देहरादूनः उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लग रही है. गढ़वाल हो या कुमाऊं के जंगल धू-धू कर जल रहे हैं. मौसम की बेरुखी और परालियों के कारण भी सिविल वन क्षेत्र में आग की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिल रही है. ऐसे में वन विभाग के सभी नोडल डीएफओ को जरूरी दिशा निर्देश जारी किया गया है. जिसमें जिला प्रशासन समेत SDRF और आपदा प्रबंधन QRT के साथ समन्वय बनाकर वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के प्रयास करने को कहा गया है.
दरअसल, मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन की बैठक हुई. जिसमें सभी DFO को निर्देशित किया गया है कि आने वाले दो दिनों में सभी 13 जिलों में सभी जिलाधिकारियों के साथ एक बैठक की जाए. ऐसे में अब सभी 13 जिलों में नोडल अधिकारी DFO जिलाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे और वन विभाग के पास वनाग्नि को रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपकरण समेत वाहनों के खर्चे के लिए जो भी बजट चाहिए होगा, उसकी डिमांड जिलाधिकारी से करेंगे. जिसके बाद उन्हें बजट उपलब्ध करवा जाएगा.
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उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाएंः मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने बताया कि 15 फरवरी से अब तक प्रदेश में 604 वनाग्नि की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जिसमें 821 हेक्टेयर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है. वहीं 23 लाख 72 हजार का आर्थिक नुकसान हो चुका है. वर्मा ने बताया कि अभी 1383 क्रू स्टेशन में कुछ ऐसे स्थानीय निवासियों को जोड़ा गया है, जो कि वनाग्नि की घटनाओं पर नजर बनाए हुए हैं और वाट्सअप के माध्यम से वन विभाग को सूचना दे रहे हैं.
मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने बताया कि अभी कुछ दिन से पराली जलाने के कारण सिविल वन क्षेत्रों में आग की घटनाएं सामने आ रही हैं. जिसको रोकने के लिए वृहद स्तर पर जन जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है. वर्मा ने बताया कि अब तक कुमाऊं के 3 और गढ़वाल मंडल के 4 जिलों में वनाग्नि की 90 प्रतिशत घटनाएं समाने आई है.
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इसके साथ ही IIRS (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग) से भी 24 घंटे मिल रहे पूर्व अलर्ट के आधार पर भी वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए संबंधित डिवीजन और क्षेत्र को सूचित किया जा रहा है. वहीं, अभी भी वन विभाग को अपने संसाधनों को पूरा करने के लिए जिला प्रशासन पर ही निर्भर होना पड़ रहा है.
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