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अतीत की परंपरा: जौनसार क्षेत्र में एक महीने बाद मनाई जाती है दीपावली, ये है वजह - जौनसार बावर जनजाति विकासनगर

जौनसार बावर जनजाति एक माह बाद दीपावली का पर्व मनाता है. इस ईको फ्रेंडली दीपावली से जुड़ीं कई किवदंतियां हैं. कई दिनों तक चलने वाला यह पर्व आपसी मेल मिलाप और भाईचारे का प्रतीक है. अतीत से ही जौनसारी जनजाति में यह पौराणिक परंपरा चली आ रही है.

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Published : Nov 22, 2019, 10:35 AM IST

विकासनगरः जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में आज भी सदियों पुरानी पौराणिक परंपरा जिंदा है. यहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक माह बाद दीपावली का पर्व कई दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह दीपावली पूरी तरह से ईको फ्रेंडली और परंपरागत ढंग से मनाई जाती है.

जौनसार बावर जनजाति का दिवाली पर्व

जहां देश दुनिया में दीपावली पटाखे के शोर-शराबे में मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने की परंपरा पौराणिक है. यहां पर दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. पहले दिन यहां विमल वृक्ष की पतली लकड़ियों की मशालें बनाकर सभी ग्रामीण एकत्रित होकर ढोल- दमाऊ की थाप पर मशालें जलाकर दीपावली का आगाज होता है. वहीं महासू देवता के नाम से दीपावली में बिरुडी पर्व मनाया जाता है.

इसमें पंचायती आंगन में गांव का मुखिया ऊंचे स्थान से अखरोट बिखराकर लोग उसे प्रसाद के रूप में गृहण करते हैं. वहीं कई दिन पहले से गांव के लोग धान को भिगोकर चिवड़ा बनाते हैं. जिसे प्रसाद के रूप में अपने इष्ट देवता को अर्पित कर सभी लोगों को बांटा जाता है.दीपावली का त्योहार जौनसार बावर जनजाति लोगों में बड़े ही धूमधाम से मनाने की पौराणिक परंपरा है. इस दीपावली में गांव के बाजगी समाज के लोग एक महीने पहले जौ और गेहूं की अपने रसोई घर के एक कोने में पवित्र स्थान पर बुवाई करते हैं जिसे हरियाली कहा जाता है.

बिरुड़ी के दिन बाजगी समाज के लोग दीपावली की बधाई में बिरुड़ी की बधाई देते हैं और सबसे पहले अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं. साथ ही ढोल- दमाऊ थाप पर ग्रामीणों का स्वागत करते हैं.हरियाली को सोने की हरियाली भी कहा जाता है, जिसे शुभ माना जाता है. लोग कानों में हरियाली लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य करते हैं. दीपावली समापन के दिन किसी गांव में काठ का हाथी नृत्य तो किसी गांव में हिरण नृत्य होता है. हाथी व हिरण पर गांव के मुखिया को बैठाया जाता है.

परंपरा अनुसार जौनसार बावर की दीपावली सदियों पुरानी परंपरा है. कई दिनों तक चलने वाली दीपावली आपसी मेल मिलाप और भाईचारे का प्रतीक है. जौनसार बावर में एक महीने बाद इसलिए दीपावली मनाई जाती है कि यह क्षेत्र कृषि प्रधान होने के कारण यहां किसानों को अपनी नगदी फसलों व अन्य खेती-बाड़ी के कार्यों में व्यस्त होने के चलते एक महीने बाद फुर्सत के क्षणों में मनाई जाती है जिसमें नौकरीपेशा लोग भी अपने घरों की ओर रुख करते हैं और अपनी संस्कृति से रूबरू होते हैं. दीपावली के दिन प्रत्येक गांव के मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है.

वही कालसी ब्लॉक के नवनिर्वाचित ज्येष्ठ प्रमुख भीम सिंह चौहान ने बताया कि यह दीपावली भाईचारे और आपसी मिलाप का प्रतीक है. यह सैकड़ों वर्षों से जौनसारी जनजाति की पौराणिक परंपरा है. इस परंपरा में लोग पटाखों की शोर-शराबे से दूर हैं और ईको फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं. यह देश दुनिया की दीपावली से हटकर अपनी जनजातीय संस्कृति का त्योहार है.

यह भी पढ़ेंः बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद सूना पड़ा भारत का आखिरी गांव

माना जाता है जौनसार बावर में एक अत्याचारी राजा सामू शाही व किरमीर नामक राक्षस का आतंक हुआ करता था. जिस पर स्थानीय लोगों ने महासू देवता का स्मरण किया और अत्याचारी राजा व किरमीर नामक राक्षस से मुक्ति मिली थी. तब से जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र की दीपावली में महासू देवता को याद करते हुए अखरोट व चिवड़ा प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है.

