देहरादून: उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा, हरिद्वार समेत तमाम जगहों पर मदरसे संचालित हो रहे हैं. ऐसे में अब प्रदेश में संचालित हो रहे इन मदरसों को लेकर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड और मदरसा बोर्ड आमने-सामने आ गए हैं. दरअसल, वक्फ बोर्ड का काम संपत्तियों का रख रखाव करना है. वहीं, मदरसा बोर्ड का काम मदरसों के संचालन की व्यवस्थाओं को बनाना है. बावजूद इसके अब दोनों के बीच मदरसों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. आखिर क्या है विवाद?
वक्फ बोर्ड और मदरसा बोर्ड में खींचतान: प्रदेश में मौजूद सभी मदरसों का सत्यापन होने जा रहा है. इस बाबत सीएम धामी ने गृह सचिव राधा रतूड़ी को निर्देश दिए हैं. जिसके बाद राधा रतूड़ी ने प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं उनके जिलों में मौजूद मदरसों का सत्यापन किया जाए. सीएम धामी द्वारा मदरसों की जांच के निर्देश के बाद मदरसा संचालकों के बीच चर्चाओं का बाजार गर्म है. वहीं, मदरसों की जांच शुरू होने से पहले ही वक्फ बोर्ड और मदरसा बोर्ड के बीच विवाद खड़ा हो गया है.
मदरसा बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं 415 मदरसे: दरअसल, उत्तराखंड राज्य में करीब 117 मदरसे ऐसे हैं जिनकी भूमि वक्फ बोर्ड की है. 415 मदरसे ऐसे हैं जो सिर्फ मदरसा बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा करीब 100 मदरसे ऐसे हैं जो अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं. ऐसे में वक्फ बोर्ड प्रदेश में चंदे ली गई मदरसों की जमीनों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना चाहता है. इस बाबत, वक्फ बोर्ड ने सरिया कानून का हवाला देते हुए सीएम धामी को पत्र लिखा है. पत्र में मांग की गई है कि प्रदेश में चंदे के पैसे से बनाए गए जो मदरसे, दरगाह, कब्रिस्तान और मस्जिदें हैं, उनको वक्फ बोर्ड में शामिल किया जाना चाहिए.
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मदरसा बोर्ड चाहता है उत्तराखंड बोर्ड के समकक्ष मान्यता: साल 2011 में मुस्लिम एजुकेशन मिशन से उत्तराखंड मदरसा बोर्ड बनाया गया था. उत्तराखंड मदरसा बोर्ड से 415 मदरसे पंजीकृत हैं. लेकिन इन मदरसों में से तमाम मदरसे ऐसे हैं जो एकल स्वामित्व से संचालित हो रहे हैं. यही नहीं, वर्तमान स्थिति यह है कि उत्तराखंड बोर्ड के समकक्ष मदरसा बोर्ड को दर्जा प्राप्त नहीं है. जबकि पिछले 12 सालों से उत्तराखंड मदरसा बोर्ड को उत्तराखंड बोर्ड के समकक्ष मान्यता दिए जाने का मामला चल रहा है. हालांकि, उत्तराखंड मदरसा बोर्ड को मान्यता दिए जाने की फाइल कैबिनेट तक पहुंची थी, लेकिन अभी तक इस बात नहीं बन पाई.
वक्फ बोर्ड और मदरसा बोर्ड में ये है विवाद: वहीं, अब मदरसों को लेकर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड और उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के बीच विवाद शुरू हो गया है. जहां एक ओर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड इस बात की मांग कर रहा है कि प्रदेश में जितने भी मदरसे चंदे के पैसे से बनाए गए हैं, उनका मालिकाना हक वक्फ बोर्ड को दिया जाना चाहिए. दूसरी ओर उत्तराखंड मदरसा बोर्ड इस बात को कह रहा है कि मदरसों में जो चीजें पहले से चल रही हैं, उनको ही आगे बढ़ाया जाएगा. हालांकि, इस विवाद के बाद अब मदरसों को लेकर प्रदेश में तमाम सवाल उठने लगे हैं.
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वक्फ बोर्ड ने सीएम धामी को लिखा पत्र: सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि प्रदेश में सैकड़ों मदरसे संचालित हो रहे हैं जिनमें से 117 वक्फ बोर्ड और 415 उत्तराखंड मदरसा बोर्ड में पंजीकृत होकर संचालित हो रहे हैं. ऐसे में वक्फ बोर्ड का मानना है कि सरिया कानून के अनुसार अगर कोई मदरसा जनता से चंदा इकट्ठा करके बनाया जाता है, तो उस मदरसे का मालिकाना हक वक्फ बोर्ड का होता है. यही वजह है कि वक्फ बोर्ड ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर इस बाबत अनुरोध किया है कि प्रदेश में जितने भी मदरसे, दरगाह, कब्रिस्तान और मस्जिद चंदे के पैसे से बनाए गए, उस पर वक्फ बोर्ड का मालिकाना हक होना चाहिए.
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क्या कहते हैं धर्म गुरु? इस पूरे मामले पर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने कहा कि जो मदरसा या फिर प्रॉपर्टी चंदे के पैसे से लिया गया है, वह प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड में दर्ज होनी चाहिए. साथ ही कहा कि सरिया कानून में इस बात का जिक्र किया गया है कि चंदे के पैसे से बनायी गयी प्रॉपर्टी वक्फ की होगी. इसका फतवा कहीं से भी मनवा सकते हैं. हालांकि, जो अच्छे धर्म गुरु हैं उनके अनुसार जो प्राइवेट संस्थान हैं वो पूरी तरह से बंद होने चाहिए. वक्फ बोर्ड में दर्ज होने चाहिए. साथ ही कहा कि देवभूमि के देवत्व को बचाने के लिए इस कुप्रथा को रोक सकते हैं.
मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष का बयान: वहीं, उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शामून कासमी ने कहा कि शादाब शम्स का कार्य क्षेत्र वक्फ बोर्ड है. ऐसे में जो मदरसों में चल रहा है, उसे ही मदरसों में आगे लागू किया जाएगा. साथ ही कहा कि कांग्रेस ने 60 साल राज किया और जो लोग कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े हुए लोग हैं अभी उनकी विचारधाराएं बदल नहीं रही हैं. लिहाजा कांग्रेस ने मुसलमानों को वोट बैंक बनाकर सिर्फ तुष्टिकरण किया, और उनका कोई कल्याण नहीं किया.
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