लिवर, गॉल ब्लैडर पेट के बाईं ओर जबकि तिल्ली पेट के दाईं तरफ होती है. लिहाजा, इस केस को सहारनपुर मेडिकल कॉलेज ने एम्स रेफर कर दिया.
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डॉक्टर निर्झर राज ने बताया कि लेपरोस्कोपी गॉल ब्लैडर सर्जरी एक कॉमन प्रोसीजर है, लेकिन अंगों की जगह शरीर में सामान्य से उल्टा होने से प्रोसीजर में चिकित्सकीय टीम को थोड़ी दिक्कत आती है. लिहाजा, संस्थान की गैस्ट्रो सर्जरी टीम ने इस सर्जरी को रोबोट विधि से करने का निर्णय (Robotic gallbladder Surgery in AIIMS Rishikesh) लिया. हालांकि, सर्जरी का बड़ा हिस्सा इसमें भी नॉन डोमिनेटिंग हैंड से करना पड़ता है, फिर भी इंस्ट्रूमेंट की ज्यादा डिग्री मूवमेंट की वजह से लेप्रोस्कोपी पर इसका एडवांटेज मिलता है.
संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉक्टर प्रवीण तलवार ने बताया कि महिला को एनेस्थीसिया के लिए गले में ट्यूब डालना भी मुश्किल था. जिसे बखूबी अंजाम दिया गया. सफल सर्जरी करने वाली टीम में गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के रेजिडेंट डॉक्टर दीप्ति, डॉक्टर मिथुन, डॉक्टर नीरज, एनेस्थीसिया विभाग के रेजिडेंट डॉक्टर अलिशा, डॉक्टर अश्मिता एवं ओटी नर्सिंग ऑफिसर दीप, रितेश की महत्वपूर्ण भूमिका रही.