सदियों पुरानी परंपरा आज भी जौनसार बावर में आपसी भाईचारा व मेल मिलाप के साथ बखूबी निभाई जा रही है.

विकासनगरः जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में आज भी सदियों पुरानी पौराणिक परंपरा जिंदा है. यहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक माह बाद दीपावली का पर्व कई दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह दीपावली पूरी तरह से ईको फ्रेंडली और परंपरागत ढंग से मनाई जाती है.

जौनसार बावर जनजाति का दिवाली पर्व

जहां देश दुनिया में दीपावली पटाखे के शोर-शराबे में मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने की परंपरा पौराणिक है. यहां पर दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. पहले दिन यहां विमल वृक्ष की पतली लकड़ियों की मशालें बनाकर सभी ग्रामीण एकत्रित होकर ढोल- दमाऊ की थाप पर मशालें जलाकर दीपावली का आगाज होता है. वहीं महासू देवता के नाम से दीपावली में बिरुडी पर्व मनाया जाता है.

इसमें पंचायती आंगन में गांव का मुखिया ऊंचे स्थान से अखरोट बिखराकर लोग उसे प्रसाद के रूप में गृहण करते हैं. वहीं कई दिन पहले से गांव के लोग धान को भिगोकर चिवड़ा बनाते हैं. जिसे प्रसाद के रूप में अपने इष्ट देवता को अर्पित कर सभी लोगों को बांटा जाता है.दीपावली का त्योहार जौनसार बावर जनजाति लोगों में बड़े ही धूमधाम से मनाने की पौराणिक परंपरा है. इस दीपावली में गांव के बाजगी समाज के लोग एक महीने पहले जौ और गेहूं की अपने रसोई घर के एक कोने में पवित्र स्थान पर बुवाई करते हैं जिसे हरियाली कहा जाता है.

बिरुड़ी के दिन बाजगी समाज के लोग दीपावली की बधाई में बिरुड़ी की बधाई देते हैं और सबसे पहले अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं. साथ ही ढोल- दमाऊ थाप पर ग्रामीणों का स्वागत करते हैं.हरियाली को सोने की हरियाली भी कहा जाता है, जिसे शुभ माना जाता है. लोग कानों में हरियाली लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य करते हैं. दीपावली समापन के दिन किसी गांव में काठ का हाथी नृत्य तो किसी गांव में हिरण नृत्य होता है. हाथी व हिरण पर गांव के मुखिया को बैठाया जाता है.

परंपरा अनुसार जौनसार बावर की दीपावली सदियों पुरानी परंपरा है. कई दिनों तक चलने वाली दीपावली आपसी मेल मिलाप और भाईचारे का प्रतीक है. जौनसार बावर में एक महीने बाद इसलिए दीपावली मनाई जाती है कि यह क्षेत्र कृषि प्रधान होने के कारण यहां किसानों को अपनी नगदी फसलों व अन्य खेती-बाड़ी के कार्यों में व्यस्त होने के चलते एक महीने बाद फुर्सत के क्षणों में मनाई जाती है जिसमें नौकरीपेशा लोग भी अपने घरों की ओर रुख करते हैं और अपनी संस्कृति से रूबरू होते हैं. दीपावली के दिन प्रत्येक गांव के मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है.

वही कालसी ब्लॉक के नवनिर्वाचित ज्येष्ठ प्रमुख भीम सिंह चौहान ने बताया कि यह दीपावली भाईचारे और आपसी मिलाप का प्रतीक है. यह सैकड़ों वर्षों से जौनसारी जनजाति की पौराणिक परंपरा है. इस परंपरा में लोग पटाखों की शोर-शराबे से दूर हैं और ईको फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं. यह देश दुनिया की दीपावली से हटकर अपनी जनजातीय संस्कृति का त्योहार है.

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माना जाता है जौनसार बावर में एक अत्याचारी राजा सामू शाही व किरमीर नामक राक्षस का आतंक हुआ करता था. जिस पर स्थानीय लोगों ने महासू देवता का स्मरण किया और अत्याचारी राजा व किरमीर नामक राक्षस से मुक्ति मिली थी. तब से जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र की दीपावली में महासू देवता को याद करते हुए अखरोट व चिवड़ा प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है.

सदियों पुरानी परंपरा आज भी जौनसार बावर में आपसी भाईचारा व मेल मिलाप के साथ बखूबी निभाई जा रही है.

Intro:विकासनगर जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में आज भी सदियों पुरानी पुराणिक परंपरा जिंदा है यहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक माह बाद दीपावली का पर्व कई दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इस दीपावली में नहीं जलाए जाते पटाखे इको फ्रेंडली दिवाली मनाने की है परंपरा


Body:जहां देश दुनिया दीपावली बम पटाखे के शोर-शराबे व दीपोत्सव के रूप में मनाते हैं तो वहीं जौनसार बावर में इको फ्रेंडली दिवाली मनाने की परंपरा पौराणिक है यहां पर दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है पहले दिन यहां दीपावली को विमल वृक्ष के पतली पतली लकड़ियों की मशालें बनाकर सभी ग्रामीण एकत्रित होकर ढोल दमाऊ की थाप मसाले जलाकर दीपावली का आगाज करते हैं वही महासू देवता के नाम से दीपावली में बिरुडी पर्व मनाया जाता है इसमें पंचायती आंगन में गांव का मुखिया ऊंचे स्थान से अखरोट बिखरता लोग उसे प्रसाद के रूप में गृहण करते हैं वहीं कई दिन पहले से गांव के लोग धान को भिगोकर चिवडा बनाते हैं जिसे प्रसाद के रूप में अपने इष्ट देवता को अर्पित कर सभी लोगों को बांटा जाता है दीपावली का त्यौहार जौनसार बावर के जनजाति लोगों में बड़े ही धूमधाम से मनाने की पौराणिक परंपरा है इस दीपावली में गांव के बाजगी समाज के लोग एक महीने पहले जो और गेहूं को अपने रसोई घर के एक कोने में शुद्ध पवित्र स्थान पर बुवाई करते हैं जिसे हरियाडी कहा जाता है बिरुडी के दिन बाजगी समाज के लोग दीपावली की बधाई में बिरुड़ी की बधाई देते हैं और सबसे पहले अपने इष्ट देव को अर्पित लोगों को देते हैं साथ ही ढोल दमाऊ थाप पर ग्रामीणों का स्वागत करते हैं हरियाडी को सोने की हरियाडी भी कहा जाता है जिसे अति शुभ माना जाता है लोग कानों में हरियाडी लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य करते हैं दीपावली समापन के दिन किसी गांव में काठ का हाथी नृत्य तो किसी गांव में हिरण नृत्य होता है हाथी व हिरण पर गांव के मुखिया को बैठाया जाता है.
परंपरा अनुसार जौनसार बावर की दीपावली सदियों पुरानी परंपरा है कई दिनों तक चलने वाली दीपावली आपसी मेल मिलाप और भाईचारे का प्रतीक है
जौनसार बावर में एक महीने बाद इसलिए दीपावली मनाई जाती है कि यह क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण यहां किसानों को अपनी नगदी फसलों व अन्य खेती-बाड़ी के कार्यों में व्यस्त होने के चलते एक महीने बाद फुर्सत के क्षणों में कृषि कार्य निपटा कर दीपावली को त्यौहार के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें की नौकरीपेशा लोग भी अपने घरों की ओर रुख करते हैं और अपनी संस्कृति से रूबरू होते हैं
दीपावली के दिन प्रत्येक गांव के मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं
पटाखों की शोर-शराबे से दूर जौनसार बावर में इको फ्रेंडली दीपावली मनाई जाती है



Conclusion:वही कालसी ब्लॉक के नवनिर्वाचित जेष्ट प्रमुख भीम सिंह चौहान ने बताया कि यह दीपावली भाईचारे और आपसी मिलाप का प्रतीक है यह सैकड़ों वर्षों से जौनसारी जनजाति की पौराणिक परंपरा है इस परंपरा में लोग पटाखों की शोर-शराबे से दूर हैं यहां इको फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं यह देश दुनिया की दीपावली से हटकर अपनी जनजातीय संस्कृति का त्यौहार है
माना जाता है जौनसार बावर में एक अत्याचारी राजा सामू शाही व किरमीर नामक राक्षस का आतंक हुआ करता था जिस पर स्थानीय लोगों ने महासू देवता का स्मरण किया और अत्याचारी राजा व किरमीर नामक राक्षस से मुक्ति दिलाई गई तब से जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र की दीपावली में महासू देवता को याद करते हुए अखरोट व चिवडा प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है.
सदियों पुरानी है परंपरा आज भी हमारे जौनसार बावर में आपसी भाईचारा व मेल मिलाप के साथ इस परंपरा को बखूबी तौर से निभाया जा रहा है एक समय ऐसा भी आया जब यहां के कुछ गांव के बाशिंदों ने नई दीपावली को अपनाते हुए चले थे लेकिन अपनी पौराणिक जनजातीय परंपरा को जिंदा रखने के लिए उन्होंने भी अपनी संस्कृति पुरानी परंपरा से चली आ रही दीपावली मनाते हुए अपनी परंपरा को कायम रखा जौनसार बावर के क्षेत्रवासी पुरानी दीपावली को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं
बाइट_ भीम सिंह चौहान_ नवनिर्वाचित जेष्ठ प्रमुख ब्लॉक कालसी
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